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गया संसदीय सीट से पत्थर तोड़ने वाली भागवती देवी ने किया संसद तक का सफर, 1962 में पहली बार लड़ी थी चुनाव

सोशलिस्ट नेता उपेंद्र नाथ वर्मा ने भगवतिया देवी को पहली बार राजनीति में आने की दी थी सलाह, जिसके बाद पत्थर तोड़ने वाली भागवती देवी ने 1962 में पहली बार चुनावी अखाड़े में कदम रखा. हालांकि इस चुनाव में वो हार गई थी.

गया के पत्थरों के बीच हुए टंकार की गूंज राष्ट्रीय स्तर तक गयी. इससे निकलीं जिले की दो हस्तियाें को राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली. इसमें पहली रहीं भागवती देवी, तो दूसरे दशरथ मांझी. अभी लोकसभा चुनाव का वक्त है, ऐसे में राजनीतिक चर्चाओं के बीच पूर्व सांसद स्व भागवती देवी याद आती हैं. 06 नवंबर 1936 को औरंगाबाद (तब गया जिला ही था) के मिठैया गांव में जन्मी भागवती मुसहर समुदाय की बेटी थीं. पत्थर तोड़ कर अपने व अपने परिवार का पालन-पोषण करनेवाली इस महिला ने न केवल विधानसभा, बल्कि संसद तक सफर किया. उन्हें राजनीतिक क्षितिज पर लाने का श्रेय सोशलिस्ट नेताओं को जाता है.

भागवती देवी तोड़ती थी पत्थर

बाराचट्टी में आकर बसीं भागवती देवी जीविकोपार्जन के लिए गया शहर के पास नैली-दुबहल में पत्थर तोड़ रही थीं. संयोगवश सोशलिस्ट नेता उपेंद्र नाथ वर्मा वहां से गुजर रहे थे. उनकी नजर भागवती देवी पर पड़ी. भागवती अपने साथ काम कर रहीं कुछ महिलाओं के साथ बातें कर रही थीं. वर्मा जी के कानों तक उनकी बात पहुंची और भागवती देवी को पास बुलाया और कहा- राजनीति में आ जाओ, तुम्हारा व समाज दोनों का भला होगा. उनकी बेटी पूर्व विधायक समता देवी बताती हैं कि बाद में उपेंद्र नाथ वर्मा ने सोशलिस्ट नेता डॉ राम मनोहर लोहिया को भी भागवती देवी के बारे बताया.

चंदा बटोर भागवती देवी ने लड़ा था चुनाव और दर्ज की थी जीत

वर्ष 1962 में इमामगंज व मखदुमपुर विधानसभा क्षेत्र से पहली बार भागवती देवी ने राजनीतिक किस्मत आजमाया. हालांकि उन्हें हार झेलनी पड़ी. फिर 1969 में सोशलिस्ट पार्टी (चुनाव चिह्न बरगद छाप) के टिकट पर बाराचट्टी से चुनाव मैदान में उतरीं. रुपये-दो रुपये चंदे से चुनाव लड़ा व जीत कर विधानसभा पहुंचीं. भागवती देवी इस दौरान जयप्रकाश नारायण व कर्पूरी ठाकुर के सानिध्य में पहुंची. 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतीं. हालांकि यह सरकार महज दो वर्ष ही चल पायी.

1980 में राजनीति से हो गई थी दूर

वर्ष 1980 में भागवती देवी राजनीति से दूर हो गयीं. 1990 में लालू प्रसाद की जनता दल की सरकार आयी. लालू प्रसाद ने 1995 में बाराचट्टी विधानसभा क्षेत्र से भागवती देवी को अपनी पार्टी का टिकट देकर उम्मीदवार बनाया और वह चुनाव जीत गयीं. एक ही वर्ष बाद 1996 लोकसभा चुनाव में गया संसदीय क्षेत्र से लालू प्रसाद ने राजद से टिकट दिया. सरल, सहज व अक्खड़ स्वभाव की महिला जिनमें जुझारुपन था, ने यहां भी अपने को स्थापित किया और सांसद बन गयीं.

वर्ष 2000 में फिर से बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा और बाराचट्टी से विधायक चुनी गयीं. इस दौरान 23 जुलाई 2003 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. राम प्यारे सिंह ने उनकी जीवनी पर आधारित किताब ‘धरती की बेटी’ लिखी. भागवती देवी के तीन बेटों में एक विजय मांझी राजनीति में आये और वर्ष 2005 में वह विधायक बने. लेकिन, सरकार नहीं चल सकी. बेटी समता देवी 1998 के उप चुनाव व 2015 के विधानसभा चुनाव में बाराचट्टी से ही राजद की उम्मीदवार बनीं और जीत दर्ज की. इसके बाद वर्ष 2019 में विजय मांझी जदयू की टिकट पर गया के सांसद बने.

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Anand Shekhar
Anand Shekhar
Dedicated digital media journalist with more than 2 years of experience in Bihar. Started journey of journalism from Prabhat Khabar and currently working as Content Writer.

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