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Career Guidance : सेरिकल्चरिस्ट के तौर पर बनाएं सिल्क इंडस्ट्री में भविष्य

भारत रेशम उत्पादन में दुनिया में दूसरे स्थान पर है और उपभोक्ता के तौर पर पहले. अपेरल इंडस्ट्री की मांगों को पूरा करने के लिए देश में बड़े पैमाने पर कच्चे रेशम के उत्पादन की जरूरत बनी हुई है. हालांकि, भारत के कच्चे रेशम उत्पादन में लगातार वृद्धि देखी गयी है और वर्ष 2017-18 के 31,906 मीट्रिक टन उत्पादन की तुलना में 2023-24 में रेशम उत्पादन 38,913 मीट्रिक टन हो गया. इसके साथ ही सेरीकल्चर के जानकारों के लिए काम करने के मौके भी लगातार बढ़े और यह बेहद डिमांड वाला करियर बन गया . जानें इस कार्यक्षेत्र में मौजूद संभावनाओं के बारे में...

Career Guidance : कच्चा रेशम बनाने के लिए रेशम के कीटों का पालन सेरीकल्चर या रेशम कीट पालन कहलाता है. सेरीकल्चर भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह केवल रेशम के कीड़ों के पालन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सिल्क कल्चर से संबंधित अन्य गतिविधियां, जैसे शहतूत रेशम की खेती एवं कच्चे रेशम के कोवा के बाद अपनायी जाने वाली तकनीक भी शामिल है. रेशम ऊंचे दाम में मिलनेवाला, लेकिन कम मात्रा में मौजूद एक उत्पाद है, इसलिए विकासशील देशों में रोजगार सृजन एवं ग्रामीण क्षेत्रों में विदेशी मुद्रा अर्जित करने के लिए लोग इस उद्योग को तरजीह देते हैं. यह कम समय में अधिक आय का एक बेहतरीन जरिया है. भारत में घरेलू रेशम बाजार की अपनी एक सशक्त परंपरा एवं संस्कृति है. शहतूत रेशम का उत्पादन खासतौर पर कर्नाटक, तमिलनाडु, जम्मू एवं कश्मीर एवं पश्चिम बंगाल में होता है, जबिक गैर- शहतूत रेशम का उत्पादन झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों में होता है.

कौन होते हैं सेरिकल्चरिस्ट

पौधों की पत्तियों पर रेशम के कीड़ों की खेती और पालन-पोषण से लेकर उनसे कच्चे रेशम के रेशों को निकालने तक, हर कदम में एक सेरिकल्चरिस्ट यानी रेशमविज्ञानी शामिल होता है. एक सेरिकल्चरिस्ट के काम में रेशम के कीड़ों के लिए पालन गृहों का निर्माण और रखरखाव, रेशम के कीड़ों के लिए सही पौधों की किस्म का चयन करना, रेशम के कीड़ों को लार्वा अवस्था से कोकून अवस्था तक उठाना, उपयुक्त कीटनाशकों को लागू करना, रेशम के कीड़ों से कच्चे रेशम के रेशों को निकालना और उनकी कताई करना शामिल है.सेरिकल्चरिस्ट रेशम उत्पादन से संबंधित ऐसे कार्यों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो रेशम के कीड़ों और अन्य संबंधित प्रजातियों के प्रजनन को बढ़ाते हैं, रेशम, मोम और अन्य उत्पादों का उत्पादन करते हैं.

काम करने के मौके हैं यहां

रेशम उत्पादन को सेरिकल्चरिस्ट ने एक उद्योग में बदल दिया है और अब यह देश की एक प्रमुख नकदी फसल बन गया है. यह एक ऐसा क्षेत्र है, जहां सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में रोजगार की संभावनाएं हैं. यह कार्यक्षेत्र सेरिकल्चरिस्ट, सेरीकल्चर रिसर्चर, सेरीकल्चर प्रोफेसर के तौर पर काम करने का मौका देता है.इनके लिए सरकारी संगठनों, प्राइवेट फर्म, एजेंसियों, अकादमिक संस्थानों, शोध संस्थानों में नौकरी के अवसर उपलब्ध हैं. सेरीकल्चर के पेशेवरों को रोजगार देनेवाले कुछ प्रमुख ऑर्गनाइजेशन हैं- सेंट्रल सेरीकल्चरल रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, बेहरामपुर, पश्चिम बंगाल. सेंट्रल सिल्क बोर्ड, हैंडलूम, हैंडीक्राफ्ट, टेक्सटाइल एवं खादी डिपार्टमेंट, इंडियन सिल्क एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल. सेरीकल्चर की पढ़ाई करने के बाद आप रेशम उत्पादक के तौर पर स्वरोजगार का विकल्प भी अपना सकते हैं.

ऐसे बढ़ सकते हैं आगे

बारहवीं के बाद सेरीकल्चर के बैचलर डिग्री प्रोग्राम में प्रवेश ले सकते हैं. इसके लिए आपका साइंस स्ट्रीम (फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी) से होना जरूरी है. इस विषय में बैचलर डिग्री के दो विकल्प हैं- बीएससी (सेरीकल्चर) एवं बीएससी सिल्क टेक्नोलॉजी (सेरीकल्चर). इसके बाद इस विषय में मास्टर डिग्री हासिल करने एवं पीएचडी का विकल्प है. सेंट्रल सिल्क बोर्ड के तहत आनेवाले संस्थान सेंट्रल सेरीकल्चरल रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (https://csrtiber.res.in) से सेरीकल्चर में पीजीडी कोर्स कर सकते हैं.

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Preeti Singh Parihar
Preeti Singh Parihar
Senior Copywriter, 15 years experience in journalism. Have a good experience in Hindi Literature, Education, Travel & Lifestyle...

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