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Canada: ट्रूडो के इस्तीफे और ट्रंप की धमकियों से बदली कनाडा की राजनीति, लिबरल पार्टी फिर मजबूत

Canada: कनाडा की राजनीति में ट्रूडो के इस्तीफे और ट्रंप की धमकियों से नया मोड़ आया है. पहले कमजोर दिख रही लिबरल पार्टी फिर से मजबूत हो रही है. कंजर्वेटिव पार्टी के लिए यह चुनौतीपूर्ण स्थिति बन गई है. अमेरिका-कनाडा संबंधों पर असर पड़ सकता है, जिससे आगामी चुनाव दिलचस्प हो गया है.

Canada: कनाडा की राजनीति में हाल के महीनों में बड़ा बदलाव देखने को मिला है. कभी मजबूत दिखने वाली लिबरल पार्टी 2025 के आम चुनाव में हार की ओर बढ़ती नजर आ रही थी, लेकिन अब परिस्थितियां बदलती दिख रही हैं. प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की धमकियों ने कनाडा की चुनावी रणनीति को नया मोड़ दे दिया है.

लिबरल पार्टी की गिरती लोकप्रियता

कुछ महीने पहले तक लिबरल पार्टी की स्थिति कमजोर हो रही थी. बढ़ती महंगाई, आवास संकट और ट्रूडो के प्रति जनता के असंतोष के कारण पार्टी की लोकप्रियता में भारी गिरावट देखी गई थी. कई जनमत सर्वेक्षणों में लिबरल पार्टी, विपक्षी कंजर्वेटिव पार्टी से 26 प्रतिशत अंक तक पीछे चल रही थी.

ट्रूडो का इस्तीफा और नया नेतृत्व

6 जनवरी 2025 को जस्टिन ट्रूडो ने प्रधानमंत्री और लिबरल पार्टी के नेता पद से इस्तीफे की घोषणा की. लगभग एक दशक तक सत्ता में रहने के बाद ट्रूडो का यह फैसला लिबरल पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ. उनके इस्तीफे के बाद पार्टी में नए नेतृत्व की दौड़ शुरू हो गई, जिसने जनता में उत्साह और उम्मीद को फिर से जगा दिया. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रूडो के जाने से पार्टी को एक नया अवसर मिला है, क्योंकि उनकी नीतियों और नेतृत्व से कई मतदाता असंतुष्ट हो चुके थे. हाल के जनमत सर्वेक्षणों में लिबरल पार्टी और कंजर्वेटिव्स के बीच का अंतर कम होता दिख रहा है.

ट्रंप की धमकियां: चुनावी समीकरण में बदलाव

20 जनवरी 2025 को डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में अपना दूसरा कार्यकाल शुरू किया. सत्ता में आते ही उन्होंने कनाडा के प्रति सख्त रुख अपनाया. उन्होंने कनाडाई आयात पर 25% टैरिफ लगाने की धमकी दी और यहां तक कह दिया कि कनाडा “51वां अमेरिकी राज्य” बन सकता है. कनाडा अपनी 75% निर्यात अर्थव्यवस्था के लिए अमेरिका पर निर्भर है. ऐसे में ट्रंप की धमकियां कनाडा के लिए एक गंभीर आर्थिक खतरा बन गईं. हालांकि, इसने लिबरल पार्टी को फिर से एकजुट होने का मौका भी दिया. ट्रूडो ने अपने अंतिम दिनों में “टीम कनाडा” दृष्टिकोण अपनाते हुए ट्रंप के खिलाफ कड़ा रुख दिखाया, जिसे जनता ने सकारात्मक रूप से लिया.

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कंजर्वेटिव पार्टी की स्थिति

कंजर्वेटिव पार्टी के नेता पियरे पोइलिवरे पिछले एक साल से महंगाई और कार्बन टैक्स जैसे घरेलू मुद्दों को उठाकर जनता का समर्थन हासिल करने में सफल रहे थे. लेकिन ट्रंप की धमकियों के बाद चुनावी मुद्दे बदलने लगे हैं. अब कनाडाई मतदाता यह सोचने लगे हैं कि कौन सा नेता अमेरिका के साथ आर्थिक और कूटनीतिक मुद्दों को बेहतर ढंग से संभाल सकता है. विशेषज्ञों का मानना है कि पोइलिवरे का आक्रामक रवैया विपक्ष में तो कारगर साबित हुआ, लेकिन उनकी ट्रंप से समानता वाली छवि ने मतदाताओं के बीच संदेह पैदा किया है. दूसरी ओर, लिबरल पार्टी के संभावित नेता जैसे मार्क कार्नी और क्रिस्टिया फ्रीलैंड ट्रंप के खिलाफ सख्त रवैया अपनाने का वादा कर रहे हैं, जिससे जनता का झुकाव उनकी ओर बढ़ सकता है.

