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Jitiya Vrat Katha: जितिया व्रत में इस कथा को श्रवण करने का विधान, इसके बिना व्रत पूजा रह जाती है अधूरी

Jitiya Vrat Katha: जितिया व्रत की शुरुआत हो चुकी है. यह पर्व तीन दिन तक चलता है. जितिया व्रत की कई कथाएं प्रचलित हैं. पौराणिक कथाओं में जीमूतवाहन की पूजा का विधान है. इस व्रत पर कथा का पाठ करने से पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है.

Jitiya Vrat Katha: जीवित्पुत्रिका व्रत की शुरुआत गुरुवार को सरगही-ओठगन के साथ हो गयी है. 6 अक्टूबर दिन शुक्रवार को माताएं निर्जला उपवास रखकर पूजा करेंगी. वहीं 7 अक्टूबत दिन शनिवार को साढ़े 10 बजे के बाद पारण करेंगी. पारण का समय जगह के अनुसार बदल जाएगा. हर साल जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है. जितिया व्रत संतान की दीर्घायु के लिए रखा जाता है. जितिया व्रत को रखने से संतान तेजस्वी, ओजस्वी और मेधावी होता है.

जितिया व्रत कथा-1

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जितिया व्रत की कथा बड़ी रोचक है. मान्यतानुसार, एक नगर में किसी वीरान जगह पर एक पीपल का पेड़ था. इस पेड़ पर एक चील और इसी के नीचे एक सियारिन भी रहती थी. एक बार कुछ महिलाओं को देखकर दोनों ने जिऊतिया व्रत किया. व्रत के दिन ही नगर में एक इंसान की मृत्यु हो गई. उसका शव पीपल के पेड़ के स्थान पर लाया गया. सियारिन ये देखकर व्रत की बात भूल गई और उसने मांस खा लिया. चील ने पूरे मन से व्रत किया और पारण किया. व्रत के प्रभाव में दोनों का ही अगला जन्म कन्याओं अहिरावती और कपूरावती के रूप में हुआ. जहां चील स्त्री के रूप में राज्य की रानी बनी और छोटी बहन सियारिन कपूरावती उसी राजा के छोटे भाई की पत्नी बनी.

चील ने सात बच्चों को जन्म दिया लेकिन कपूरावती के सारे बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे. इस बात से अवसाद में आकर एक दिन कपूरावती ने सातों बच्चों कि सिर कटवा दिए और घड़ों में बंद कर बहन के पास भिजवा दिया. यह देख भगवान जीऊतवाहन ने मिट्टी से सातों भाइयों के सिर बनाए और सभी के सिरों को उसके धड़ से जोड़कर उन पर अमृत छिड़क दिया. अगले ही पल उनमें जान आ गई. सातों युवक जिंदा हो गए और घर लौट आए. जो कटे सिर रानी ने भेजे थे, वे फल बन गए. जब काफी देर तक उसे सातों संतानों की मृत्यु में विलाप का स्वर नहीं सुनाई दिया तो कपुरावती स्वयं बड़ी बहन के घर गयी.

वहां सबको जिंदा देखकर उसे अपनी करनी का पश्चाताप होने लगा. उसने अपनी बहन को पूरी बात बताई. अब उसे अपनी गलती पर पछतावा हो रहा था. भगवान जीऊतवाहन की कृपा से अहिरावती को पूर्व जन्म की बातें याद आ गईं. वह कपुरावती को लेकर उसी पाकड़ के पेड़ के पास गयी और उसे सारी बातें बताईं. कपुरावती की वहीं हताशा से मौत हो गई. जब राजा को इसकी खबर मिली तो उन्‍होंने उसी जगह पर जाकर पाकड़ के पेड़ के नीचे कपुरावती का दाह-संस्कार कर दिया.

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जितिया व्रत कथा-2

गंधर्वों के राजकुमार जीमूतवाहन अपने परोपकार और पराक्रम के लिए जाने जाते थे. एक बार जीमूतवाहन के पिता उन्हें राजसिंहासन पर बिठाकर वन में तपस्या के लिए चले गए, लेकिन उनका मन राज-पाट में नहीं लगा. इसी के चलते वे अपने भाइयों को राज्य की जिम्मेदारी सौंप कर अपने पिता के पास उनकी सेवा के लिए चले गए, जहां उनका विवाह मलयवती नाम की कन्या से हुआ.

एक दिन भ्रमण करते हुए उनकी भेंट एक वृद्ध स्त्री से हुई, जो नागवंश से थी. वो काफी ज्यादा परेशान और डरी हुई थी. उसकी ऐसी हालत देखकर जीमूतवाहन ने उसका हाल पूछा. उस वृद्धा ने बताया कि नागों ने पक्षीराज गरुड़ को यह वचन दिया है कि वे प्रत्येक दिन एक नाग को उनके आहार के रूप में उन्हें देंगे. उस स्त्री ने रोते हुए बताया कि उसका एक बेटा है, जिसका नाम शंखचूड़ है. आज उसे पक्षीराज गरुड़ के पास आहार के रूप में जाना है.

जैसे जीमूतवाहन ने वृद्धा की हालत देखी उन्होंने उसे आश्वासन दिया कि वो उसके पुत्र के प्राणों की रक्षा करेंगे. वचन के अनुसार, जीमूतवाहन पक्षीराज गरुड़ के समक्ष प्रस्तुत हुए और गरुड़ उन्हें अपने पंजों में दबोच कर साथ ले गए. उस दौरान उन्होंने जीमूतवाहन के कराहने की आवाज सुनी और वे एक पहाड़ पर रुक गए, जहां जीमूतवाहन ने उन्हें पूरी घटना बताई.

पक्षीराज गरुड़ जीमूतवाहन के साहस और परोपकार भाव को देखकर प्रसन्न हो गए, जिस वजह से उन्होंने जीमूतवाहन को प्राणदान दे दिया. इसके साथ ही उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि वे अब किसी नाग को अपना आहार नहीं बनाएंगे. मान्यता के अनुसार तभी से संतान की सुरक्षा और उन्नति के लिए जीमूतवाहन की पूजा का विधान है, जिसे लोग आज जितिया व्रत के नाम से भी जानते हैं.

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Radheshyam Kushwaha
Radheshyam Kushwaha
पत्रकारिता की क्षेत्र में 12 साल का अनुभव है. इस सफर की शुरुआत राज एक्सप्रेस न्यूज पेपर भोपाल से की. यहां से आगे बढ़ते हुए समय जगत, राजस्थान पत्रिका, हिंदुस्तान न्यूज पेपर के बाद वर्तमान में प्रभात खबर के डिजिटल विभाग में बिहार डेस्क पर कार्यरत है. लगातार कुछ अलग और बेहतर करने के साथ हर दिन कुछ न कुछ सीखने की कोशिश करते है. धर्म, राजनीति, अपराध और पॉजिटिव खबरों को पढ़ते लिखते रहते है.

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