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Subrata Roy : लैंब्रेटा स्कूटर और येजडी मोटरसाइकिल से सहारा श्री का खास कनेक्शन आपको प्रेरित करेगा, जानें

Subrata Roy Story - एक जमाने में सहारा ग्रुप का बिजनेस रियल एस्टेट, फाइनेंस, इंफ्रास्ट्रक्चर, हेल्थ केयर, हॉस्पिटैलिटी, रिटेल, इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, मीडिया, एंटरटेनमेंट और एयरलाइन सेक्टर तक फैला था. इसके बाद एक दौर ऐसा भी आया जब उन्हें जेल तक जाना पड़ा.

Subrata Roy Success Story : सहारा ग्रुप (Sahara Group) के प्रमुख सुब्रत रॉय का 75 साल की उम्र में मंगलवार रात (Subrata Roy Passed Away) निधन हो गया. उन्होंने मुंबई के कोकिला बेन अंबानी अस्पताल में अंतिम सांस ली. बताया जा रहा है कि रॉय लंबे समय से बीमारी से ग्रसित थे. वह मेटास्टैटिक, हाइपरटेंशन और डायबिटीज से लंबे वक्त से जूझ रहे थे. उनकी हालत खराब होने पर 12 नवंबर उन्हें कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल और मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (केडीएएच) में भर्ती कराया गया था. 14 नवंबर को रात 10 बजकर 30 मिनट पर कार्डियो रेस्पिरेस्पिरेटरी अरेस्ट के कारण उनका निधन हो गया. 10 जून 1948 को बिहार के अररिया जिले में जन्मे सुब्रत रॉय एक जमींदार परिवार से आते थे. उनके पूर्वज बांग्लादेश स्थित ढाका के रहनेवाले थे. आजादी के बाद राॅय परिवार भारत आ गया. पिता सुधीर चंद्र रॉय और माता छवि रॉय का फोकस सुब्रत रॉय की पढ़ाई में रहा. लेकिन, वह शुरू से ही पढ़ाई में औसत रहे थे. सुब्रत रॉय की शिक्षा अररिया (बिहार), कोलकाता (पश्चिम बंगाल) और गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) में हुई. वहीं, गोरखपुर की गलियों में सुब्रत रॉय ने स्कूटर पर नमकीन बेचने से अपने करियर की शुरुआत की थी. इसके बाद वह कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते गए. एक जमाने में सहारा ग्रुप का बिजनेस रियल एस्टेट, फाइनेंस, इंफ्रास्ट्रक्चर, हेल्थ केयर, हॉस्पिटैलिटी, रिटेल, इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, मीडिया, एंटरटेनमेंट और एयरलाइन सेक्टर तक फैला था. देखते ही देखते सुब्रत रॉय अरबों डॉलर की संपत्ति के मालिक बन चुके थे. बीबीसी की 2014 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, न्यूयॉर्क के प्लाजा होटल और लंदन के ग्रॉसवेनर हाउस पर भी सुब्रत रॉय का मालिकाना हक रहा. इसके अलावा वह फॉर्म्युला वन रेसिंग टीम के भी मालिक रहे. एक वक्त में सहारा समूह आईपीएल की पुणे फ्रेंचाइजी का मालिक था. इसके बाद एक दौर ऐसा भी आया जब उन्हें जेल तक जाना पड़ा.

लैंब्रेटा स्कूटर और येजडी मोटरसाइकिल से खास कनेक्शन

सहारा श्री सुब्रत रॉय का लैंब्रेटा स्कूटर और येजडी मोटरसाइकिल से खास कनेक्शन रहा था. गोरखपुर के राजकीय पॉलिटेक्निक से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के बाद सुब्रत राॅय ने नमकीन और बिस्कुट बनाने और बेचने का काम शुरू किया. सुब्रत रॉय को तब से जाननेवालों की मानें, तो उनके पास एक लैंब्रेटा स्कूटर हुआ करता था. इसी पर नमकीन और बिस्कुट से भरा सामान लोड कर वह गोरखपुर की गलियों में स्थित अलग-अलग दुकानों में उसे पहुंचाते थे. यही काम करते हुए दुकानदारों से उनकी पहचान हुई. यहीं उन्होंने छोटे दुकानदारों और कम आयवाले लोगों में बचत की आदत डालने की प्रेरणा दी. और यहीं से सहारा के नॉन-बैंकिंग फायनेंस कंपनी की शुरुआत हुई. उन्होंने गोरखपुर के तुर्कमानपुर में अधिवक्ता ईश्वरशरण श्रीवास्तव के घर में किरायेदार थे. वहीं उनके बच्चों का भी जन्म हुआ.

