Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य न केवल एक महान अर्थशास्त्री थे, बल्कि एक कुशल रणनीतिकार, नीतिशास्त्री और राजनीतिज्ञ भी थे. उन्होंने जीवन की पेचीदगियों को सुलझाने के लिए जो नीतियां बनाईं, वे आज भी उतनी ही कारगर हैं. उनकी नीतियों में जीवन की हर स्थिति से निपटने की गहरी समझ छुपी हुई है. चाहे बात सफलता पाने की हो या धोखे से बचने की, चाणक्य नीति हर मोड़ पर मार्गदर्शन देती है. ये नीतियां व्यक्ति को यह भी सिखाती हैं कि असली और नकली रिश्तों को कैसे पहचाना जाए, और कब किस पर भरोसा करना सही रहेगा. जो व्यक्ति चाणक्य की बातों को अपने व्यवहार में उतारता है, वह न सिर्फ जीवन की चुनौतियों को बेहतर तरीके से समझ पाता है, बल्कि उनमें सफलता पाने का हुनर भी सीख जाता है. चाणक्य ने कई नीतियां धरती पर पाए जाने वाले जीवों के आधार पर बनाई हैं. ऐसी ही एक नीति में उन्होंने बताया कि कुछ व्यक्ति सांप से भी ज्यादा खतरनाक होते हैं. इनके साथ रहने से जीवन हमेशा संकटों से भरा रहता है. ऐसे में आइए जानते हैं कि ये किस तरह के लोग होते हैं.
ऐसे लोगों से हजार गुना बेहतर सांप
आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति में दुष्ट व्यक्ति की संगत को सबसे खतरनाक बताया है। उनका कहना था कि जहरीला सांप तब तक नुकसान नहीं पहुंचाता जब तक उसे छेड़ा न जाए, लेकिन दुष्ट इंसान बिना किसी वजह के भी दूसरों को तकलीफ देने में संकोच नहीं करता। चाणक्य कहते हैं कि अगर तुलना की जाए तो सांप फिर भी हजार गुना बेहतर है, क्योंकि उसका जहर एक बार में असर करता है, जबकि दुष्ट व्यक्ति धीरे-धीरे और बार-बार नुकसान पहुंचाता है. उसका स्वभाव ही ऐसा होता है कि वह किसी की भलाई नहीं देख सकता और दूसरों को दुखी करके ही उसे संतोष मिलता है. इसलिए चाणक्य नीति सिखाती है कि ऐसे लोगों से जितना दूर रहा जाए, उतना ही अच्छा है. उनकी सोच, संगत और व्यवहार से बचकर चलना ही समझदारी है, जिससे हम अपने जीवन को शांति और सफलता की ओर ले जा सकें.
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मानसिक शांति को बिगाड़ने का काम करते हैं ये लोग
आचार्य चाणक्य स्पष्ट रूप से कहते हैं कि दुष्ट स्वभाव वाले लोगों के साथ जीवन में कभी सुख नहीं पाया जा सकता. उनका तर्क है अगर राजा ही क्रूर और अन्यायी हो, तो प्रजा चैन से कैसे रह सकती है? उसी तरह अगर मित्र धोखेबाज हो, तो सच्ची मित्रता का सुख नहीं मिलता. एक दुष्ट पत्नी घर की शांति को भंग कर देती है और रिश्तों में विष घोलने का काम करती है. उसी तरह शिष्य उद्दंड और अविवेकी हो, तो गुरु की मेहनत व्यर्थ जाती है. ऐसे में सिर्फ अपमान के सिवाय कुछ और हासिल नहीं होता है. चाणक्य के अनुसार, ऐसे लोगों का जीवन में होना न होना बराबर है, बल्कि कई बार उनका साथ समस्याओं का कारण बनता है. इसलिए जीवन में सुख, सफलता और मानसिक शांति चाहिए तो ऐसे दुष्ट स्वभाव के व्यक्तियों से दूरी बनाए रखना ही सबसे बुद्धिमानी भरा कदम होता है.
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