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Sarhul: झारखंड के सबसे बड़े त्योहार को मनाने के लिए हो जाएं तैयार, 50 साल पुराना है इतिहास

आदिवासियों के लिए सरहुल एक मुख्य पर्व होता है. आदिवासी इस दिन प्रकृति को सम्मान देते हुए उसकी पूजा करते हैं. सरहुल आदिवासियों के लिए बहुत महत्व रखता है और वह इससे जुड़ी सारी परंपराओं पूरी श्रद्धा के साथ मानते हैं. सरहुल आदिवासियों के लिए उनकी पहचान होती है.

Sarhul: सरहुल पूरे झारखंड में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है जिसे सम्पूर्ण झारखंड में बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है. आदिवासी इस दिन नए साल का जश्न मनाते है. सरहुल के समय ही प्रकृति अपना नया रूप दिखाने लगती है जब हम पेड़ों में नए फूल और पत्तों को निकलते हुए देखते हैं. सरहुल दो शब्दों से जुड़ कर बना है- ‘सर’ जिसका मतलब होता है सखुआ या साल का फूल और ‘हुल’ का मतलब होता है क्रांति. सरहुल को सखुआ फूल की क्रांति का पर्व कहा जाता है. इस पर्व को चैत्र महीने में अमावस्या के तीसरे दिन को मनाया जाता है. हालांकि, कुछ गांव में यह पूरे महीने मनाया जाता है. लोग इस दिन अखड़ा में नाचते गाते है और पूजा अर्चना करते हैं. सरहुल के दिन बहुत जगह जुलुस निकाले जाते हैं. सरहुल में जुलुस का आयोजन करने की शुरुआत 1967 में हुई थी. इसकी शुरुआत आदिवासी नेता कार्तिक उरांव ने की थी. इस दिन आदिवासी अपने घर में सफ़ेद और लाल रंग का सरना झंडा लगाते हैं.

आदिवासियों के लिए सरहुल का महत्व

सरहुल पर्व खासकर प्रकृति की पूजा करने के लिए मनाया जाता है. इस त्योहार में सखुआ के फूल का काफी महत्व होता है. सखुआ फूल सरहुल पूजा के वक़्त अर्पण किया जाता है. सरहुल आदिवासियों के संस्कृति और परंपरा को दर्शाता है. इस पर्व के बाद ही आदिवासी किसी नए काम की शुरुआत करते हैं. किसान सरहुल पूजा के बाद ही खेती का काम शुरू करते हैं. आदिवासी हमेशा से ही प्रकृति की पूजा करते हुए आ रहे यहीं, प्रकृति और आदिवासियों के बीच एक अटूट बंधन है. आदिवासियों का जीने का स्रोत प्रकृति है. सरहुल पर्व हमे प्रकृति को बचाने का संदेश देता है. यह झारखंड में बहुत सारी जनजातियों द्वारा मनाया जाता है खासकर मुंडा, हो और उरांव जनजाति.

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सरहुल पर्व से जुड़ी रीती रिवाज और परंपरा

सरहुल पूजा में धरती और सूरज का विवाह कराया जाता है. इस दिन साल वृक्ष की पूजा की जाती है और और अच्छी फसल के लिए प्रार्थना की जाती है. सरहुल के एक दिन पहले दो घड़ों में पानी भारा जाता है और दूसरे दिन पूजा की जाती है और यह देखा जाता है कि किस तरफ से घड़े से पानी बह रहा है. ऐसा माना जाता है कि जिस दिशा से पानी बहता है उसी तरफ से बारिश आती है. घड़े से अगर ज्यादा पानी बहता है तो माना जाता है कि उस वर्ष ज्यादा वर्षा होगी. इस दिन से जुड़ी और भी मान्यता है जैसे पहान या पुजारी द्वारा खिचड़ी बनाई जाता है. ऐसी मान्यता है कि जिस तरफ से खिचड़ी उबालना शुरू होती है उसी तरफ से बारिश आती है. सरहुल पूजा में केकड़े को भी खास माना जाता है, सरहुल पूजा दिन पहान केकड़े को पकड़ कर पूजा घर में टांग देते हैं. धान की बुनाई का जब समय आता है तब वह केकड़े का चूर्ण बनाकर गोबर में मिला दिया जाता हैं. ऐसी माना जाता है कि इससे अच्छी फसल होती है.

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Saurabh Poddar
Saurabh Poddar
Digital Media Journalist having more than 2 years of experience in life & Style beat with a good eye for writing across various domains, such as tech and auto beat.

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