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Gita Teachings on Love: जहां निःस्वार्थ प्रेम होता है वहां नहीं पनपती ये 3 बातें

Gita Teachings on Love: रिश्तों में निःस्वार्थ प्रेम कैसे लाएं? गीता उपदेश से जानिए वो 3 बातें जो सच्चे प्रेम में कभी नहीं होतीं.

Gita Teachings on Love: रिश्तों में प्रेम सबसे बड़ा आधार होता है. लेकिन प्रेम तब ही सफल होता है जब उसमें निःस्वार्थता हो. भगवद गीता हमें यही सिखाती है कि सच्चा प्रेम वह है जिसमें स्वार्थ, अहंकार और क्रोध जैसी नकारात्मक भावनाओं के लिए कोई जगह नहीं होती. श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हुए कहते हैं कि जो व्यक्ति निःस्वार्थ प्रेम करता है, उसका मन स्थिर रहता है और उसके रिश्तों में मधुरता बनी रहती है. आज के समय में जब रिश्ते अक्सर तनाव और मतभेदों से जूझते हैं, तब गीता के ये उपदेश हमें प्रेम को सहेजने की राह दिखाते हैं.

Gita Teachings on Love: भगवद गीता का उपदेश

जहां निःस्वार्थ प्रेम होता है वहां न तो अहंकार की जगह होती है, न ही स्वार्थ की, और न ही क्रोध की. ऐसा प्रेम ही परम शांति और सुख का मार्ग है.

-गीता उपदेश

Gita Quotes on Relationship: वो 3 बातें जो निःस्वार्थ प्रेम में कभी नहीं टिक पातीं

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Gita quotes on relationship: वो 3 बातें जो निःस्वार्थ प्रेम में कभी नहीं टिक पातीं

मैं की भावना (अहंकार)

जहां निःस्वार्थ प्रेम होता है वहां पर ‘मैं’ का भाव समाप्त हो जाता है. ऐसा प्रेम करने वाला व्यक्ति खुद को बड़ा दिखाने या खुद को सर्वोपरि मानने की कोशिश नहीं करता. गीता हमें सिखाती है कि अहंकार से रिश्तों में दूरी आती है और प्रेम का आधार डगमगा जाता है.

निःस्वार्थ प्रेम में दोनों लोग एक-दूसरे को समान भाव से देखते हैं और उनका उद्देश्य एक-दूसरे का सम्मान करना होता है, न कि खुद को श्रेष्ठ साबित करना.

स्वार्थ

निःस्वार्थ प्रेम में किसी भी प्रकार की स्वार्थ की भावना नहीं रहती. वहां कोई अपेक्षा या लालच नहीं होता कि बदले में क्या मिलेगा. श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि सच्चा प्रेम वही है जिसमें व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करता है बिना किसी फल की कामना के. अगर प्रेम में स्वार्थ आ जाए तो वह सौदेबाजी बन जाता है और उसमें से स्नेह और अपनापन खत्म हो जाता है.

अस्थिर मन और क्रोध की भावना

जिस प्रेम में निःस्वार्थता होती है, वहां मन स्थिर होता है. वहां न तो मन बार-बार उलझता है और न ही क्रोध जैसी नकारात्मक भावना पनपती है. गीता बताती है कि क्रोध से मनुष्य की बुद्धि नष्ट होती है और रिश्ते टूटने लगते हैं. निःस्वार्थ प्रेम में सहनशीलता और शांति होती है जिससे मन की स्थिरता बनी रहती है और रिश्तों में मजबूती आती है.

अगर हम अपने रिश्तों में गीता के इन उपदेशों को उतारें तो प्रेम को सच्चे अर्थों में जी पाएंगे. निःस्वार्थ प्रेम में न अहंकार होता है, न स्वार्थ और न क्रोध. यही वह मार्ग है जो रिश्तों को स्थायी और सुखद बनाता है. आज के समय में जब रिश्ते छोटी-छोटी बातों में उलझ जाते हैं, गीता का यह संदेश हमें प्रेम को बचाने और मजबूत करने की प्रेरणा देता है.

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Disclaimer: यह आर्टिकल सामान्य जानकारियों और मान्यताओं पर आधारित है. प्रभात खबर इसकी पुष्टि नहीं करता है.

Pratishtha Pawar
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