Gita Updesh: भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन के अनेक गूढ़ रहस्यों को बताया. उन्हीं में से एक महत्वपूर्ण उपदेश है कि जो व्यक्ति भगवान की सेवा फल की इच्छा से करता है, वह सच्चा सेवक नहीं बल्कि एक व्यापारी की तरह होता है. गीता का यह उपदेश आज के समय में भी हर व्यक्ति के लिए प्रासंगिक है. यह हमें निःस्वार्थ सेवा, सच्ची भक्ति और कर्म के महत्व को समझाता है.
Gita Updesh: श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं
जो लोग फल की कामना करते हुए मेरी सेवा करते हैं और मन से कामना का त्याग नहीं करते, वे सच्चे सेवक नहीं होते. ऐसे लोग सेवा नहीं, बल्कि सौदा करते हैं.
इस उपदेश का अर्थ साफ है कि जब हम किसी कार्य को ईश्वर के प्रति भक्ति भाव से नहीं बल्कि बदले में किसी लाभ की आशा से करते हैं, तो हमारी नीयत शुद्ध नहीं रहती. ऐसा कार्य सेवा नहीं बल्कि व्यापार बन जाता है.
सच्चे सेवक में होते है ये गुण

भगवद्गीता और अन्य धर्मग्रंथों के अनुसार सच्चे सेवक की पहचान उसके कर्म, नीयत और आचरण से होती है. ऐसे सेवक में कुछ विशेष गुण होते हैं:
- निःस्वार्थ भाव – सच्चा सेवक बिना किसी फल की इच्छा के सेवा करता है. उसका उद्देश्य केवल प्रभु को प्रसन्न करना होता है, न कि अपनी किसी कामना की पूर्ति.
- समर्पण – सच्चा सेवक अपने मन, वचन और कर्म से पूरी तरह भगवान के चरणों में समर्पित रहता है.
- विनम्रता – उसके अंदर घमंड का लेश भी नहीं होता. वह किसी भी सेवा को छोटा या बड़ा नहीं मानता.
- धैर्य और सहनशीलता – सच्चा सेवक किसी कठिनाई या विपरीत परिस्थिति में भी विचलित नहीं होता. वह अपनी सेवा और भक्ति में निरंतर लगा रहता है.
- समानता का भाव – वह सभी प्राणियों में ईश्वर का अंश देखता है और सबके साथ प्रेम, करुणा और दया का व्यवहार करता है.
फल की कामना से सेवा करने वाला सच्चा सेवक नहीं व्यापारी होता है.
-श्रीकृष्ण
आज के समय में भी कई लोग भक्ति और सेवा के नाम पर व्यापार कर रहे हैं. वे पूजा-पाठ, दान या सेवा कार्य इस उम्मीद से करते हैं कि बदले में उन्हें सुख, समृद्धि या कोई अन्य लाभ प्राप्त हो. गीता हमें सिखाती है कि सेवा तभी सफल और सार्थक होती है जब उसमें निःस्वार्थता हो.
यदि हम अपने कर्मों को भगवान को समर्पित कर फल की चिंता छोड़ दें, तो न केवल हमारा मन शांत रहेगा, बल्कि हमारे जीवन में सच्ची भक्ति और संतोष का जन्म होगा.
– गीता उपदेश
श्रीकृष्ण का यह उपदेश हमें याद दिलाता है कि सच्ची सेवा वही है जो निःस्वार्थ हो. जो लोग सेवा के बदले में चार गुना लाभ की अपेक्षा रखते हैं, वे सेवक नहीं व्यापारी होते हैं. इसलिए हमें अपने जीवन में सच्ची भक्ति और सेवा का मार्ग अपनाना चाहिए और सभी कार्यों को प्रभु अर्पण कर निष्काम भाव से कर्म करना चाहिए.
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Disclaimer: यह आर्टिकल सामान्य जानकारियों और मान्यताओं पर आधारित है. प्रभात खबर इसकी पुष्टि नहीं करता है.