23.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

आदिवासी दिवस पर विशेष : भारत के छले हुए लोग

– ग्लैडसन डुंगडुंग – 9 अगस्त को प्रत्येक वर्ष आदिवासी दिवस आते ही मन में यह प्रश्न उठता है कि हम आदिवासियों को अपने देश (आजाद भारत) में अबतक क्या मिला? यदि हम आदिवासियों के मुद्दों को लेकर संविधान सभा में हुई बहस पर गौर करें तो यह स्पष्ट दिखता है कि मरंग गोमके जयपाल […]

– ग्लैडसन डुंगडुंग –

9 अगस्त को प्रत्येक वर्ष आदिवासी दिवस आते ही मन में यह प्रश्न उठता है कि हम आदिवासियों को अपने देश (आजाद भारत) में अबतक क्या मिला? यदि हम आदिवासियों के मुद्दों को लेकर संविधान सभा में हुई बहस पर गौर करें तो यह स्पष्ट दिखता है कि मरंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा आदिवासी मसले पर बहुत स्पष्ट थे. उनकी मौलिक मांग थी कि संविधान में आदिवासी शब्द को रखा जाये, अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों को स्वायत्तता दी जाये और लोकतांत्रिक ढांचे में आदिवासियों को पीसने के बजाय देश को उनसे लोकतंत्र सीखना चाहिए क्योंकि वे धरती पर सबसे लोकतांत्रिक लोग हैं. इस बहस के दौरान देश के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने जयपाल सिंह मुंडा से कहा था कि आप दस वर्षों में आदिवासी शब्द को ही भूल जायेंगे. उनके कहने का तात्पर्य यह था कि भारत सरकार आदिवासियों के साथ संपूर्ण न्याय करेगी और उनकी पीड़ा हमेशा के लिए दूर हो जायेगी. यहां मौलिक प्रश्न यह है कि आज आदिवासी इलाकों में अंतहीन पीड़ा, क्रंदन और किलकारी क्यों है?

यद्यपि आजाद भारत के शासकों ने आदिवासियों के साथ न्याय करने का वादा किया था, लेकिन काम ठीक इसके विपरीत हुआ. भारतीय संविधान के मूर्त रूप लेते ही आदिवासी लोग छले गये. ब्रिटिश शासन के समय आदिवासियों के लिए अंग्रेजी में ‘अबॉरिजिनल’ शब्द का प्रयोग किया जाता था, जिसका अर्थ आदिवासी है. इसलिए जब संविधान का प्रारूप तैयार हुआ तो उसमें आदिवासियों के लिए संविधान के अनुच्छेद 13(5) में ‘अबॉरिजिनल और आदिवासी शब्द’ रखा गया था. संविधान सभा में बहस के दौरान जयपाल सिंह मुंडा ने कहा था कि हमें ‘आदिवासी’ शब्द के अलावा कुछ मंजूर नहीं होगा, क्योंकि यह हमारी पहचान का सवाल है. लेकिन, जातिवाद से ग्रसित नेताओं ने आदिवासियों के ऊपर जातिवाद को थोपते हुए संविधान में आदिवासियों को ‘जनजाति’ का दर्जा देकर उनके आदिवासी पहचान पर सीधा प्रहार किया. आजाद भारत में यह आदिवासियों के साथ सबसे बड़ा छलावा था, क्योंकि पहचान और अस्मिता की लड़ाई आदिवासियों की सबसे बड़ी लड़ाई है.

भारत में संविधान लागू होने के बाद देश के आदिवासी बहुल इलाकों में औद्योगिक विकास को गति मिली, क्योंकि ये इलाके खनिज संपदा से परिपूर्ण थे. भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सोवियत रूस के विकास मॉडल को यहां लागू करते हुए आदिवासियों से आह्वान किया कि वे राष्ट्रहित के लिए बलिदान दें. आदिवासी इलाकों में डैम बनाया गया, खनन कार्य बड़े पैमाने पर शुरू हुए और बड़े-बड़े उद्योग लगाये गये. इसका हस्र यह हुआ कि आदिवासियों का बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ और आदिवासी इलाके में गैर-आदिवासी जनसंख्या की घुसपैठ हुई. फलस्वरूप, आदिवासी लोग अपने ही इलाकों में अल्पसंख्यक हो गये. देशभर में लगभग एक करोड़ आदिवासी विस्थापित हुए हैं. सबसे दुखद बात यह है कि आदिवासियों की जमीन को डुबाकर बिजली पैदा करने के लिए डैम का निर्माण किया गया, लेकिन आदिवासी गांवों में बिजली नहीं है. उनकी जमीन पर सिंचाई परियोजना स्थापित की गयी, लेकिन उनके खेतों में पानी नहीं है. उनके इलाके में खनन कार्य हो रहा है, लेकिन बच्चे कुपोषित हैं और उनको शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं नसीब नहीं हो सकी हैं. ऐसी स्थिति में सवाल उठता है कि विकास किसके लिए और किसकी कीमत पर? देश में सबसे पहले विकास परियोजनाओं का लाभ किसको मिलना चाहिए था? देश के विकास, आर्थिक तरक्की और राष्ट्रहित के नाम पर आदिवासियों के साथ सबसे ज्यादा अन्याय हुआ है.

