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5000 मौत, हिंदू इलाका और एक काली रात, जिंजीरा नरसंहार की दर्दनाक कहानी

Jinjira Massacre: 3 अप्रैल 1971 को पाकिस्तानी सेना ने जिंजीरा में हजारों बंगालियों का नरसंहार किया. धर्म और जातीयता के आधार पर हिंदू बहुल इलाकों को निशाना बनाया गया. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, 5000 से अधिक लोग मारे गए. यह बांग्लादेश मुक्ति संग्राम का एक भयावह अध्याय था.

Jinjira Massacre: बांग्लादेश के इतिहास में 3 अप्रैल 1971 का दिन उन काले अध्यायों में से एक है, जिसे बंगाली कभी नहीं भूल सकते. यह दिन याद दिलाता है कि किस तरह पाकिस्तान से आजादी के संघर्ष में लाखों निर्दोष लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन को कुचलने के लिए क्रूर दमनचक्र चलाया, जिसमें खासकर धर्म और जातीयता के आधार पर लोगों को निशाना बनाया गया. इसी के तहत जिंजीरा में भीषण नरसंहार हुआ, जहां एक ही रात में हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया.

ऑपरेशन सर्चलाइट और जिंजीरा पर हमला ( Pakistan Bangladesh War) 

25 मार्च 1971 को पाकिस्तानी सेना ने “ऑपरेशन सर्चलाइट” के तहत ढाका में कत्लेआम शुरू किया. विश्वविद्यालयों में घुसकर छात्रों और बुद्धिजीवियों को मार दिया गया. इस हिंसा से बचने के लिए हजारों लोग नदी पार कर जिंजीरा और उसके आसपास के इलाकों में शरण लेने पहुंचे. लेकिन पाकिस्तानी सेना ने इन इलाकों को भी अपने सैन्य अभियान के लिए चिन्हित कर लिया.

हिंदू बहुल इलाकों में बेरहम हत्याकांड (Brutal massacre in Hindu majority areas)

जिंजीरा और उसके आसपास मुख्य रूप से हिंदू परिवार रहते थे. पाकिस्तानी सैनिकों ने इन इलाकों में भीषण नरसंहार किया. एक प्रत्यक्षदर्शी, इरशाद सरदार के अनुसार, सैनिकों ने उनके घर में घुसकर तीन भतीजों को गोली मार दी. वह खुद बिस्तर के नीचे छिपे रहे, लेकिन उनके चौथे भतीजे को भी मार दिया गया. उन्होंने अकेले 20 शवों को दफनाया.

5000 से ज्यादा लोगों की हत्या

यह कहानी केवल एक घर की नहीं थी. केरानीगंज के जिंजीरा, कालिंदी और शुभड्डा गांवों में भी यही हुआ. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, पाकिस्तानी सेना ने इन गांवों को चारों ओर से घेरकर कम से कम 5000 लोगों को मौत के घाट उतार दिया. इन इलाकों को अवामी लीग का गढ़ माना जाता था और यहां बड़ी संख्या में हिंदू समुदाय के लोग रहते थे.

Jinjira Massacre
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कब्रिस्तान में छिपे लोग और नस्लीय नरसंहार

उस भयावह रात को याद करते हुए संयुक्त राष्ट्र मिशन के पूर्व प्रेस काउंसलर अब्दुल हन्नान बताते हैं कि गोलीबारी से बचने के लिए लोग कब्रों में छिपने को मजबूर थे. उन्हें यह डर भी था कि कहीं वहां सांप और जहरीले कीड़े न हों, लेकिन पाकिस्तानी सेना के हाथों मरने का डर इससे भी बड़ा था.

पाकिस्तानी सैनिकों ने धर्म के आधार पर लोगों को मारा. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, कई लोगों को सिर्फ इसलिए छोड़ दिया गया क्योंकि उन्होंने ‘ला इलाहा इलल्लाह’ कहा, लेकिन हजारों अन्य निर्दोष लोगों को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया.

बांग्लादेश के इतिहास का काला अध्याय

3 अप्रैल 1971 का जिंजीरा नरसंहार बांग्लादेश के इतिहास में सबसे भयानक घटनाओं में से एक है. इस नरसंहार को वियतनाम के माई लाई हत्याकांड, बोस्निया के स्रेब्रेनिका नरसंहार, गाजा, कंबोडिया और रवांडा में हुए नरसंहारों की तरह ही बर्बर माना जाता है. यह नरसंहार बंगालियों के खिलाफ पाकिस्तानी सेना की नस्लीय घृणा और दमन का क्रूरतम उदाहरण था.

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Aman Kumar Pandey
Aman Kumar Pandey
अमन कुमार पाण्डेय डिजिटल पत्रकार हैं। राजनीति, समाज, धर्म पर सुनना, पढ़ना, लिखना पसंद है। क्रिकेट से बहुत लगाव है। इससे पहले राजस्थान पत्रिका के यूपी डेस्क पर बतौर ट्रेनी कंटेंट राइटर के पद अपनी सेवा दे चुके हैं। वर्तमान में प्रभात खबर के नेशनल डेस्क पर कंटेंट राइटर पद पर कार्यरत।

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