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Tribal Ornaments : गेहूं के घास से बने ब्रेसलेट सहित ये हैं झारखंडी महिलाओं के प्रमुख पारंपरिक आभूषण

Tribal Culture : झारखंड के आदिवासी अपनी संस्कृति को लेकर काफी जागरूक हैं और वे इसे संजोकर रखना भी जानते हैं. आदिवासी महिलाओं की साज-सज्जा इसका उदाहरण है

अनु कंडुलना-

Tribal Ornaments : झारखंड के आदिवासी समाज के बारे में जब आप जानना शुरू करते हैं तो हर बार आपको कुछ नई और अनोखी बातें जानने को मिलती हैं. आदिवासी समाज की महिलाएं जिस तरह से अपना श्रृंगार करती हैं और आभूषण पहनती हैं वो आपको और कहीं देखने को नहीं मिलेगा. यह आभूषण और श्रृंगार उनके लिए सिर्फ एक पहनावा नहीं बल्कि उनकी परंपरा और संस्कृति से जुड़े रहने का माध्यम भी है.
आदिवासी महिलाओं को हम उनके पारंपरिक श्रृंगार करते और आभूषणों को पहनते हुए खास पर्व- त्योहारों में या फिर उनके प्रतिदिन के जीवन में भी देख सकते हैं. आदिवासी लोग प्रकृति से जुड़े हैं इसलिए वे उसमे मिलने वाली चीजों का प्रयोग करके ही अपनी श्रृंगार सामग्री का निर्माण करते हैं. वे इन प्राकृतिक चीजों को इतना खूबसूरत रूप दे देते हैं कि देखने वाले चौंक जाते हैं. आदिवासी महिलाएं पत्तों और फूल से अपने लिए श्रृंगार के सामान बना लेती हैं, तो आइए जानते हैं उन चीजों के बारे.


गेहूं के घास का ब्रेसलेट


आदिवासी समाज की औरतें गेहूं की घास के सूख जाने के बाद उससे सुंदर ब्रेसलेट बनाती हैं और इसका प्रयोग वे अपनी साज-सज्जा में करती हैं. इसके अलावा वे कई तरह के फूल जैसे सखुआ के फूल से कानों की बाली बनाती हैं. इसके अलावा कान में वह तरपत पहनती है जिस ताड़ के पत्तों को मोड़कर और रंग करके बनाया जाता है. सखुआ या साल के पत्ते और फूल आदिवासी महिलाएं त्योहारों में सजने के लिए प्रयोग करती हैं. इन फूलों का प्रयोग वह अलग-अलग तरीके से करती हैं. इसे वह अपने बालों में लगाती हैं और कान में बालियों की तरह और माला बनाकर भी पहनती हैं.

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गोदना या टैटू


झारखंड के आदिवासियों में गोदना की प्राचीन परंपरा है. यह प्रथा मानव समाज की काफी प्राचीन परंपरा है. इस परंपरा को मानने के पीछे धार्मिक कारण होते हैं. अगर आप झारखंड के आदिवासियों से मिलेंगे तो आपको उनके शरीर में कुछ अलग प्रकार की कलाकृतियां नजर आएंगी. यह इन आदिवासी जनजातियों के लिए एक पहचान का चिह्न होता है. गोदना का मतलब होता है सुई की नोक से त्वचा को खोदना. आदिवासी महिलाएं अपने शरीर पर अलग – अलग डिजाइन का गोदना बनवाती हैं और उससे खुद को सजाती हैं. वह इसे भी एक तरह का आभूषण मानती हैं. आदिवासी लोगों का ये मानना है कि जो भी सोने या चांदी के आभूषण वह पहनते हैं वह एक दिन गायब हो जायेगा पर जब वह अपने शरीर में गोदते हैं तो यह उनके साथ हमेशा रहेगा यहां तक की जीवन के अंत तक.


चांदी की हसली


आदिवासी महिलाएं अपने श्रृंगार के लिए बहुत सारे आभूषण पहनती हैं उनमें विभिन धातुओं से बने आभूषण होते हैं जैसे गले में चांदी की हसली पहनने का यहां रिवाज है. इसके अलावा वे गले में सिकड़ी पहनती है जो 6 – 7 चेन को मिलाकर बनता है.


लाह से बनी माला


लाह की मोतियों से बनी माला और लाल पत्थर की मोतियों से बनी माला भी आदिवासी समाज की महिलाएं खूब शौक से पहनती हैं. इसके अलावा खम्भिया व मंडली भी महिलाएं पहनती हैं, जो एक तरह की माला ही है. इसके अलावा छाती माला , बाजा माला , हरवा माला भी होती है.

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बालों के लिए खोंगसो


बालों को सजाने के लिए आदिवासी महिलाएं चांदी से बने खोंगसो का प्रयोग करती हैं जो जूड़े में लगाया जाता है. कानों में यह कंपस पहनती हैं यह पूरे कान को ढंक लेता है. इसके अलावा महिलाएं हाथों में चूड़ी कि जगह चांदी की मठिया पहनती हैं. पैरों के आभूषण में झटिया है जो पैरों के अंगलियों में पहनी जाती है इसके अलावा पैरी पहनती हैं,जो काफी भारी होती है ये अंदर से पाइप की तरह खाली होती है पर ये काफी आवाज करता है.
पारंपरिक आदिवासी आभूषण सिर्फ सजावट की वस्तु नहीं है, बल्कि यह आदिवासी समाज की सांस्कृतिक विविधता और सदियों पुरानी उनकी परंपराओं का भी प्रतीक है. ये आभूषण उन्हें पहचान देता है और परंपराओं के साथ उनके गहरे संबंध को दिखाता है.
(शरण उरांव, महादेव टोप्पो और राकेश रमण से बातचीत पर आधारित)

Prabhat Khabar News Desk
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