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लैंब्रेटा स्कूटर से पैसे कलेक्शन करने जाते

सुब्रत रॉय ने जब नॉन-बैंकिंग फायनेंस का कारोबार शुरू किया, तो उसमें भी उनका स्कूटर बड़े काम आया. अपनी लैंब्रेटा स्कूटर से दिन-रात घूम-घूमकर लोगों को बचत और निवेश के बारे में जागरूक करते और इसके फायदे बताते. बाद में जब लोगों का विश्वास जमने लगा, तो सुब्रत रॉय इसी लैंब्रेटा स्कूटर से लोगों के पास जाकर पैसे का कलेक्शन भी करने लगे. 1978 में सहारा की शुरुआत के समय सुब्रत रॉय की जेब में महज 2000 रुपये थे. सुब्रत को 70 के दशक से जानने वाले लोग बताते हैं कि तब दिन में 100 रुपये कमाने वाले लोग उनके पास 20 रुपये जमा करते थे. सुब्रत रॉय ने स्वप्ना रॉय से प्रेम विवाह किया है. सुब्रत रॉय ने उनके साथ स्कूल, कॉलेज में साथ पढ़े बीसियों लोगों को भी काम दिया.

जब दोस्त की येजडी मोटरसाइकिल पर पीछे बैठकर घूमते थे सहारा

पूरी दुनिया में शोहरत कमाने वाले सुब्रत राॅय कभी 175 रुपये महीने में किराये के मकान में रहते थे. सिगरेट का शौक उन्हें पढ़ाई के दौरान से ही था. एक समय था जब वे बेतियाहाता में रहनेवाले अपने मित्र बीडी मिश्रा की येजडी मोटरसाइकिल पर पीछे बैठकर घूमते थे. सुब्रत राॅय ने चिट फंड कंपनी सहारा की शुरुआत की, तो उससे बहुत लोगों को रोजगार भी मिला. धीरे-धीरे उनका यह कारोबार सब्जी बेचने वाले तक पहुंच गया और वे दो से पांच रुपये रोजाना जमा करने में भी हिचकते नहीं थे. यहीं से सुब्रत राॅय की कंपनी चल निकली. पहले गोरखपुर और फिर आसपास के जिलों में उन्होंने कारोबार को फैलाया. इस काम में उनके दोस्त की येजडी मोटरसाइकिल बड़े काम आयी. उनके कारोबार के शुरुआती दिनों से जुड़े लोगों की मानें, तो उनका कारोबार छोटे वर्ग से जुड़ा था. एक-एक, दो-दो रुपये रोज जमा करने की कच्ची पर्चियां काटते थे. बाद में महीने में एक बार हिसाब करते थे. एक दौर था जब उस समय की सारी चिट फंड एवं हाउसिंग कंपनियां बंद होने लगीं, लेकिन सहारा का व्यवसाय बढ़ता चला गया.

Rajeev Kumar
Rajeev Kumar
राजीव, 14 वर्षों से मल्टीमीडिया जर्नलिज्म में एक्टिव हैं. टेक्नोलॉजी में खास इंटरेस्ट है. इन्होंने एआई, एमएल, आईओटी, टेलीकॉम, गैजेट्स, सहित तकनीक की बदलती दुनिया को नजदीक से देखा, समझा और यूजर्स के लिए उसे आसान भाषा में पेश किया है. वर्तमान में ये टेक-मैटर्स पर रिपोर्ट, रिव्यू, एनालिसिस और एक्सप्लेनर लिखते हैं. ये किसी भी विषय की गहराई में जाकर उसकी परतें उधेड़ने का हुनर रखते हैं. इनकी कलम का संतुलन, कंटेंट को एसईओ फ्रेंडली बनाता और पाठकों के दिलों में उतारता है. जुड़िए [email protected] पर

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