Chanakya Niti: बदलते समाज में लोगों की सोच भी बदलती जा रही है. लोगों में संवेदनशीलता की कमी होती जा रही है. खून के रिश्ते भी दाग दार होने लगे हैं. वर्तमान समय में किसी भी इंसान की सोच को आंका नहीं जा सकता है. कोई इंसान, दूसरे इंसान को कब धोखा दे दे कोई पता नहीं. किसी को परखना बहुत ही मुश्किल होता जा रहा है. ऐसी ही परिस्थितियों के लिए आचार्य चाणक्य ने कुछ नीतियों को सुझाए हैं. चाणक्य नीति में लिखते हैं कि सगे-संबंधियों से लेकर बंधु-बांधवों तक हर किसी को इन स्थितियों में समझ सकते हैं. उन्होंने इस चीज को श्लोक के माध्यम से समझाया है, जिसका वर्णन चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय में किया गया है.
जानीयात् प्रेषणे भृत्यान् बान्धवान् व्यसनागमे।
मित्रं चापत्तिकाले तु भार्यां च विभवक्षये।।
इस श्लोक का अर्थ है कि सेवक की परख किसी महत्वपूर्ण काम में, बंधु-बांधवों की परख विपत्ति के समय और पत्नी की परख धन के नष्ट हो जाने पर होता है.
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- चाणक्य नीति के मुताबिक, सेवक के चरित्र की पहचान तब होती है, जब उसे किसी विशेष और महत्वपूर्ण कार्य के लिए भेजा जाता है. यही समय सेवक की ईमानदारी को परखने का सही समय होता है.
- चाणक्य नीति के अनुसार, सगे-संबंधियों और बंधु-बांधवों की पहचान विपत्ति के समय होती है. जब आप किसी संकट से घिरे हुए हैं या किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं, तो ऐसी ही स्थिति में यह समझ में आता है कि असलियत में आपके साथ कौन है या कौन नहीं है.
- आचार्य चाणक्य ने पत्नियों को भी परखने के लिए समय बताया है. वे कहते हैं कि जब इंसान के पास धन नहीं हो या उसकी परिस्थिति बिगड़ गई हो या अचानक ही धन की हानि हो गई है, तो ही पत्नी को परखा जा सकता है.
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