Donald Trump Tariff Policy: हाल ही में अमेरिका द्वारा भारत समेत करीब 60 देशों पर लगाए गए जवाबी शुल्क को लेकर आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि इससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ने की आशंका नहीं है. विशेषज्ञों का मानना है कि इससे न तो देश में महंगाई में बड़ा उछाल आएगा और न ही रोजगार के मोर्चे पर कोई गंभीर संकट खड़ा होगा. बल्कि यह स्थिति भारत को वैश्विक व्यापार में नई संभावनाएं और प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त भी दिला सकती है.
आरआईएस के महानिदेशक प्रो. सचिन चतुर्वेदी के मुताबिक, इन शुल्कों का पूरा असर आंकलन करने के लिए अभी थोड़ी प्रतीक्षा करनी होगी क्योंकि ये व्यापारिक उपाय अभी अपने शुरुआती चरण में हैं और इनका स्वरूप अभी विकसित हो रहा है. उन्होंने कहा कि भारत इन बदलावों के साथ तालमेल बिठाने में सक्षम है और सक्रिय रूप से नई व्यापारिक हकीकत को अपना रहा है.
प्रो. चतुर्वेदी ने बताया कि अमेरिका के इस कदम से वे देश अधिक प्रभावित हो सकते हैं, जो अब तक अमेरिका के साथ ‘सर्वाधिक तरजीही राष्ट्र’ (Most Favoured Nation – MFN) के दर्जे के तहत व्यापार करते आए हैं. इसके मुकाबले भारत ने अपने व्यापारिक संबंधों को व्यापक बनाया है और वैकल्पिक बाजारों के साथ अपने जुड़ाव को मजबूत किया है.
भारत का अमेरिका को निर्यात लगभग 75.9 अरब डॉलर का है. इसमें फार्मास्युटिकल्स (8 अरब डॉलर), कपड़ा (9.3 अरब डॉलर) और इलेक्ट्रॉनिक्स (10 अरब डॉलर) जैसे प्रमुख क्षेत्र शामिल हैं, जिनमें अमेरिका से स्थायी मांग बनी हुई है. चतुर्वेदी ने बताया कि इन क्षेत्रों में से कुछ को अमेरिका ने छूट की श्रेणी में रखा है, जिससे भारत को अन्य देशों के मुकाबले फायदा मिल सकता है.
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भारत पर जहां 26 प्रतिशत शुल्क लगाया गया है, वहीं बांग्लादेश पर 37%, श्रीलंका पर 44% और वियतनाम पर 46% तक का शुल्क लगाया गया है. इससे भारत को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में तुलनात्मक लाभ मिल सकता है और वह वैश्विक बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा सकता है.
मद्रास स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के निदेशक प्रो. एन. आर. भानुमूर्ति का कहना है कि यह पूरी स्थिति अभी भी विकसित हो रही है. कुछ देश, जैसे चीन और कनाडा, पहले ही अमेरिका के इस कदम का जवाब दे चुके हैं. ऐसे में अन्य देश भी जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं, जिससे वैश्विक व्यापार संबंधों में और जटिलता आ सकती है.
भानुमूर्ति ने कहा कि अल्पकालिक रूप में अमेरिका में महंगाई बढ़ने की संभावना है और कुछ अर्थशास्त्री वहां मंदी आने की आशंका भी जता रहे हैं. फेडरल रिजर्व ने संकेत दिया है कि उसे अपनी मौजू्रिक नीति में बदलाव करना पड़ सकता है. हालांकि, वैश्विक आर्थिक वृद्धि और महंगाई पर इसका कितना असर होगा, यह अभी कहना मुश्किल है.
उन्होंने कहा कि भारत के लिए यह समय अवसरों से भरा हो सकता है, खासकर तब जब भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार समझौता (BTA) तेजी से आगे बढ़ रहा है. इसके साथ ही भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) में अमेरिका की भागीदारी भी भारत को रणनीतिक लाभ दे सकती है.
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प्रो. चतुर्वेदी ने इस बात पर जोर दिया कि भारत ऐसे कई उद्योगों में प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति में है जो अमेरिका को निर्यात करते हैं. इनमें औषधि क्षेत्र सबसे महत्वपूर्ण है, जिसे जवाबी शुल्क से छूट मिली है. साथ ही, पेट्रोलियम जैसे उत्पाद भी अधिक प्रभावित नहीं होंगे. इससे रोजगार पर नकारात्मक असर पड़ने की संभावना बेहद कम है, बल्कि भारत में इन उद्योगों में नई नौकरियां पैदा हो सकती हैं.
प्रो. भानुमूर्ति ने बताया कि वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़ा और इस्पात जैसे क्षेत्रों पर अमेरिकी शुल्क का असर देखने को मिल सकता है. लेकिन वहीं औषधि और पेट्रोलियम जैसे उत्पादों को छूट मिलने से इन क्षेत्रों को राहत मिलेगी. उन्होंने कहा कि डॉलर के मुकाबले रुपये की विनिमय दर भी इस पर प्रभाव डालेगी कि भारत को कितना लाभ या नुकसान होगा.
उन्होंने यह भी जोड़ा कि वैश्विक तेल कीमतों में हाल में आई गिरावट के कारण कुछ वस्तुओं के दाम घटे हैं, जिससे महंगाई पर नियंत्रण में मदद मिली है. हालांकि, अमेरिका को होने वाले भारतीय निर्यात में गिरावट की संभावना है, जिसे भारत अमेरिका से अधिक आयात कर संतुलित करने की कोशिश कर सकता है.
कुल मिलाकर, विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका के जवाबी शुल्क का भारत की अर्थव्यवस्था पर असर सीमित रहेगा. इसके बजाय, भारत के पास वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ने और नए बाजारों में अपनी पैठ मजबूत करने का अवसर है. आने वाले समय में यदि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते और मजबूती से लागू होते हैं, तो भारत इस चुनौतीपूर्ण स्थिति को एक नए अवसर में बदल सकता है.
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