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पाकिस्तान-बांग्लादेश के इतिहास में क्या पढ़ाया जाता है? कोई महान, कोई कट्टर!

What Taught in Pakistan Bangladesh History: एनसीईआरटी की नई किताब में अकबर-औरंगजेब की छवि बदल दी गई है. क्या बच्चों को सिखाया जा रहा है राजनीतिक नजरिया? पाकिस्तान-बांग्लादेश में क्या है इनके बारे में पढ़ाई का सच? जानिए इतिहास की इस जंग के पीछे की पूरी कहानी.

What Taught in Pakistan Bangladesh History: एनसीईआरटी की कक्षा 8 की नई इतिहास की किताब में मुगल शासकों अकबर और औरंगजेब की नीतियों को लेकर बदला हुआ दृष्टिकोण सामने आया है, जिस पर अब बहस छिड़ गई है. किताब में जहां अकबर को “धार्मिक सहिष्णुता और क्रूरता का मिश्रण” बताया गया है, वहीं औरंगजेब को “धार्मिक कट्टर शासक” के रूप में प्रस्तुत किया गया है.

क्या बदला है किताबों में?

नई किताब में अकबर के जजिया कर हटाने, दीनी-ए-इलाही शुरू करने और हिंदू सरदारों को उच्च पद देने जैसे कार्यों का जिक्र किया गया है. वहीं औरंगजेब के शासन में जज़िया फिर से लागू करना, मंदिर तोड़वाना और धार्मिक असहिष्णुता जैसी नीतियों को प्रमुखता से दिखाया गया है. किताबों में बाबर से लेकर औरंगजेब तक के काल में दमन और हिंसा पर विशेष ध्यान दिया गया है.

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इतिहासकारों की प्रतिक्रिया

इस बदलाव को लेकर दो धाराएं सामने आई हैं. एक पक्ष का कहना है कि मुग़लों को गलत तरीके से प्रस्तुत कर इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है. जबकि दूसरे पक्ष का तर्क है कि छात्रों को केवल “गौरव” नहीं, बल्कि इतिहास की जटिलताओं को समझना भी सिखाना चाहिए.

What Taught in Pakistan Bangladesh History: पाकिस्तान और बांग्लादेश में क्या पढ़ाया जाता है?

नेटवर्क18 हिंदी की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान की स्कूली किताबों में औरंगजेब को “इस्लाम का रक्षक”, धार्मिक, सादा जीवन जीने वाला और न्यायप्रिय शासक बताया गया है. मंदिर तोड़ने और जजिया को इस्लामी परंपरा का पालन कहकर सही ठहराया गया है. वहीं अकबर को “भटका हुआ” और “इस्लाम विरोधी नीतियों” वाला शासक बताया जाता है.

बांग्लादेश की किताबों में ठीक उलटा चित्रण मिलता है. वहां अकबर को एक महान, सहिष्णु और सांस्कृतिक समरसता को बढ़ावा देने वाला शासक माना गया है. औरंगजेब की धार्मिक कट्टरता और असहिष्णुता की आलोचना की जाती है.

भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश, तीनों देशों में अकबर और औरंगजेब की छवि अलग-अलग ऐतिहासिक दृष्टिकोण से पेश की जाती है. यह अंतर केवल इतिहास नहीं, बल्कि राजनीति और विचारधारा से भी जुड़ा हुआ है. ऐसे में जरूरी है कि छात्रों को समग्र दृष्टिकोण सिखाया जाए, जिससे वे खुद इतिहास की आलोचनात्मक व्याख्या कर सकें.

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