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Kartam Bhugtam Review: घिसी पिटी फार्मूला फिल्म 

धर्म को आधार बनाकर आम आदमी को किस तरह से धोखा दिया जाता है। श्रेयस तलपड़े और विजय राज की फिल्म कर्तम भुगतम इसी की कहानी है। आइये जानते हैं फिल्म की खूबियों और खामियों को इस रिव्यु में

फिल्म – कर्तम भुगतम

निर्देशक – सोहम पी शाह

निर्माता -गंधार फिल्म्स एंड स्टूडियो प्राइवेट लिमिटेड

कलाकार -श्रेयस तलपड़े ,विजय राज, मधु ,अक्क्षा और अन्य

प्लेटफार्म – सिनेमाघर 

रेटिंग -डेढ़ 

हमारे देश में धर्मभीरु जनता के अंधविश्वास का फायदा उठाकर ढोंगी पाखंडी बाबाओं और ज्योतिषियों ने कई लोगों को लूटा है, ऐसी अनगिनत कहानियां और उदाहरण हैं.लक और काल जैसी फ़िल्मों के निर्देशक रहे सोहम पी शाह ने अपनी वापसी  फिल्म कर्तम भुगतम की कहानी का आधार इसी को बनाया है, लेकिन उसके साथ वह हमारे जनमानस में रचे बसे मुहावरे जैसे बोओगे वैसा काटोगे को भी अपनी फिल्म में जोड़ गए हैं.इन दोनों सशक्त पहलुओं को आधार बनाने के बावजूद सोहम की यह फिल्म बहुत कमजोर रह गयी है.इसकी वजह फिल्म की कहानी, स्क्रीनप्ले और फिल्म ट्रीटमेंट है,जो  ९० के दशक की फिल्मों की याद दिलाता है. रहस्य रोमांच जॉनर वाली इस फिल्म की कहानी पूरी प्रेडिक्टेबल है.कई बार लगता है कि हम क्राइम पेट्रोल या सावधान इंडिया की कहानी को देख रहे हैं.

कर्मों के फल की सशक्त सीख वाली कमजोर कहानी 

फिल्म की कहानी देव ( श्रेयस तलपड़े ) की है ,जो न्यूजीलैंड से दस साल बाद वापस अपने घर भोपाल लौटा है. उसके पिता की कोविड के दौरान मौत हो चुकी है.उनसे नहीं मिल पाने का उसे अफ़सोस है. अब वह अपने पिता की भोपाल की करोड़ों की जायदाद को बेचकर वापस न्यूजीलैंड में जाकर अपना बिजनेस शुरू करने का प्लान बना रहा है.न्यूजीलैंड में अपनी गर्लफ्रेंड जिया(अक्क्षा )को वह कुछ दिनों में वापस आने का वादा करके आया है,  लेकिन चीजें  उस हिसाब से नहीं होती हैं. जैसे वह सोचकर आया था.उसके प्रॉपर्टी बेचने के काम में एक के बाद एक रुकावट आने लगती है और हफ्ते महीने में बदल जाते हैं.हताशा देव को  ज्योतिष अन्ना (विजय राज )के पास पहुंचा देती है और धीरे – धीरे चीजें ठीक भी होने लगती है.देव का विश्वास अन्ना पर इस कदर बढ़ जाता है कि वह अन्धविश्वास में तब्दील हो जाता है.उसका क्या खामियाजा देव को चुकाना होगा और क्या अन्ना के कर्मों का भी उसे फल मिलेगा.  इन्ही सवालों के जवाब फिल्म आगे देती है.

फ़िल्म की खूबियां और खामियां 

फिल्म की कहानी ज्योतिष, संत और बाबाओं पर आम आदमी के अटूट विश्वास की है.फिल्म शुरुआत में उम्मीद भी जगाती है, लेकिन जैसे – जैसे कहानी आगे बढ़ती है.वह धोखे के बाद रिवेंज ड्रामा में बदल जाती है.यह एक थ्रिलर फिल्म है , लेकिन रहस्य रोमांच कहानी से गायब है.खासकर सेकेंड हाफ के बाद कहानी पूरी तरह से प्रेडिक्टेबल बन गयी है.फिल्म के ट्रीटमेंट में बहुत दोहराव है. देव के किरदार का हर जगह से निराश होना और गर्लफ्रेंड जिया के कॉल को इग्नोर करना बार – बार स्क्रीन पर आता रहता है.फिल्म का स्क्रीनप्ले बहुत कमजोर रह गया है.लॉजिक गायब है.गौरव के कैफ़े में लाश दिखाने के लिए कोविड में मिली बॉडी को आसानी से बताकर दिखा दिया गया है और उसके बाद के एक दो सीन में लोगों को मास्क पहने दिखा दिया गया है , लेकिन उसके बाद से मास्क लोगों के चेहरे से पूरी तरह से गायब है ,जबकि सात दिनों के अंतराल में ही सेकेंड हाफ की पूरी कहानी को घटते दिखाया है.देव का  दोस्त गौरव जिस आसानी से सबकुछ देव और उसकी गर्लफ्रेंड को बता देता है, वह भी स्क्रीनप्ले की कमजोरी को उजागर कर गया है.गौरव क्या अपना पासपोर्ट पर्स में लेकर घूम रहा था,जिसको नष्ट करने की धमकी जिया उसको देकर सबकुछ कुबूल करवा लेती है.अन्ना और उसका परिवार जिस तरह से इंदौर के दंपति और उसके परिवार को मार देता है.वह सावधान इंडिया के एपिसोड सा लगता है.फिल्म में कानून का कुछ लेना देना नहीं है ,चाहे भारत हो या फिर मॉरीशस. फिल्म  के दूसरे पहलुओं की बात करें तो अमर मोहिले का बैकग्राउंड इस बार लाउड ज्यादा हो गया है,कर्तम भुगतम इस शब्द को इतनी बार दोहराया गया है कि कुछ समय के बाद यह प्रभाव को खो शोर में ज्यादा तब्दील हो गया है .गीत – संगीत के मामले में भी फिल्म कमजोर रह गयी है.एक भी गीत याद नहीं रह पाता है.फिल्म का प्रोडक्शन भी हलके लेवल का रह गया है. संवाद अति साधारण रह गए हैं.

विजय राज और श्रेयस तलपड़े का सधा हुआ अभिनय  

अभिनय की बात करें तो विजय राज ने अपने किरदार से जुड़े रहस्य को बखूबी अपने संवाद और बॉडी लैंग्वेज में ढाला है खासकर फर्स्ट हाफ में वह अपनी मौजूदगी से फिल्म को रोचक बनाते हैं.श्रेयस तलपड़े ने भी अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है.मधु ने अपने किरदार को दोहरे अंदाज से निभाया है, उनके किरदार के लुक के साथ किया गया प्रयोग अभिनेत्री के तौर पर उनके साहस को भी दर्शाता है.अक्क्षा ने भी अपने सीमित स्पेस में अच्छा अभिनय किया है.बाकी के किरदारों का काम ठीक – ठाक है. 

Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 12 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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