Health Tips: Hypertension: हममें से अधिकांश लोग हाई ब्लड प्रेशर की समस्या को गंभीरता से नहीं लेते हैं. अधिक से अधिक इतना करते हैं कि डॉक्टर से दिखा दवाइयां लेना शुरू कर देते हैं. पर अपनी आदतों और खानपान में बदलाव नहीं करते. यहीं हम गलती करते हैं. हाइपरटेंशन, यानी हाई ब्लड प्रेशर एक जीवनशैली जनित रोग है, जिसके लिए दवा के साथ-साथ हमारी आदतों व खानपान में बदलाव की भी जरूरत होती है, तभी हम हाइपरटेंशन के कारण होने वाली अन्य बीमारियों से बचे रहेंगे. जानिए, आयुर्वेद के अनुसार आपकी जीवनशैली और आहार में किस तरह के बदलाव की जरूरत है.
प्रो महेश व्यास
डीन, पीएचडी, ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद, दिल्ली
हाई ब्लड प्रेशर की बीमारी में हमें अपने खान-पान को लेकर पूरी सावधानी बरतनी चाहिए. जानिए, आयुर्वेद के अनुसार हाई बीपी के रोगी को क्या खाना चाहिए और किन चीजों से परहेज करना चाहिए.
इन चीजों को शामिल करें अपने आहार में
धान्य: जौ, ज्वार, गेहूं, मूंग की दाल, रागी, बाजरा का सेवन करना चाहिए.
सब्जी: तोरी, शिग्रु (सहजन), करेला, घीया/लौकी, शलजम, भिंडी खाना फादेमंद होता है.
सलाद: गाजर, मूली, चुकुंदर का नियमित सेवन करने से लाभ मिलता है.
फल: आंवला, खीरा, द्राक्षा (अंगूर), अनार, सेब, अनानास का सेवन लाभदायक होता है.
-बीपी पेशेंट को अलसी के बीज और मेथी दाना का सेवन भी करना चाहिए.
-मुरब्बा, गुलाब जल और गन्ने के रस का नियमित सेवन लाभ देता है.
-दूध और हल्दी का सेवन भी बीपी कंट्रोल करने में सहायक सिद्ध हाता है. बीपी पेशेंट को ठंडे दूध का सेवन करना चाहिए.
-हाई बीपी में लहसुन तथा लहसुन के रस का सेवन लाभदायक सिद्ध हो सकता है.
इन बातों का रखें ध्यान
-खाने में तेल की मात्रा कम कर घी का सेवन करें.
-तैलीय, नमकीन, खट्टे और मसालेदार खाद्य पदार्थों का सेवन कम करें.
-मक्खन, घी, मिर्च (लाल-हरी), अचार, चना दाल, खट्टे फल, दही, चाय, कॉफी आदि का अधिक सेवन करने से बचें.
-तुलसी, इलायची, दालचीनी से बनी चाय का ही सेवन करें.
-फाइबर रिच फूड और सात्विक आहार का सेवन करें.
-संतुलित आहार का समय पर सेवन करें और फल-सब्जियों की मात्रा बढ़ाएं.
-अश्वगंधा, जटामांसी, ब्राह्मी, मुलेठी जैसी आयुर्वेदिक औषधियों का नियमित सेवन करें.
-च्यवनप्राश, आमलकी रसायन आदि का सेवन करें.
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इन आदतों को अपनाएं
-वजन कम करें.
-समय पर सोना और जागना सुनिश्चित करें.
-नियमित रक्तचाप की जांच करें.
-नियमित शारीरिक व्यायाम करें.
-प्रतिदिन आधे घंटे तेज चलना लाभदायक है.
-योग विशेषज्ञ की देखरेख में योग, ध्यान आदि का नियमित अभ्यास करें.
-योगासन मे सूर्य नमस्कार, वज्रासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन, भुजंगासन, पश्चिमोत्तानासन करें.
-प्राणायाम में अनुलोम विलोम, उज्जयी, शीतकारी आदि करें.
-गायत्री मंत्र का जाप करें, ओमकार, वैदिक मंत्रों का जाप करें.
-शांत रखने वाला और मन को प्रसन्नता देने वाला संगीत सुनें.
-सुबह टहलने जाएं.
प्रकृति के अनुसार आहार
प्रकृति के अनुसार खान-पान के नियम को अपनाने से काफी लाभ मिलता है.
वात प्रकृति: यदि आप वात प्रकृति के हैं, तो उपवास न करें. स्निग्ध और उष्ण (चिकनाई युक्त व गर्म) आहार लें. घी/तेल का सेवन करें. हर तीन से चार घंटे पर कुछ खायें. ताजा व गरम खाने को प्राथमिकता दें.
पित्त प्रकृति: ऐसे लोगों को अपने आहार में मधुर, तिक्त तथा कषाय रस का (मीठा, कड़वा और कसैला) समावेश करना चाहिए. ऐसे लोगों को अधिक तीखा और तला हुआ आहार नहीं लेना चाहिए. ऐसी प्रकृति के लोगों के लिए पर्याप्त मात्रा में आहार लेना जरूरी होता है.
कफ प्रकृति: इन्हें रुक्ष (ऐसा भोजन जो हल्का, सूखा और पचने में आसान हो), कम तेल वाला और गरम भोजन करना चाहिए.
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.