1980 के दशक में संघ परिवार को इस बात का एहसास हुआ कि आदिवासी बहुल राज्यों में शासन करना है, तो आदिवासियों की एकता को तोड़ना होगा और धर्म आधारित विवाद इसके लिए सबसे बड़ा हथियार है. इसी आधार पर संघ परिवार ने आदिवासियों के बीच सरना और ईसाई आदिवासी नामक हथियार को खोज कर निकाला. वर्ष 2000 पहुंचते-पहुंचते संघ परिवार ने आदिवासी इलाको में अपनी मजबूत पकड़ बना ली. इसी का परिणाम है कि आज देश के आदिवासी बहुल इलाकों के अधिकतर सीट भाजपा जीत पा रही है. इन इलाकों में आदिवासी लोग अपनी मूल लड़ाई को छोड़ धर्म के विवाद में फंस कर आपस में लड़ रहे हैं, जबकि आदिवासियों को आज तक धर्म कोड नहीं मिला. यह उनके लिए एक बड़ा छलावा है.

भारतीय संविधान में आदिवासियों के संरक्षण के लिए कानून तो बनाये गये, लेकिन नीतियों को लागू नहीं किया गया. जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हू-ब-हू लागू किया गया, लेकिन देश के अनुसूचित क्षेत्रों में अनुच्छेद 244(1) को सही ढंग से लागू ही नहीं किया गया. इसी तरह सीएनटी-एसपीटी जैसे भूमि रक्षा कानून, वन अधिकार कानून 2006, पेसा कानून 1996 जो आदिवासियों की जमीन और जंगल पर अधिकार तथा स्वायत्तता को बरकरार रखनेवाले कानूनों को सही ढंग लागू ही नहीं किया गया. जबकि, सुप्रीम कोर्ट ने 5 जनवरी 2011 को ‘कैलास एवं अन्य बनाम महाराष्ट्र सरकार’ स्पेशल लीव पीटिशन (क्रिमिनल) सं 10367 ऑफ 2010 के मामले में फैसला देते हुए कहा था कि आदिवासी लोग ही भारत के मूलनिवासी और देश के मालिक हैं. उनके साथ देश में सबसे ज्यादा अन्याय हुआ है. अब उनके साथ और अन्याय नहीं होना चाहिए. दुर्भाग्य है कि आज भी आदिवासियों के साथ अन्याय जारी है और वे अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

आदिवासी अस्मिता, अबुआ दिसुम अबुआ राज और प्राकृतिक संसाधनों पर मालिकाना हक की मांग पिछले तीन सौ वर्षों से आदिवासियों के संघर्षों की मूल मांगे हैं और उसी के तहत झारखंड, छत्तीसगढ़ और तेलांगना जैसे राज्यों की मांग की गयी थी. लेकिन, सबसे आश्चर्य की बात यह है कि झारखंड जैसे राज्य में भी सिर्फ 14 वर्षों में ही आदिवासियों के हाथों से सत्ता चली गयी. राज्य में मुख्यमंत्री गैर-आदिवासी को बनाया गया और आदिवासियों के सबसे बड़े संवैधानिक संस्थान ‘आदिवासी सलाहकार परिषद’ के अध्यक्ष पद पर भी गैर-आदिवासी ही विराजमान हैं. इसके अलावा झारखंड सरकार ने स्थानीय नीति बना कर बाहरी लोगों को झारखंडी घोषित कर दिया. आदिवासियों की जमीन सुरक्षा कानून सीएनटी-एसपीटी का संशोधन किया गया. फलस्वरूप, नौकरी, जमीन और जनसंख्या सब हाथ से निकल रहा है और आदिवासी अपने ही घर में बेघर हो रहे हैं.

आज बाहरी ताकतें आदिवासियों को धर्म के नाम पर आपस में लड़वा रही हैं. वहीं, केंद्र और राज्य सरकारें आदिवासियों को अपनी मूल लड़ाई से भटकाने की कोशिश में जुटी हैं, क्योंकि उन्हें उनकी जमीन, जंगल, पहाड़, जलस्रोत और खनिज संपदा चाहिए. इसलिए आदिवासी युवाओं को समझना चाहिए कि आज भी उनकी मूल लड़ाई है आदिवासी पहचान, अस्मिता, भाषा-संस्कृति, परंपरा और स्वायत्तता को बरकरार रखना तथा जमीन, जंगल, पहाड़, जलस्रोत और खनिज संपदा पर अपना मालिकाना हक हासिल करना. क्या आदिवासी युवा फिर से उलगुलान करेंगे? आदिवासियों के लिए आदिवासी दिवस उसी दिन सार्थक होगा, जिस दिन भारत के संविधान में अनुसूचित जनजाति की जगह आदिवासी शब्द डाला जायेगा, अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासी स्व-शासन व्यवस्था कायम की जायेगी और आदिवासियों को प्राकृतिक संसाधनों पर मालिकाना हक दिया जायेगा.

Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel