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PCOS : महिलाओं में बढ़ रही पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम की शिकायत 

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) महिलाओं में होनेवाली एक आम हार्मोनल समस्या है, जो उनकी प्रजनन क्षमता को प्रभावित करती है. इसके और भी कई दुष्प्रभाव हैं. जानें वक्त रहते इस समस्या को पहचानने एवं इससे निजात पाने के बारे में...

PCOS : अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) द्वारा किये गये सर्वेक्षण की मानें, तो देश में हर पांच में से एक महिला इस समस्या से पीड़ित है. वक्त के साथ बदलते खानपान और खराब जीवनशैली के चलते महिलाओं के साथ-साथ किशोरियों में भी पीसीओएस की शिकायत से बढ़ रही है. आंकड़ों के अनुसार बीते कुछ वर्षों में पीसीओएस के मामलों में 15 से 20 गुना तक की वृद्धि दर्ज की गयी है. भारत ही नहीं, बल्कि यूके में भी हर 5 में से 1 महिला को पीसीओएस की शिकायत है. वहीं अमेरिका में 5 मिलियन से अधिक महिलाएं इस समस्या का सामना कर रही हैं.  

अज्ञात है समस्या का सटीक कारण

पीसीओएस की समस्या क्यों होती है, इस बारे में विशेषज्ञों को पुख्ता जानकारी आज तक नहीं प्राप्त हो सकी है, लेकिन डॉक्टरों का मानना है कि यह समस्या महिलाओं में हार्मोनल असंतुलन, मोटापा या तनाव के कारण उत्पन्न होती है. यह समस्या जेनेटिकली भी हो सकती है. 

  • पीसीओएस से पीड़ित महिला के गर्भाशय में पुरुष हार्मोन यानी एंड्रोजन का स्तर बढ़ जाता है, जिससे ओवरी में सिस्ट बनने लगती हैं. 
  • तनावपूर्ण जीवन व्यतीत करनेवाली महिलाओं में पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम होने की संभावना अधिक होती है.

कुछ तथ्यों को जानना है जरूरी

  • 10 में से 1 प्रसव उम्र की महिला वर्तमान समय में पीसीओएस का शिकार है. 
  • 70 फीसदी पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं का आज भी निदान नहीं किया जाता. 
  • महिलाओं में ही नहीं, यह समस्या 11 वर्षीय किशोरियों में भी हो सकती है. 
  • 50 प्रतिशत से अधिक पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं में 40 वर्ष की आयु तक प्री-डायबिटीज या टाइप-2 डायबिटीज की समस्या विकसित हो जाती है. 
  • 50 से 70 फीसदी पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं में इंसुलिन प्रतिरोध होता है. 
  • एक सामान्य महिला की तुलना में पीसीओएस से पीड़ित महिला में दिल का दौरा पड़ने का खतरा 4 से 7 गुना अधिक बढ़ जाता है. 
  • पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं में आत्महत्या के प्रयास 7 गुना अधिक देखे गये हैं. 

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इन लक्षणों से कर सकते हैं समस्या की पहचान 

पीसीओएस के ज्यादातर मामलों में समस्या के बारे में तब पता चलता है, जब महिलाओं को अनियमित माहवारी की समस्या होने लगती है या वे लंबे समय तक गर्भवती नहीं हो पाती.  

  • अचानक मुंहासों की शिकायत होना इस समस्या का एक लक्षण हो सकता है. शरीर में अत्यधिक पुरुष हार्मोन स्रावित होने से त्वचा सामान्य से अधिक तैलीय बन जाती है, जिससे पीठ, चेहरे और छाती पर एक्ने व मुंहासे आने लगते हैं. इस समस्या की शिकार 15-30 प्रतिशत महिलाओं को मुंहासे की शिकायत होती है.
  • सिर के बाल पहले पतले होने लगते हैं.
  • चेहरे, पीठ और पेट के आस-पास असामान्य रूप से बालों का विकास हो जाता है. 
  • पीसीओएस से पीड़ित महिला को माहवारी के दौरान सामान्य से अधिक स्राव की शिकायत हो सकती है, क्योंकि गर्भाशय अस्तर का निर्माण अनियमित पीरियड्स के कारण होता है, इसलिए जब पीरियड होते हैं, तो स्राव सामान्य से अधिक होता है. 
  • पीसीओएस से पीड़ित 80 प्रतिशत महिलाओं को मोटापे से ग्रस्त देखा जाता है.
  • ऐसी महिलाओं को असामान्य हार्मोन के लेवल के कारण आये दिन सिरदर्द हो सकता है.

