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Atal Bihari Vajpayee : अपने कॉलेज में वाद-विवाद प्रतियोगिता के हीरो थे अटल, बचपन से पसंद थीं कविताएं

Atal Bihari Vajpayee : अटल बिहारी वाजपेयी ग्‍वालियर की गलियों में पले-बढ़े. यहीं से उनकी प्रारंभिक शिक्षा और कॉलेज की शिक्षा पूरी हुई. बचपन से ही उन्हें कविताएं पसंद थीं इसलिए वे विभिन्न कवि सम्मेलनों में भी पहुंच जाते थे.

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्‍वालियर में हुआ था. उनके पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी शिक्षक थे. उनकी मां का नाम कृष्णा था. अटल बिहारी वाजपेयी को देखकर ये अंदाजा लगाना मुश्किल था कि वे बचपन बेहद नटखट और शरारती हुआ करते थे. एक कवि, पत्रकार होने के साथ ही वाजपेयी तीन बार देश के प्रधानमंत्री भी रहे.

कंचा खेलना था पसंद

अटल बिहारी वाजपेयी को बचपन में कंचा खेलना बहुत पसंद था. जब भी मौका मिलता था वे अपने दोस्तों के साथ कंचे खेलते थे. मीडिया रिपोर्टस के अनुसार वे नमकीन खाने के भी शौकीन थे उन्हें गुजिया और ग्वालियर का चिवड़ा बहुत पसंद था. प्रधानमंत्री बने रहने के दौरान भी जब वे ग्वालियर पहुंचते थे तो ढेर सारा चिवड़ा जरूर खरीदते थे.

बचपन से कवि सम्मेलन में लेते थे हिस्सा

अटल बिजारी वाजपेयी को बचपन से ही कवि सम्मेलन में जाकर कविताएं सुनना और नेताओं के भाषण सुनना बहुत पसंद था. उन्हें जब भी मौका मिलता मेले में जाकर मौज मस्ती करते थे. कविताओं के प्रति उनके समपर्ण की कहानी उनकी अदभूत रचनाएं स्वंय बयां करती हैं.

ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से की थी पढ़ाई

उनकी प्रारंभिक शिक्षा ग्वालियर में ही हुई. ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज में भी उन्होंने पढ़ाई की, जिसे आज लक्ष्मीबाई कॉलेज के नाम से जाना जाता है. अटल बिहारी वाजपेयी ने इस कॉलेज से बीए किया. हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत में डिस्टिंक्शन के साथ पास हुए. अटल बिहारी वाजपेयी की पहचान इस कॉलेज की वाद विवाद प्रतियोगिताओं के हीरो के रूप में हुआ करती थी. अपनी स्पीच के लिए वे अक्सर आईने के सामने खड़े होकर रिहर्सल किया करते थे. 40 के दशक में पढ़ाई के दौरान ही अटलजी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे. इन्हें भारत छोड़ो आंदोलन में जेल भी जाना पड़ा था. अटल बिहारी ने राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर करने के बाद पत्रकारिता में अपने करियर की शुरुआत की थी.

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तमाम परेशानियों के बाद भी राजनीति की राह पर आगे बढ़ते रहे

अटल बिहारी वाजपेयी की सादगी का अंदाजा इसी बात से आसानी से लगाया जा सकता है कि जब 1977-78 में वे विदेश मंत्री बने तो ग्वालियर पहुंचने के बाद वे भाजपा के संगठन महामंत्री के साथ साइकिल से सर्राफा बाजार निकल पड़े थे, लेकिन 1984 में अटलजी इसी सीट से चुनाव हार भी गए थे. फिर भी राजनीति की तेड़ी-मेढी राहों पर वे आगे बढ़ते चले गए और एक दिन प्रधानमंत्री पद तक पहुंच गए. दुनियाभर में लोकप्रिय भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी ने दिल्ली के एम्स में 16 अगस्त 2018 को अंतिम सांस ली थी.

Prabhat Khabar Digital Desk
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