जनमत सर्वेक्षणों में लिबरल पार्टी की वापसी

हाल के जनमत सर्वेक्षणों में लिबरल पार्टी का समर्थन बढ़ता हुआ दिख रहा है. फरवरी 2025 में आईप्सोस के एक सर्वेक्षण में पहली बार लिबरल पार्टी को कंजर्वेटिव पार्टी पर बढ़त मिलती दिखी. क्यूबेक और ओंटारियो जैसे महत्वपूर्ण प्रांतों में लिबरल समर्थन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ट्रंप की धमकियों ने मतदाताओं का ध्यान लिबरल पार्टी की नीतियों से हटाकर अमेरिका-कनाडा संबंधों की ओर केंद्रित कर दिया है. इसके अलावा, लिबरल पार्टी का सिख समुदाय और खालिस्तानी समर्थकों के बीच मजबूत आधार भी उसे सत्ता में वापसी की उम्मीद दे रहा है.

खालिस्तानी समर्थन और भारत के साथ संबंध

ट्रूडो के कार्यकाल में खालिस्तानी समर्थकों को लेकर उनकी नीति विवादों में रही है. खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद ट्रूडो ने भारत पर बिना सबूत आरोप लगाए थे, जिससे भारत-कनाडा संबंधों में तनाव आ गया था. ट्रूडो की खालिस्तानी समर्थक नीतियों के कारण कनाडा में हिंदू और सिख समुदायों के बीच तनाव बढ़ा और उनकी सरकार की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी नुकसान पहुंचा. घरेलू स्तर पर भी उनकी नीतियों से लिबरल पार्टी में असंतोष पनपने लगा, और कंजर्वेटिव पार्टी ने महंगाई व बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर ट्रूडो को घेरना शुरू कर दिया.

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लिबरल पार्टी 9 मार्च 2025 को अपना नया नेता चुनेगी, जो तब तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री की भूमिका भी निभाएगा. पूर्व केंद्रीय बैंकर मार्क कार्नी इस दौड़ में सबसे आगे माने जा रहे हैं. कुछ जनमत सर्वेक्षणों में कार्नी के नेतृत्व में लिबरल और कंजर्वेटिव पार्टियों के बीच कांटे की टक्कर दिख रही है. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि लिबरल पार्टी की हालिया बढ़त स्थायी होगी या नहीं, यह नए नेता के प्रदर्शन और ट्रंप की नीतियों पर निर्भर करेगा. यदि ट्रंप कनाडा के खिलाफ कड़ा रुख बनाए रखते हैं, तो लिबरल पार्टी को फायदा हो सकता है.

ट्रूडो के इस्तीफे और ट्रंप की धमकियों ने कनाडा की राजनीति को नया आयाम दे दिया है. लिबरल पार्टी, जो कुछ महीने पहले हार की कगार पर थी, अब एक मजबूत प्रतिस्पर्धी के रूप में उभर रही है. हालांकि, यह देखना बाकी है कि क्या यह वापसी चुनाव तक कायम रह सकती है. क्या खालिस्तानी समर्थकों की पसंदीदा पार्टी फिर से सत्ता हासिल करेगी, या कंजर्वेटिव पार्टी देश की कमान संभालेगी? कनाडा के मतदाता अब ऐसे नेता की तलाश में हैं, जो घरेलू समस्याओं को हल कर सके और अमेरिका के साथ संबंधों को भी संतुलित रख सके. आने वाले महीने इस राजनीतिक संघर्ष में निर्णायक भूमिका निभाएंगे.

Aman Kumar Pandey
Aman Kumar Pandey
अमन कुमार पाण्डेय डिजिटल पत्रकार हैं। राजनीति, समाज, धर्म पर सुनना, पढ़ना, लिखना पसंद है। क्रिकेट से बहुत लगाव है। इससे पहले राजस्थान पत्रिका के यूपी डेस्क पर बतौर ट्रेनी कंटेंट राइटर के पद अपनी सेवा दे चुके हैं। वर्तमान में प्रभात खबर के नेशनल डेस्क पर कंटेंट राइटर पद पर कार्यरत।

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