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Exclusive: ऋषि कपूर का आखिरी इंटरव्‍यू, इस बात का जताया था अफसोस

Rishi Kapoor Last interview: भारतीय सिनेमा के लीजेंड ऋषि कपूर (Rishi Kapoor) का गुरुवार सुबह निधन हो गया. आखिरी बार वह फ़िल्म 'द बॉडी' (The Body) में नज़र आए थे. इस दौरान उन्‍होंने prabhatkhabar.com से अपने करियर और फ़िल्म इंडस्ट्री पर ढेरों बातें की थीं.

भारतीय सिनेमा के लीजेंड ऋषि कपूर (Rishi Kapoor) का गुरुवार सुबह निधन हो गया. आखिरी बार वह फ़िल्म ‘द बॉडी’ (The Body) में नज़र आए थे. इस दौरान उन्‍होंने prabhatkhabar.com से अपने करियर और फ़िल्म इंडस्ट्री पर ढेरों बातें की थीं. हालांकि उन्‍होंने बातचीत के शुरुआत में ही साफ तौर पर कह दिया था कि वह कैंसर की बीमारी, रणबीर और आलिया की शादी के बारे में कोई बात नहीं करेंगे. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के कुछ प्रमुख अंश…

आप अपने करियर की इस सेकेंड इनिंग को कैसे देखते हैं ?

सेकेंड इनिंग को एन्जॉय कर रहा हूं. अपने करियर में 25 साल तक सिर्फ रोमांटिक फिल्में की है जिनमें मेरा काम स्वेटर पहनकर स्विट्ज़रलैंड में गाना गाना था. जो एक एक्टर के तौर पर मेरे सामने कोई चुनौती नहीं देता. मौजूदा दौर में अग्निपथ, मुल्क, कपूर एंड संस और 102 नॉट आउट जैसी फिल्में सम्मान का एहसास करवाती हैं कि मैं अलग अलग किरदार निभा रहा हूं. इसके लिए आज के दर्शक भी जिम्मेदार हैं. मौजूदा दौर के दर्शक इतने एजुकेटिड हैं कि निर्माता निर्देशक कुछ भी नहीं बना सकते हैं. उन्हें कुछ अलग समय से आगे का कंटेंट परोसना पड़ता है जो हमारे वक़्त में नहीं था. बाला, विक्की डोनर हमारे समय में नहीं बनती थी. वहीं फॉर्मूले फैमिली का मिलना बिछड़ना होता था.

आपके पिता राज कपूर उस दौर में भी समय से आगे की फिल्में बनाते थे ?

मैंने भी कितनी सारी फिल्में की थी जो अपने समय से आगे की थी. मेरा नाम जोकर 1, दूसरा आदमी, एक चादर मैली सी. वो फिल्में उस वक़्त नहीं चली थी लेकिन आज सभी उनको पसंद करते हैं. क्योंकि वो हमारे इमेज के खिलाफ थी. इमेज ही उस वक़्त सबकुछ होता था जिस वजह से हमको एक्सपेरिमेंट का मौका नहीं मिल पाता था. हम उस दौर में चाहकर भी विक्की डोनर और बाला जैसी फिल्में नहीं कर सकते थे. हमारे वक़्त में 5 गाने, 3 मार धाड़ वाले सीन, एक रेप का सीन तय था. मिलने बिछड़ने पर तो साल में 20 फिल्में बनती थी. अमिताभ बच्चन को भी उनके सुपरस्टार वाले दौर में एक्सपेरिमेंट करने नहीं मिला था.मुझे याद है मेरी एक फ़िल्म थी खोज उसमें मैं विलन था लेकिन डिस्ट्रीब्यूटर्स और निर्माता के दवाब में फ़िल्म का शूट किया हुआ क्लाइमेक्स बदल दिया गया. उनकी दलील थी कि दर्शक मुझे नेगेटिव पसंद नहीं करेंगे.

युवा अभिनेताओं को आप कैसा पाते हैं?

आज के जो युवा अभिनेता हैं जैसे राजकुमार, रणबीर और रणवीर भी उनकी सबसे अच्छी बात है कि वो जिम में अपना पूरा वक़्त नहीं बिताते या फिर घुड़सवारी या फिर एक्शन सीखने में. वो एक्टिंग पर फोकस करते हैं अरे एक्टिंग ही तो ज़रूरी है. सलमान खान ने बॉडी बना ली तो सबको लगने लगा कि एक्टिंग के लिए बॉडी ही बनानी है. ये गलत है. आप बॉडी बनाते हैं तो कैमरा रोल होते ही आपका पूरा ध्यान सिर्फ अपनी बॉडी पर ही होता है ना डायलॉग और ना ही दूसरी किसी चीज़ पर, नतीजा सब खराब. मैं अपनी बात करू तो मैंने अपने दौर में भी कभी कुछ नहीं सीखा था. मुझे पता था कि मैं एक्टर हूं जो भी करू परदे कन्विंस लगना चाहिए. मैंने परदे पर कई बार डफली, पियानो या फिर गिटार बजाया है. सभी को लगता था कि मुझे वो सचमुच बजाना आता था मगर मुझे नहीं आता था.

