Iran Nuclear Program: 13 जून को इजराइल द्वारा शुरू किए गए ‘ऑपरेशन राइजिंग लॉयन’ में ईरान के परमाणु कार्यक्रम को कमजोर करने के लिए कई हमले किए गए, जिनमें कम से कम 14 प्रमुख परमाणु वैज्ञानिकों की मौत की आशंका जताई गई है. मारे गए लोगों में इस्लामिक आजाद यूनिवर्सिटी के प्रमुख और जाने-माने भौतिक विज्ञानी मोहम्मद मेहदी तेहरानची, और ईरान परमाणु ऊर्जा संगठन के प्रमुख इंजीनियर फेरेयदून अब्बासी-दवानी शामिल हैं. ये दोनों वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह के संभावित उत्तराधिकारी माने जा रहे थे, जिनकी 2020 में हत्या कर दी गई थी.
इजराइल ने इस बार न सिर्फ वैज्ञानिकों को निशाना बनाया, बल्कि खुले तौर पर इस पूरे हमले की जिम्मेदारी भी ली. यह पिछले गुप्त अभियानों से एक बड़ा बदलाव माना जा रहा है. इजराइल ने ईरान के परमाणु ठिकानों, हवाई सुरक्षा ढांचे और ऊर्जा संरचनाओं को भी निशाना बनाया. सीरिया में असद शासन के कमजोर होने, हिज़बुल्लाह और हमास के ठिकानों पर हमलों और ईरान के छद्म नेटवर्क के टूटने के चलते इजराइल के लिए यह अभियान आसान हो गया.
हालांकि शोधकर्ताओं का कहना है कि वैज्ञानिकों की हत्या से परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता, सिर्फ उसकी गति धीमी हो सकती है. बल्कि ऐसे हमलों से संबंधित देश अपनी परमाणु महत्वाकांक्षाओं को और तेज कर सकता है. हमारे पास 1944 से 2025 तक वैज्ञानिकों को निशाना बनाने के लगभग 100 मामलों का डेटा है. इनमें अमेरिका और इजराइल के साथ-साथ ब्रिटेन और पूर्व सोवियत संघ का भी हाथ रहा है. मिस्र, ईरान और इराक जैसे देशों के वैज्ञानिक दशकों से हमलों के निशाने पर हैं.
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इसराइल द्वारा वैज्ञानिकों को लक्ष्य बनाना नया नहीं है. 1980 में भी मोसाद ने इराकी परमाणु परियोजना में शामिल यूरोपीय इंजीनियरों को चेतावनी देने के लिए इटली में बम धमाके किए थे. ईरान पहले भी फखरीजादेह जैसे वैज्ञानिकों को खो चुका है, जिनकी हत्या रिमोट कंट्रोल गन के जरिये की गई थी.
वैज्ञानिकों को निशाना बनाना तकनीकी रूप से आसान और अपेक्षाकृत सस्ता तरीका है, मगर इसकी वैधता और नैतिकता पर सवाल उठते हैं. यह रणनीति विरोधियों की परमाणु महत्वाकांक्षा को रोक पाने में अक्सर नाकाम रहती है और जनता में आक्रोश और प्रतिशोध की भावना भी भड़का सकती है.
अब जबकि ईरान ने अपनी संवर्धन क्षमता और यूरेनियम शुद्धता को बढ़ा दिया है, और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ सहयोग नहीं कर रहा, यह कहना कठिन है कि इस तरह के हमले कोई स्थायी समाधान पेश कर सकते हैं. सवाल बना रहेगा कि क्या वैज्ञानिकों को मारकर परमाणु प्रसार रोका जा सकता है, या यह सिर्फ एक अस्थायी और खतरनाक उपाय है?