Chanakya Niti: चाणक्य प्राचीन भारत के एक महान शिक्षक थे. उन्होंने अपने जीवन के विभिन्न अनुभवों को एक ग्रंथ में संग्रहीत किया था, जो कि आज चाणक्य नीति के नाम से जाना जाता है. इस ग्रंथ में उन्होंने सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और निजी जीवन से जुड़े कई संबंधों को लेकर विस्तार से चर्चा की है. जो भी इंसान चाणक्य नीति को अच्छी तरह से पढ़कर समझ लेता है, वह दुनिया की हर मुश्किलों को निपटने में सक्षम हो जाता है. ये नीतियां लोगों को मुश्किल समय में सही रास्ते दिखाने का काम करती हैं. इसके अलावा, उन्होंने व्यक्ति के गुणों और अवगुणों के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है. ऐसे में चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के दूसरे श्लोक में आचार्य चाणक्य ने श्रेष्ठ मनुष्य कौन है इसके बारे में बताया गया है.
अधीत्योदं यथाशास्त्रं नरो जानाति सत्तम:!
धर्मोपदेशविश्यातं कार्याऽकार्य शुभाऽशुभम्:!!
इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य कहना चाहते हैं कि धर्म का उपदेश देने वाले, कार्य-अकार्य, शुभ-अशुभ को बताने वाले इस नीतिशास्त्र को जो मनुष्य सही तरह से पढ़ लेता है वही श्रेष्ठ और अच्छा मनुष्य होता है.
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धर्म का उपदेश देने वाला
चाणक्य नीति के मुताबिक, जो व्यक्ति धर्म का उपदेश देता है. वही श्रेष्ठ मनु्ष्य कहलाता है. ऐसे में इन व्यक्तियों की बातें गौर से सुननी चाहिए, क्योंकि ये व्यक्ति जब भी कोई बात करेंगे उसे बहुत ही सोच विचार के करते हैं.
शुभ-अशुभ की बात करने वाला
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो व्यक्ति शुभ-अशुभ की बात जानता हो साथ ही कौन सा काम सही है और कौन सा नहीं, ये ब बातें जानने वाला व्यक्ति ही श्रेष्ठ मनुष्य होता है. यह ज्ञान व्यक्ति को तभी हो सकता है, जब उसे नीतियों और धर्म का ज्ञान हो. इसके बाद ही व्यक्ति यह समझने में योग्य होता है कि क्या करना योग्य है और क्या करना योग्य नहीं है.
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