Retail Inflation: सब्जी, दालों, सब्जियों, दालों, दूध, मांस, मछली, अनाज और मसालों की कीमतों ने जून, 2025 में महंगाई की कमर तोड़ दी है, जिससे आम आदमी को बड़ी राहत मिली है. इसी का नतीजा है कि जून के महीने में खुदरा महंगाई (सीपीआई) 6 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई. हालांकि, इस महीने में थोक महंगाई दर (डब्ल्यूपीआई) में भी जोरदार गिरावट दर्ज की गई है. थोक महंगाई में यह गिरावट खाद्य पदार्थों, ईंधन और विनिर्मित वस्तुओं की कीमतों में नरमी के कारण दर्ज की गई है, जिससे आरबीआई को भी मौद्रिक नीति में नरमी बरतने का आधार मिला है.
जून में खुदरा मुद्रास्फीति 2.1% पर
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के आंकड़ों के अनुसार, जून 2025 में खुदरा महंगाई घटकर 2.1% रह गई है, जो जनवरी 2019 के बाद सबसे कम है. मई 2025 में यह 2.82% और जून 2024 में 5.08% थी. इस गिरावट के प्रमुख कारणों में सब्जियों, दालों, दूध, मांस, मछली, अनाज और मसालों की कीमतों में जोरदार गिरावट, अनुकूल आधार प्रभाव और मौसमी कारकों के कारण खाद्य वस्तुओं की सप्लाई में सुधार शामिल है.
सही दिशा में है आरबीआई की ब्याज दरों में नरमी
खुदरा मुद्रास्फीति का यह स्तर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के लिए एक संकेत है कि ब्याज दरों में नरमी की मौजूदा रणनीति सही दिशा में है.उपभोक्ताओं के लिए यह राहत का संकेत है, क्योंकि इससे ईएमआई और जीवनयापन की लागत में स्थिरता बनी रहेगी.
थोक महंगाई 19 महीनों में पहली बार 0% से नीचे
थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) आधारित थोक महंगाई जून 2025 में घटकर -0.13% हो गई है, जो पिछले 19 महीनों में पहली बार 0 से नीचे आई है. मई में यह 0.39% और जून 2024 में 3.43% थी. थोक मुद्रास्फीति में गिरावट के मुख्य कारणों में खाद्य वस्तुओं की कीमतों में 3.75% की गिरावट, सब्जियों के दामों में भारी कमी (22.65%), खनिज तेल, कच्चा पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस की कीमतों में नरमी और विनिर्मित उत्पादों की लागत में गिरावट (मई में 2.04% से जून में 1.97%) शामिल हैं. थोक स्तर पर महंगाई में इस गिरावट का अर्थ है कि निर्माण, उत्पादन और व्यापार लागतों में राहत मिल रही है, जो उद्योगों के लिए सकारात्मक संकेत है.
आरबीआई की भूमिका और मौद्रिक नीति संकेत
जून की मुद्रास्फीति दरों को ध्यान में रखते हुए आरबीआई ने जून में रेपो रेट में 0.50% की कटौती कर इसे 5.50% कर दिया है. यह कदम स्पष्ट करता है कि केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति को नियंत्रण में मानते हुए विकास को प्राथमिकता दे रहा है. मुख्य रूप से आरबीआई खुदरा महंगाई को अपनी मौद्रिक नीति निर्धारण का आधार बनाता है. अब जबकि खुदरा महंगाई छह साल के न्यूनतम स्तर पर है, आगे ब्याज दरों में और कटौती की संभावना बन सकती है, जिससे कर्ज और उपभोग को प्रोत्साहन मिलेगा.
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राहत के संकेत लेकिन सतर्कता जरूरी
पीएचडीसीसीआई के अध्यक्ष हेमंत जैन ने कहा कि थोक मुद्रास्फीति में सात महीने की लगातार गिरावट भारत की मजबूत आर्थिक नींव को दर्शाती है. वहीं, इक्रा के अर्थशास्त्री राहुल अग्रवाल का कहना है कि जुलाई में खाद्य वस्तुओं में मौसमी बढ़ोतरी की संभावना कम है, जिससे आगामी महीनों में मुद्रास्फीति मध्यम रह सकती है. हालांकि, भू-राजनीतिक परिस्थितियां, कच्चे तेल की वैश्विक कीमतें और मानसून की चाल जैसे कारक भविष्य में महंगाई की दिशा को प्रभावित कर सकते हैं.
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