ऐसे की जाती है पीसीओएस की पुष्टि  

  • पीसीओएस का पता लगाने के लिए डॉक्टर मरीज से माहवारी व सेहत से जुड़े कुछ सवाल जैसे- माहवारी के दौरान अधिक रक्तस्राव, पेट के निचले हिस्से में ऐंठन, चेहरे पर मुंहासे, बालों का पतला होना व झड़ना आदि के बारे में पूछते हैं. किसी भी तरह की शंका होने पर शारीरिक परीक्षण कराया जाता है. 
  • शारीरिक परीक्षण में डॉक्टर रक्तचाप, बॉडी मास इंडेक्स व कमर का साइज जांचते हैं. साथ ही यह भी देखते हैं कि शरीर में कहीं अचानक से बाल बढ़ने तो नहीं शुरू हुए.
  • डॉक्टर इस बात की भी जांच करते हैं कि कहीं अंडाशय में सूजन व छोटी-छोटी गांठें तो नहीं हैं. इसके अलावा एंड्रोजन का स्तर जांचने के लिए रक्त की जांच कराते हैं. साथ ही ब्लड ग्लूकोज लेवल की भी जांच करायी जाती है. 

उपचार के तरीके

पीसीओएस की शिकायत वाली महिला को नियमित रूप से पौष्टिक भोजन का सेवन करने व शारीरिक व्यायाम करने की सलाह दी जाती है, जिससे उसका बॉडी मास इंडेक्स 18.5 से 25 के बीच रहे. 

  • अगर पीसीओएस के कारण टाइप-2 डायबिटीज हो गयी है, तो इसे नियंत्रित करने के लिए डॉक्टर की सलाह पर दवा लेनी होती है.
  • अगर पीसीओएस के कारण कोई महिला गर्भधारण नहीं कर पा रही है, तो डॉक्टर प्रजनन क्षमता को बेहतर करने के लिए दवाइयां देते हैं, जो अंडाशय को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं. साथ ही पीरियड्स को नियमित करने व पीसीओएस के प्रभाव को कम करने का काम करती हैं.  
  • लेप्रोस्कोपिक ओवेरियन ड्रिलिंग, पीसीओएस से निपटने की एक सर्जिकल प्रक्रिया है. मरीज की स्थिति को देखते हुए डॉक्टर इस विकल्प का चयन करते हैं. 
  • तनाव पीसीओएस को बढ़ावा देता है. ऐसे में तनाव से दूर रहने के लिए विशेषज्ञ मरीज को   काउंसलर की मदद लेने की सलाह भी देते हैं. 

स्वस्थ जीवनशैली से मिलती है राहत 

पीसीओएस से ग्रस्त महिलाओं के शरीर में इंसुलिन रेजिस्टेंस देखने को मिलती है, जिससे उनमें डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है. ऐसे में उन्हें हेल्दी डाइट और लाइफस्टाइल फॉलो करने की सलाह दी जाती है. 

  • पीसीओएस की शिकार महिलाओं को हाई फाइबर फूड जैसे-ओट्स, मूसली, शकरकंद और हरी पत्तेदार सब्जियों का पर्याप्त मात्रा में सेवन करने को कहा जाता है. 
  • टोफू, दालें, चिकन और मछली जैसे लीन प्रोटीन युक्त पदार्थों का सेवन करना भी अच्छा रहता है. वहीं, तले-भुने, जंक, बेक्ड और मसालेदार खाने से परहेज करना होता है. 
  • रोजाना आधे घंटे एक्सरसाइज करना पीसीओएस से राहत पाने में काफी फायदेमंद साबित होता है. इसी के चलते पीसीओएस में महिलाओं को जॉगिंग, स्विमिंग, ब्रिस्क वॉकिंग, रेगुलर स्ट्रेंथ ट्रेनिंग, कार्डियो एक्सरसाइज व योग करने को कहा जाता है.  
Prachi Khare
Prachi Khare
Sr. copy-writer. Working in print media since 15 years. like to write on education, healthcare, lifestyle, fashion and film with the ability of produce, proofread, analyze, edit content and develop quality material.

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