World Thalassemia Day: विश्व थैलेसीमिया दिवस पर, भारत के प्रमुख चिकित्सक, स्वास्थ्य सेवा समर्थक और प्रभावित परिवार एक जरूरी लेकिन सरल संदेश पर जोर देने के लिए एक साथ आए हैं. थैलेसीमिया मेजर, भारत के सबसे व्यापक वंशानुगत रक्त विकारों में से एक है, जिसे रोका जा सकता है. और फिर भी, हर साल हजारों बच्चे जीवन भर दर्दनाक रक्त आधान और वित्तीय कठिनाईयों के साथ पैदा होते हैं. उपचार की लागत प्रति वर्ष प्रति बच्चा 4 से 5 लाख रूपए तक हो सकती है, अगर केवल 150 रूपए में होने वाला स्क्रीनिंग टेस्ट समय पर किया जाए तो इस विकार को पूरी तरह से रोका जा सकता है.
थैलेसीमिया से सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक भारत
भारत वैश्विक स्तर पर थैलेसीमिया से सबसे अधिक प्रभावित होने देशों में से एक है. दिल्ली में प्रतिदिन 863 बच्चे जन्म लेते हैं और इनमें से 95.6 प्रतिशत प्रसव स्वास्थ्य संमस्थाओं में होते हैं. इस तरह यह शहर रोकथाम-प्रथम मॉडल का नेतृत्व करने के लिए एक विशेष स्थिति में है. रणनीति दो महत्वपूर्ण बिंदुओं पर केंद्रित है. सभी गर्भवती महिलाओं की पहली तिमाही के दौरान जांच की जानी चाहिए. साथ ही, 18 से 40 वर्ष की आयु वर्ग के लोगों को स्वैच्छिक परीक्षण करवाना चाहिए, खासकर कॉलेजों, कार्यस्थलों और विवाह-पूर्व परामर्श के दौरान. ये सरल कदम थैलेसीमिया वाहकों के विवाह और भविष्य में थैलेसीमिया मेजर जन्मों को रोक सकते हैं.
थैलेसीमिया मेजर एक पूरी तरह से रोकी जा सकने वाली त्रासदी
सर गंगा राम अस्पताल में बाल स्वास्थ्य संस्थान के सह-निदेशक डॉ. अनुपम सचदेवा ने कहा, “थैलेसीमिया मेजर एक पूरी तरह से रोकी जा सकने वाली त्रासदी है. मात्र 150 रूपए में हम एक बच्चे को रक्त आधान, बार-बार अस्पताल जाने और भावनात्मक आघात से बचा सकते हैं. विज्ञान स्पष्ट है, समाधान सरल है. हमें थैलेसीमिया जांच को पूरे भारत में प्रसवपूर्व देखभाल का एक मानक हिस्सा बनाना चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे हम रक्त शर्करा या हीमोग्लोबिन के लिए करते हैं. रोकथाम न केवल संभव है बल्कि इसकी आवश्यक भी है. दिल्ली की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली इस प्रयास का समर्थन करने के लिए अच्छी तरह से तैयार है. शहर में एचपीसीएल और डी10 मशीनों से सुसज्जित 150 से अधिक डायग्नोस्टिक लैब हैं, जिनमें एम्स, सर गंगा राम अस्पताल, अपोलो अस्पताल, सफदरजंग अस्पताल, लाल पैथलैब्स, राजीव गांधी कैंसर संस्थान और होली फैमिली अस्पताल जैसे शीर्ष संस्थान शामिल हैं. प्रत्येक केंद्र प्रतिदिन 180 व्यक्तियों की जांच कर सकता है. यह संसाधनों की चुनौती नहीं है, बल्कि प्राथमिकता की चुनौती है.”
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राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान देने की जरूरत
थैलेसीमिक्स इंडिया की सचिव शोभा तुली ने कहा, “राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के तहत आयुष्मान भारत वर्तमान में थैलेसीमिया रोगियों को सहायता प्रदान करता है जो गरीबी रेखा से नीचे आते हैं. लेकिन वास्तविकता यह है कि थैलेसीमिया के प्रबंधन का खर्च मध्यम आय वाले परिवारों के लिए भी बहुत अधिक होता है. यदि सभी के लिए स्वास्थ्य लक्ष्य है, तो थैलेसीमिया को केवल प्रतीकात्मक समावेश नहीं बल्कि वास्तविक प्राथमिकता मिलनी चाहिए. इसे संरचनात्मक समर्थन और राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान देने की जरूरत है.”
