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कम शब्दों में गहरी बात समझा जाती है नागपुरी शॉर्ट फिल्म ‘डहर’, राकेश उरांव ने बताया क्यों चुना ये सब्जेक्ट

नागपुरी शॉर्ट फिल्म 'डहर' के डायरेक्टर और स्क्रिप्ट राइटर राकेश उरांव ने प्रभात खबर से खास बातचीत में बताया कि, वो मूलरूप से बिशुनपुर गुमला के रहनेवाले हैं. लेकिन उनका पूरा बचपन राजधानी रांची से लगभग 60 किमी दूर खलारी में बीता है. उनके पिता यहां कोल माइंस में काम करते हैं.

राकेश उरांव की नागपुरी शॉर्ट फिल्म ‘डहर’ रिलीज हो गई है. नागपुरी में डहर का अर्थ होता है रास्ता. 5 मिनट की इस फिल्म में आम जीवन से जुड़े एक गंभीर मुद्दे को दिखाने की कोशिश की गई है जिसमें वो सफल भी हुए हैं. फिल्म की शुरुआत में ही ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर साईकिल चलाते हुए लड़के को देखकर आप समझ जायेंगे कि वो किस परेशानी को हर दिन झेल रहा है. टूटी सड़क पर ठोकर खाकर गिरे व्यक्ति की दशा देखकर उस बच्चे के मन में जो सवाल उठते हैं वो ही इसकी कहानी है. इस फिल्म को सोशल मीडिया पर सराहा जा रहा है.

क्यों चुना ये सब्जेक्ट

इस फिल्म के डायरेक्टर और स्क्रिप्ट राइटर राकेश उरांव ने प्रभात खबर से खास बातचीत में बताया कि, वो मूलरूप से बिशुनपुर गुमला के रहनेवाले हैं. लेकिन उनका पूरा बचपन राजधानी रांची से लगभग 60 किमी दूर खलारी में बीता है. उनके पिता यहां कोल माइंस में काम करते हैं. वो बताते हैं कि खलारी का एक एरिया है डकरा. वहां सड़क खराब होने के कारण वहां से बस नहीं चलती. बस का रूट बदल दिया गया है. नेता-राजनेता आते हैं और वादा करके चले जाते हैं. करीब 7 से 8 साल हो गये होंगे सड़क की हालत जर्जर है. वहीं से यह कॉन्सेप्ट आया कि फिल्म के जरिए अपनी बात कही जा सकती है. (देखें फिल्म डहर)


फिल्म के कास्ट के बारे में कही ये बात

फिल्म के कास्ट के बारे में वो कहते हैं कि, जिस लड़के ने लीड भूमिका निभाई है उसने कभी कैमरा का सामना नहीं किया है. उस सहज महसूस कराने के लिए डायलॉग कम रखे गये हैं. हमारा मकसद था कि कम शब्दों और दृश्यों के माध्यम में हम लोगों तक अपनी बात पहुंचा दें. हमें हर सीन को ओरिजनल ही दिखाना था. इसके अलावा बाकी जो भी लोग इससे जुड़े हैं वो हमारे मित्र ही हैं. यह जीरो बजट फिल्म है. हमने दशहरा के मौके पर ही इस फिल्म की शूटिंग पूरी की है.

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ऐसे शुरू हुआ सफर

राकेश उरांव फिलहाल सत्यजीत रे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट कोलकाता से फिल्म एडिटिंग का कोर्स कर रहे हैं. उनका कहना है कि, साल 2013 में उन्होंने शुरुआत की थी और मूवी मेकिंग और एडिटिंग के बेसिक के बारे में सीखा. मेरे पास एक लैपटॉप था. उस समय संत जेवियर कॉलेज से कॉमर्स में ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहे थे. इस साल मैंने मोबाइल से शूट करके एक गाना बनाया था कि लिप सिंक कैसे होता है. मैंने दहलीज में एसोसिएट एडिटर का काम किया था. इसके बाद सीखने का खूब मौका मिला. इसके बाद एक मिनट की फिल्म बनाई. इसके बाद सोचा कि इसे अब आगे बढ़ाने की जरूरत है.

Budhmani Minj
Budhmani Minj
Senior Journalist having over 10 years experience in Digital, Print and Electronic Media.Good writing skill in Entertainment Beat. Fellow of Centre for Cultural Resources and Training .

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