Gita Updesh: श्रीमद्भगवद्गीता, सनातन धर्म का एक पवित्र ग्रंथ माना जाता है. इसमें भगवान श्रीकृष्ण की बताई बातों का वर्णन है. जब महाभारत के युद्ध में अर्जुन का मन रणभूमि में युद्ध करने के लिए डगमगाने के लगा, तो खुद भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के उपदेशों को सुनाया. इस दौरान उन्होंने अपने विराट स्वरूप का दर्शन भी कराया. गीता में लिखी बातें व्यक्ति को जीवन जीने की कला सिखाती हैं. जब व्यक्ति का मन अस्थिर रहे और उसे कुछ न समझ आए, तो व्यक्ति को गीता के उपदेशों को पढ़ने की सलाह दी जाती है. भगवद्गीता में जीवन, कर्म, धर्म, योग, भक्ति और ज्ञान के गहरे सिद्धांतों को समझाया गया है, जो कि इंसान की जिंदगी को आसान बनाता है. ऐसे में गीता में इंसान की कुछ आदतें बताई गई हैं, जो कि इंसान के विनाश का कारण बनती हैं. ये आदतें व्यक्ति को कहीं का नहीं छोड़ती हैं. ये आदतें इंसान का पतन करके ही छोड़ती हैं.
इंसान का पतन निश्चित
श्रीमद्भगवद्गीता में बताया गया है कि इंसान को किसी के प्रति आसक्ति की भावना नहीं रखनी चाहिए, जिस व्यक्ति में आसक्ति और वासनाएं की भावनाएं होती हैं. उस व्यक्ति का पतन निश्चित होता है. ये आदतें मानसिक क्षमता को प्रभावित करती हैं, जिसकी वजह इंसान अच्छे और बुरे कर्मों में भेद नहीं कर पाता है और पाप करने को मजबूर हो जाता है.
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व्यक्ति का नष्ट होना निश्चित
गीता उपदेश में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि इंसान में लालच की भावना नहीं होनी चाहिए, जिसके पास जितना है, उतने में ही उसे संतुष्टि रखनी चाहिए, क्योंकि लालची स्वभाव व्यक्ति को बहुत ज्यादा प्रभावित करती है. ज्यादा की भावना व्यक्ति को अनैतिक कार्यों में लगा देती है, जिसकी वजह से उसका नैतिक पतन होने लगता है और एक दिन व्यक्ति खुद नष्ट हो जाता है.
अच्छे-बुरे कर्मों में नहीं कर पाता भेद
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि गुस्से की भावना व्यक्ति को कहीं का नहीं छोड़ती है. यह सबसे पहले इंसान की बुद्धि को नष्ट करने का काम करता है. एक बार बुद्धि नष्ट हो जाए, तो व्यक्ति कहीं का नहीं रहता है. बुद्धि भ्रष्ट होने पर इंसान को अच्छे और बुरे कर्मों में कोई भेद नहीं कर पाता है. ऐसे में इन तीन आदतों को इंसान को जितनी जल्दी हो सके त्याग कर देना चाहिए.
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