केशव चंद्र त्रिपाठी:जुलाई 2024 में रूस ने आधिकारिक रूप से तालिबान शासन को मान्यता दे दी है. यह पहला मौका है जब किसी देश ने अगस्त 2021 में सत्ता में आए तालिबान शासन को आधिकारिक दर्जा दिया हो. इसके साथ ही रूस ने अफगानिस्तान के साथ अपने संबंधों को एक नई दिशा दी है.
Russia Recognizes Taliban: तालिबान के सत्ता में आने की पृष्ठभूमि
15 अगस्त 2021 को तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया था. इससे पहले वहां राष्ट्रपति अशरफ गनी के नेतृत्व में लोकतांत्रिक सरकार थी. लेकिन तालिबान की सैन्य बढ़त के सामने सरकार ने घुटने टेक दिए और राष्ट्रपति गनी देश छोड़कर भाग गए. यह सत्ता परिवर्तन अमेरिका और तालिबान के बीच लंबे समय से चल रही बातचीत का परिणाम था.
रूस ने बदला रुख, आतंकवादी सूची से हटाया
तालिबान को रूस ने वर्ष 2003 में आतंकवादी संगठन घोषित किया था, लेकिन अप्रैल 2025 में रूस के सर्वोच्च न्यायालय ने इसे आतंकवादी सूची से हटा दिया. इसके बाद जुलाई 2024 में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने तालिबान को ‘आतंकवाद के खिलाफ सहयोगी’ बताया और उसे अफगानिस्तान की ‘असली शक्ति’ माना.
पढ़ें: रूस का साथ दिया तो बर्बाद कर देंगे – अमेरिका ने भारत, चीन और ब्राजील को दी खुली धमकी
अफगानिस्तान की रणनीतिक स्थिति
अफगानिस्तान यूरेशियन क्षेत्र, दक्षिण एशिया और पश्चिम एशिया को जोड़ने वाला सेतु है. ऐसे में यह क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय परिवहन गलियारे जैसे प्रोजेक्ट्स के लिए अहम है. रूस, जो मध्य एशिया में स्थिरता चाहता है, उसके लिए एक शांत अफगानिस्तान आवश्यक है.
भारत के लिए क्या मायने रखता है ये बदलाव
भारत ने अफगानिस्तान में कई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश किया है. ऐसे में एक स्थिर तालिबान सरकार उसके लिए आर्थिक रूप से लाभकारी हो सकती है. भारत को यह भी उम्मीद है कि रूस-तालिबान सहयोग से आतंकवाद और मादक पदार्थों की तस्करी पर अंकुश लगेगा. इससे भारत को भी अप्रत्यक्ष लाभ हो सकता है.
पढ़ें: पाकिस्तान का फुस्सी जेट लाया ‘शोपीस ट्रॉफी’, खुश होकर खुद ही थपथपाई पीठ
एससीओ और बहुपक्षीय मंचों पर संभावना
रूस की मान्यता के बाद भारत और तालिबान के बीच शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे बहुपक्षीय मंचों पर बातचीत और सहयोग की संभावनाएं बन सकती हैं. साथ ही, चाबहार बंदरगाह के जरिए भारत और मध्य एशिया के बीच संपर्क भी मजबूत हो सकता है.
मानवाधिकारों को लेकर भारत की चिंता बरकरार
हालांकि, भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए तालिबान की कट्टर विचारधारा और मानवाधिकारों की स्थिति चिंता का विषय बनी हुई है. ऐसे में भारत को तालिबान के साथ संतुलित और रणनीतिक रुख अपनाना होगा.
रूस द्वारा तालिबान को मान्यता देना एक रणनीतिक कदम है, लेकिन भारत को ऐसे निर्णय में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. भारत को अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए सोच-समझकर आगे बढ़ना चाहिए. तालिबान शासन पर आंख मूंदकर भरोसा करना भारत के लिए जोखिम भरा हो सकता है.
यह लेख जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्ट्डीज के शोध छात्र केशव चंद्र त्रिपाठी द्वारा लिखा गया है.