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शक्तिशालिनी -2: ट्रांसपोर्टर पति की मौत से भी नहीं टूटा नीरू का धैर्य, खुद संभाला व्यवसाय

स्त्री यानी मां, वात्सल्य, प्रेम, त्याग, खुशी.. न जाने और कितने नाम. शायद नहीं कर बांध सकते उसे शब्दों में. आज जब वक्त बदला है, तो उसकी भूमिका भी बदली है. शारदीय नवरात्र के उपलक्ष्य में हमने ‘शक्तिशालिनी ’ श्रृंखला शुरू की है. आज पढ़ें नीरू समलोक कहानी, जिन्होंने पति के निधन के बाद ट्रांसपोर्टिग […]

स्त्री यानी मां, वात्सल्य, प्रेम, त्याग, खुशी.. न जाने और कितने नाम. शायद नहीं कर बांध सकते उसे शब्दों में. आज जब वक्त बदला है, तो उसकी भूमिका भी बदली है. शारदीय नवरात्र के उपलक्ष्य में हमने ‘शक्तिशालिनी ’ श्रृंखला शुरू की है. आज पढ़ें नीरू समलोक कहानी, जिन्होंने पति के निधन के बाद ट्रांसपोर्टिग के व्यवसाय में अपना लोहा मनवाया..

जमशेदपुर: दुर्गा मां को शक्ति और सामथ्र्य की देवी के रूप में जाना जाता है. हालांकि हमारे समाज में भी कई ऐसी महिलाएं हैं, जिन्होंने समय को मात देते हुए अपना एक अलग मुकाम बनाया है. ऐसी ही एक महिला हैं नीरू समलोक. नीरू ऐसी महिलाओं के लिए मिसाल हैं जो ये सोचती हैं कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में कमजोर होती हैं या जो विपरीत परिस्थितियों में हताश हो जाती हैं और हिम्मत छोड़ देती हैं. पति के निधन के बाद ट्रांसपोर्टिग जैसे पुरुषों के वर्चस्व वाले कार्यक्षेत्र को चुनने का निर्णय ना आसान था और ना ही इसमें काम करना.

खुशहाल थी जिंदगी

नीरू बताती हैं कि मैं एक अच्छे और शिक्षित परिवार से थी. जहां मेरी शादी हुई वहां पर भी मुङो सास-ससुर के रूप में मां-पिता ही मिले. मेरे पति स्व. महेंद्र समलोक काफी अच्छे इंसान थे और उन्होंने एक पति और एक पिता के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को काफी अच्छे तरीके से निभाया. उनकी और मेरी बांडिंग काफी अच्छी थी. शादी के बाद मैं एक गृहिणी ही थी. पर, मुझ पर कभी भी किसी तरह की कोई रोक-टोक नहीं लगायी गयी. लेकिन फिर हमारी जिंदगी में अचानक तूफान सा आ गया.

आज से करीब 11 साल पहले एक मैसिव हार्ट अटैक के चलते मेरे पति की अकस्मात मौत हो गयी. यह हम सबके लिए एक बड़ा सदमा था. मेरी हिम्मत टूट चुकी थी. एक तरफ तो मेरे सामने दो छोटे-छोटे बच्चे और परिवार की जिम्मेदारी थी. और दूसरे मेरे पति का ट्रांसपोर्टिग का बिजनेस, जिसे वे काफी प्यार करते थे. मैंने हिम्मत नहीं हारी और ठाना कि मैं अपने पति के बिजनेस को आगे ले जाऊंगी और अपने बच्चों और परिवार की जिम्मेदारी खुद उठाऊंगी. हालांकि मेरी पहली प्राथमिकता थी बच्चों की अच्छी परवरिश हो. मेरी बेटी तब केवल नौ साल की थी और बेटा चार साल का.

संगी-साथियों ने दिया साथ

जब मेरे पति की मौत हुई उस वक्त मैं केवल एक घरेलू महिला थी और बाहरी कामों को लेकर मेरे पास कोई भी अनुभव नहीं था. बस मन में एक विश्वास और दृढ़ संकल्प था. और कहते हैं कि जिसके पास हिम्मत होती है वह अपनी मंजिल खुद तलाश लेता है. ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ. जब मैंने अपने संगी-साथियों जो कि उन दिनों मेरे पति के साथ काम किया करते थे, उनको बताया कि मैं अपने पति के ट्रांसपोर्टिग बिजनेस को आगे ले जाना चाहती हूं तो सभी ने मुङो काफी प्रोत्साहित किया. इससे मेरा मनोबल भी काफी ऊंचा हो गया और मुङो अपनी राह नजर आने लगी.

काफी कठिन था काम करना

राह इतनी भी आसान नहीं थी. जब मैंने अपने पति का व्यवसाय संभाला, तो न मेरे पास काम करने का कोई अनुभव था और न ही कोई गॉड फादर. मैंने सिंपल बीकॉम और बीएड कर रखा था. बिजनेस स्टडी से भी मेरा कोई वास्ता नहीं था. मतलब कुल मिला कर कहूं तो मैं कुछ नहीं जानती थी. और मैं ऐसे बिजनेस में इनवाल्व होने जा रही थी जहां पुरुषों का वर्चस्व है. ऐसे में मेरे लिए काम करना काफी कठिन था. मुङो ऑफिस को तो संभालना था ही, साथ ही बाहर के लोगों को भी हैंडल करना था. कई बार जब गाड़ियों का एक्सीडेंट हो जाता या गाड़ियां चेकिंग में फंस जातीं, तो मुङो काफी माथा-पच्ची करनी पड़ती. ड्राइवरों को समझाने से लेकर हिसाब-किताब करना, सब कुछ मुङो ही संभालना था. ऐसे में मेरे साथ काम करने वालों ने मेरा साथ दिया और मेरे काम को इजी बनाने में मदद की.

सब कुछ हो गया सही

आज मेरे पति को गुजरे 11 साल हो गये हैं और मेरी जिंदगी फिर से खुशहाल हो गयी है हालांकि मेरे पति की कमी मुङो आज भी खलती है पर अपने बच्चों को सफल होते देख संतोष होता है कि मेरी मेहनत रंग लायी. मेरे बच्चे भी मुङो काफी प्यार करते हैं. आज मेरा बिजनेस काफी अच्छा चल रहा है और मेरा बेटा देवनीत समलोक बिजनेस में मेरा हाथ बटा रहा है. जबकि मेरी बेटी संजना समलोक बेंगलुरु से बीबीए की पढ़ाई कर रही है.

खुद को न समङों कमजोर

मैं सभी महिलाओं से केवल एक ही बात कहना चाहूंगी कि आज के जमाने में कोई भी ऐसा काम नहीं जो पुरुष कर सकते हैं और महिला नहीं कर सकती. बस आप को खुद को मजबूत बनाना होगा. कभी भी ये न सोंचें कि हम कमजोर हैं.

Prabhat Khabar Digital Desk
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