कई बार संगीतकार भी मुझसे बोलते थे लेकिन मैं उसको प्ले करते हुए भी एक्टिंग करता था. मुझे खुशी थी कि मैं लोगों को कन्विंस कर पा रहा हूं. बचपन में मैं फिल्में देखते हुए देखता था एक्टर पियानो पर बैठा है लेकिन मुश्किल से उंगली हिलती थी. मैंने उसी वक़्त तय कर लिया था कि मैं ये गलतियां एक्टिंग में नहीं करूंगा. एक्टर का मतलब सिर्फ एक्टिंग करना होता है और दर्शकों को कन्विंस. बॉडी बनाना नहीं.

सफल फिल्मों के लिए क्या बात ज़रूरी है?

सफल फिल्मों का कोई फार्मूला नहीं होता है लेकिन हां बहुत चीज़ें मायने रखती है. आर के बैनर की फ़िल्म कल आज कल जब रिलीज हुई थी उस वक़्त 70 के युद्ध शुरू हो गए थे. मुश्किल से एक या दो शो हो पाते थे क्योंकि शाम में ब्लैकआउट हो जाता था वॉर की वजह से. अब एक दो शो में कोई फ़िल्म चलने से रही. मेरे पिता कहते थे कि देश में जो कुछ भी होता है फिर चाहे,भूकंप हो बाढ़ हो या दूसरी कोई चीज़ उससे सबसे पहले एंटरटेनमेंट ही प्रभावित होता है. हल्की बारिश होगी तो भी फिल्में प्रभावित होंगी हां ज़्यादा बारिश हुई लोग काम पर नहीं जा पाए तो फिर वो थिएटर मनोरंजन के लिए आएंगे.

क्या आप अपने काम को लेकर क्रिटिक्स भी हैं?

मैं अपनी और अपने बेटे रणबीर कपूर की फिल्में नहीं देखता हूं. जब देखता हूं तो मुझे लगता है कि अरे ये ठीक नहीं हुआ उसको ऐसे कर लेता तो अच्छा होता था. मेरे और रणबीर के लिए नीतू फ़िल्म देखती है. वो अपनी राय रखती है.

अगले साल इंडस्ट्री में आपके 50 साल पूरे होने वाले हैं क्या कोई रिग्रेट रहा है जर्नी को कैसे याद करते हैं?

अगर आप जोकर से गिनती करते हैं तो हां अगले साल 50 पूरे हो जाएंगे लेकिन मैं बॉबी से अपने कैरियर की शुरुआत मानता हूं लेकिन एक हकीकत ये भी है कि बॉबी में इंट्रोड्यूस ये शब्द सिर्फ डिंपल के साथ जुड़ा था मेरे नाम के आगे नहीं. अब तक की जर्नी बहुत यादगार रही है. 50 साल काम करना आसान नहीं होता है बॉबी 1972 में रिलीज हुई थी. 72 से 1997 तक लगातार मैंने काम किया था फिर कुछ साल ब्रेक और फिर ये दिलचस्प सेकेंड इनिंग शुरू हो गयी. जहां तक रिग्रेट की बात है तो मेरा कोई रिग्रेट नहीं है. मैं रणबीर से हमेशा ये बात कहता रहा हूं कि सफलता कभी तेरे सर पर ना जाये और असफलता दिल पर.

किसी फ़िल्म को करने का सेकंड इनिंग में अफसोस है?

‘दिल्ली 6’ की ही बात करूं तो मैंने राकेश ओम प्रकाश मेहरा के नाम पर वो फ़िल्म कर ली थी. स्क्रिप्ट नहीं पढ़ी थी. उनका कहना था कि आपको मुझ पर यकीन है ना, लेकिन शूटिंग में जो कुछ भी बोला गया था वो नहीं हुआ. इतने सारे किरदार फ़िल्म में ले लिए गए थे. उनको आपस में जोड़ने में निर्देशक कंफ्यूज़ हो गया था और पर्दे पर जो आया वो दर्शकों को कंफ्यूज कर गया. उस वक़्त से मैंने तय कर लिया कि मैं किसी निर्देशक के नाम पर फ़िल्म नहीं करूंगा. स्क्रिप्ट देखकर करूँगा.

50 सालों में इंडस्ट्री में आप क्या फर्क पाते हैं?

सिस्टेमैटिक सबकुछ हो गया है. क्लीन मनी अब फिल्मों में लगती है. स्टूडियो अब कॉरपोरेट की तरह काम करता है हर चीज़ का कंप्यूटर पर हिसाब रहता है तो कोई हेरा फेरी नहीं होती है अब इंडस्ट्री बहुत बड़ी हो गयी है और हर तिमाही में 15 प्रतिशत वो बढ़ रही है. हमारा ओवरसीज मार्केट बहुत बड़ा हो गया है. सिर्फ पाकिस्तान और बांग्लादेश ही नहीं पूरी दुनिया हमें देख रही है. दो हफ्ते पहले मैं म्युनिक में था वहां की सड़कों पर कितने लोग मुझे पहचान रहे थे. मैं बता नहीं सकता है. ओटीटी प्लेटफार्म की वजह से अब किसी भी देश में लोग हमारी फिल्में देख सकते हैं.

Budhmani Minj
Budhmani Minj
Senior Journalist having over 10 years experience in Digital, Print and Electronic Media.Good writing skill in Entertainment Beat. Fellow of Centre for Cultural Resources and Training .

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