थैलेसीमिया की जांच अनिवार्य
शोभा तुली ने कहा, “ईरान और कई अन्य देशों ने शादी से पहले और गर्भावस्था के शुरुआती दिनों में थैलेसीमिया की जांच अनिवार्य कर दी है. इन निवारक उपायों के कारण थैलेसीमिया मेजर के साथ जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या में अत्यधिक कमी आई है. भारत को भी इस सिद्ध मार्ग का अनुसरण करना चाहिए. हम केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से गर्भावस्था की पहली तिमाही में और प्रजनन आयु वर्ग में थैलेसीमिया परीक्षण के लिए राष्ट्रीय विनियामक अनिवार्यता लागू करने का दृढ़ता से आग्रह करते हैं. यह अब पसंद का मामला नहीं बल्कि जिम्मेदारी का मामला है.”
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परिवारों की आर्थिक पहुंच से बाहर उपचार
शोभा तुली ने कहा, “हालांकि, अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण जैसे उपचारात्मक उपचार मौजूद हैं, लेकिन ये ज़्यादातर परिवारों की आर्थिक पहुंच से बाहर होते हैं. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत कोल इंडिया द्वारा सीएसआर पहल थैलेसीमिया बाल सेवा योजना या टीबीएसवाई, प्रति बच्चे 10 लाख रूपए प्रदान करती है. इस कार्यक्रम 600 से ज़्यादा बच्चों को उपचारात्मक प्रत्यारोपण प्रक्रियाओं से गुज़रने में सक्षम बना चुका है. लेकिन अंतिम लक्ष्य रोकथाम होना चाहिए ताकि कम से कम बच्चों को इस तरह के उपचारों और आर्थिक सहायता की ज़रूरत पड़े.”
25 सालों में 50,000 से ज़्यादा गर्भधारण की जांच
सर गंगा राम अस्पताल में थैलेसीमिया इकाई के प्रभारी डॉ. वी के खन्ना ने कहा, “हमारे अस्पताल ने पिछले 25 सालों में 50,000 से ज़्यादा गर्भधारण की जांच की है और इन प्रयासों के कारण हमारे अस्पताल में थैलेसीमिया मेजर के साथ किसी भी बच्चे ने जन्म नहीं लिया है. यह मॉडल काम करता है. बुनियादी ढांचा तैयार है. अब हमें सिर्फ राजनीतिक इच्छाशक्ति और नियामक गति की जरूरत है ताकि इस मॉडल को दिल्ली शहर और अंततः पूरे देश में अपनाया जा सके.
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थैलेसीमिया से पीड़ित एक बच्चे के माता-पिता ने कही ये बात
थैलेसीमिया से पीड़ित एक बच्चे के माता-पिता ने नाम न बताते हुए कहा, “हम पिछले आठ सालों से इस बीमारी से जूझ रहे हैं. हर कुछ हफ़्तों में हमारे बच्चे को रक्त आधान की ज़रूरत पड़ती है और इसकी लागत बढ़ती जा रही है. हम दोनों के काम करने के बावजूद, यह भावनात्मक और आर्थिक रूप से थका देने वाला है. हम गरीबी रेखा से नीचे नहीं हैं, लेकिन हमें अभी भी सहायता की ज़रूरत है. हमें उम्मीद है कि सरकार हमारे संघर्ष को पहचानेगी और हमारे जैसे परिवारों के लिए पहुंच का विस्तार करेगी.”
थैलेसीमिया मुक्त शहर और रोकथाम के लिए वैश्विक मॉडल
थैलेसीमिक्स इंडिया ने दिल्ली भर के अस्पतालों, प्रयोगशालाओं, शैक्षणिक संस्थानों और नागरिक एजेंसियों से इस पहल का समर्थन करने का आह्वान किया है. सामूहिक इच्छाशक्ति और समय पर जांच के साथ, दिल्ली देश का पहला थैलेसीमिया मुक्त शहर और रोकथाम के लिए एक वैश्विक मॉडल बन सकता है.
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