General Knowledge: उत्तराखंड में कुदरत ने एक बार फिर कहर बरपाया है. उत्तरकाशी के धराली गांव में बादल फटने की घटना से खीर गंगा नदी उफान पर आ गई. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस आपदा में चार लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 50 से अधिक लोग लापता बताए जा रहे हैं. भारी बारिश और बादल फटने के कारण भारी मात्रा में जान-माल का नुकसान हुआ है. हालांकि, अब तक नुकसान का पूरा आकलन नहीं किया जा सका है. लेकिन इस तबाही ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है- बादल फटते हैं तो आखिर कितनी मात्रा में पानी बरसता है?
बादल क्या होते हैं और कैसे बनते हैं?
बादल दरअसल हवा में मौजूद पानी की छोटी-छोटी बूंदों और बर्फ के क्रिस्टलों का समूह होते हैं. जब सूरज की गर्मी से पानी वाष्प बनकर ऊपर जाता है, तो वह ठंडी हवा में पहुंचकर संघनित हो जाता है. ये वाष्प जब धूल या धुएं के कणों से मिलते हैं, तो बादलों का निर्माण होता है.
बादलों में कितना पानी होता है?
बादलों का आकार और पानी की मात्रा काफी भिन्न हो सकती है. एक छोटा बादल कुछ टन पानी लिए हो सकता है, जबकि बड़ा बादल हजारों टन पानी अपने अंदर समेटे होता है. वैज्ञानिकों के अनुसार, एक बड़ा बादल दो बिलियन पाउंड (करीब 9 लाख टन) तक पानी लेकर चल सकता है.
बादल फटता है तो क्यों आती है तबाही?
जब किसी एक सीमित क्षेत्र में बहुत कम समय में अत्यधिक बारिश होती है, तो उसे बादल फटना यानी क्लाउडबर्स्ट कहा जाता है. इसमें पानी इतनी तेजी से गिरता है कि धरती, नदियां या नाले उसे सहन नहीं कर पाते. यही कारण है कि अचानक बाढ़ और भूस्खलन जैसी घटनाएं होती हैं.
पहाड़ों के लिए बड़ा खतरा है क्लाउडबर्स्ट
उत्तराखंड जैसे पहाड़ी इलाकों में क्लाउडबर्स्ट अब एक सामान्य आपदा बनता जा रहा है. तेज ढलानों, कमजोर जमीन और अधिक वर्षा के कारण यहां इसका प्रभाव ज्यादा घातक होता है. इससे सड़कें, पुल, घर और जीवन, सब कुछ तबाह हो सकता है.
वैज्ञानिक समाधान और सतर्कता की जरूरत
जलवायु परिवर्तन और अनियंत्रित विकास भी ऐसी आपदाओं के पीछे जिम्मेदार हैं. जरूरत है समय रहते अलर्ट सिस्टम, मजबूत निर्माण और पहाड़ी इलाकों में संतुलित विकास की ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचा जा सके.
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