US UNESCO Exit: अमेरिका की डोनाल्ड ट्रंप सरकार ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र की शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संस्था UNESCO (यूनेस्को) से हटने का ऐलान कर दिया है. अमेरिकी विदेश विभाग टैमी ब्रूस ट्वीट करके इसकी पुष्टि की है. अमेरिकी विदेश विभाग ने मंगलवार को पुष्टि की कि यह फैसला अमेरिका के राष्ट्रीय हितों के खिलाफ संस्था की कार्यप्रणाली और इजरायल-विरोधी रुख के चलते लिया गया है. यह निर्णय दिसंबर 2026 से प्रभावी होगा. अमेरिका ने आरोप लगाया कि यूनेस्को एंटी-इजरायल प्रोपेगेंडा का अड्डा बन चुका है और फिलीस्तीन को सदस्यता देना उसकी पूर्वाग्रही सोच को दर्शाता है.
अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता टैमी ब्रूस ने बयान में कहा यूनेस्को सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर एक विभाजनकारी एजेंडा चला रहा है. साथ ही स्टेट ऑफ फिलिस्तीन को सदस्य बनाना अमेरिकी नीति के खिलाफ है और इससे इजरायल विरोधी बयानबाजी को बल मिला है. उन्होंने यह भी कहा कि संस्था संयुक्त राष्ट्र के SDGs जैसे वैश्विकवादी एजेंडे को बढ़ावा दे रही है, जो अमेरिका फर्स्ट नीति से मेल नहीं खाता.
‘वोक’ एजेंडा और वैश्विक विचारधारा से असहमति
व्हाइट हाउस की डिप्टी प्रवक्ता एना केली ने न्यूयॉर्क पोस्ट को बताया है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने यूनेस्को से अमेरिका को हटाने का निर्णय इसलिए लिया है क्योंकि यह संस्था ऐसे वोक और विभाजनकारी मुद्दों को बढ़ावा देती है, जो आम अमेरिकियों की सोच और कॉमनसेंस नीतियों के खिलाफ हैं. यह निर्णय ट्रंप के दूसरे कार्यकाल की उस नीति का हिस्सा है जिसके तहत अमेरिका कई वैश्विक संगठनों से अलग हो रहा है.
US UNESCO Exit: दिसंबर 2026 से प्रभावी होगा फैसला
अमेरिका की यह निर्णय 2026 के दिसंबर से प्रभावी होगी. इससे यूनेस्को के शिक्षा, संस्कृति और घृणा भाषण के खिलाफ चल रहे अभियानों को झटका लग सकता है. हालांकि यूनेस्को के पेरिस मुख्यालय में पहले से इस फैसले की आशंका थी और अधिकारियों ने इसकी तैयारी कर ली थी
यह तीसरा मौका है जब अमेरिका यूनेस्को से अलग हो रहा है. पहली बार 1983 में राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने यूनेस्को पर पश्चिमी विरोधी रुख का आरोप लगाते हुए अलगाव किया था. फिर 2003 में राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के कार्यकाल में अमेरिका लौट आया. 2017 में ट्रंप ने पहली बार यूनेस्को से अलग होने का फैसला लिया, जिसे अब दोहराया गया है.
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"Today, the United States announced our decision to withdraw from UNESCO..," US State Department's spokesperson Tammy Bruce tweets pic.twitter.com/2tlh98Stgo
— ANI (@ANI) July 22, 2025
बाइडन प्रशासन ने की थी वापसी
2023 में जो बाइडन सरकार ने यूनेस्को में दोबारा शामिल होने का निर्णय लिया था. इसका मकसद चीन के प्रभाव को संतुलित करना था, जो अमेरिका की अनुपस्थिति में सबसे बड़ा दाता बन चुका था. वापसी की शर्त के तौर पर अमेरिका ने करीब 619 मिलियन डॉलर के बकाया भुगतान पर सहमति दी थी और शिक्षा, होलोकॉस्ट स्मृति और पत्रकारों की सुरक्षा से जुड़े कार्यक्रमों में भागीदारी बढ़ाई थी.
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UNESCO की प्रतिक्रिया
यूनेस्को ने भी इसपे प्रतिक्रिया दी है कि महानिदेशक ऑड्रे अजोले ने अमेरिकी फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया लेकिन कहा कि इसे पहले ही अनुमानित कर लिया गया था. उन्होंने ट्रंप प्रशासन के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि संस्था ने ढांचागत सुधार किए हैं और फंडिंग स्रोतों का विविधीकरण किया है. उन्होंने कहा यूनेस्को के होलोकॉस्ट शिक्षा और यहूदी विरोध के खिलाफ कार्य किसी भी पूर्वाग्रह के दावे को झुठलाते हैं.
2011 में यूनेस्को ने फिलीस्तीन को पूर्ण सदस्यता दी थी, जिसे अमेरिका और इजरायल ने मान्यता नहीं दी. इसके बाद ओबामा प्रशासन ने यूनेस्को को फंड देना बंद कर दिया था जिससे अमेरिका पर करोड़ों डॉलर की बकाया राशि बन गई थी.