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स्वच्छ भारत मिशन : बच्चों के स्वास्थ्य में हुआ सुधार, बीमारियों से भी हो रहा है बचाव, अबतक बने 9.5 करोड़ शौचालय

-रजनीश आनंद- महात्मा गांधी ने एक बार कहा था स्वच्छता, स्वतंत्रता से ज्यादा जरूरी है. इसलिए उनके आदर्शों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2014 में स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की थी, इसका उद्देश्य है ‘ सुंदर भारत की परिकल्पना, जिसे स्वस्थ भारत के जरिये पूरा किया जायेगा. इस मिशन का […]

-रजनीश आनंद-

महात्मा गांधी ने एक बार कहा था स्वच्छता, स्वतंत्रता से ज्यादा जरूरी है. इसलिए उनके आदर्शों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2014 में स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की थी, इसका उद्देश्य है ‘ सुंदर भारत की परिकल्पना, जिसे स्वस्थ भारत के जरिये पूरा किया जायेगा. इस मिशन का उद्देश्य था महात्मा गांधी की 150वीं जयंती यानी कि 2 अक्टूबर 2019 तक सार्वभौमिक स्वच्छता कवरेज प्राप्त करना है. देश को खुले में शौच से मुक्त करना इस मिशन की प्राथमिकता है. साथ ही इस मिशन का उद्देश्य स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक करना है, ताकि वे स्वस्थ रहें.

11 करोड़ लोग खुले में शौच करने पर मजबूर थे

चिंताजनक बात यह है कि भारत में स्वच्छता का अभाव है, जिसके कारण आम लोगों को ना सिर्फ कई तरह की बीमारियां हो रही हैं, बल्कि वे एक सम्मानजनक जीवन भी नहीं जी पा रहे हैं. वर्ष 2014-15 के आंकड़ों पर गौर करें, तो विश्व भर में 2.3 करोड़ लोग स्वच्छता के लिए आवश्यक बुनियादी जरूरतों से महरुम हैं. वहीं भारत में यह स्थिति थी कि 10 करोड़ ग्रामीण और एक करोड़ शहरी परिवार खुले में शौच के लिए मजबूर थे. आबादी की बात करें तो लगभग 55 करोड़ लोग खुले में शौच जाते हैं. चौंकाने वाली बात यह है कि विश्व में जितने लोग खुले में शौच जाते हैं, उनमें से 60 प्रतिशत लोग भारत में हैं.

कम खर्च में शौचालय बनाने की शुरुआत

वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत करते हुए कहा था कि जब भारत के लोग कम खर्च में मंगल ग्रह तक जा सकते हैं, तो फिर वे कम से कम खर्च में अपनी सड़कों और मुहल्ले को साफ क्यों नहीं रख सकते. इस मिशन के तहत ना सिर्फ शौचालयों का निर्माण हो रहा है, बल्कि लोगों के व्यवहार में परिवर्तन लाकर उन्हें स्वच्छता के प्रति जागरूक किया जा रहा है. इसका असर व्यापक हो रहा है और कई तरह के अध्ययनों में यह बात उभरकर सामने आयी है. स्वास्थ्य के प्रति लोग जागरूक हुए हैं और स्वच्छता का ध्यान रख रहे हैं, जिससे बीमारियों की रोकथाम में आशातीत सफलता मिल रही है. साथ ही अप्रत्यक्ष रूप से यह आर्थिक दृष्टिकोण से भी लाभ पहुंचा रहा है.

स्वच्छ भारत मिशन के लिए वर्ष 2014-2019 तक आवंटित राशि

सरकार ने वर्ष 2014-15 में स्वच्छ भारत मिशन के लिए 2850 करोड़ रुपये आवंटित किया गया, जबकि 2730.3 करोड़ जारी किये गये और इसमें से 95.8 प्रतिशत जारी खर्च हुई. वर्ष 2015-16 में 6525 करोड़ आवंटित किये गये, 6363 जारी किये गये और इनमें से 97.51 प्रतिशत राशि खर्च हुई. वर्ष 2016-17 में सरकार ने 10513 करोड़ राशि आवंटित की, 10272 रिलीज हुई, जिसमें से 97.70 प्रतिशत राशि का उपयोग मिशन के कार्यों में किया गया. जबकि 2017-18 में 16948.27 करोड़ की राशि आवंटित की गयी, जबकि 16610.9 रिलीज हुई और उनमें से 98 प्रतिशत राशि का उपयोग हुआ. जबकि वर्ष 2018-19 (RE) में 14478.1 करोड़ राशि आवंटित, 12932.96 करोड़ की राशि जारी और उनमें से 89.3 प्रतिशत खर्च हुई.

स्वच्छ भारत मिशन के तहत बने 9.5 करोड़ शौचालय

सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन के तहत देश के 98.9 भारत को शामिल किया और 14 जून 2019 तक देश भर में कुल साढ़े नौ करोड़ शौचालयों का निर्माण करवाया. मिशन ने इस बात पर फोकस किया कि गांवों को खुले में शौच से मुक्त बनायेंगे, इसके तहत 50 लाख से शुरू करके तीन करोड़ प्रति वर्ष तक शौचालयों का निर्माण हुआ. इन प्रयासों के बाद 29 मई 2019 तक 5,61,014 गांव, 2,48,847 ग्राम पंचायत, 6,091 ब्लॉक और 618 जिला खुल में शौच से मुक्त हो गया है.

झारखंड-बिहार और बंगाल भी खुले में शौच से मुक्त राज्य बनने की ओर

स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत के बाद देश भर में कुल 93.41 प्रतिशत क्षेत्र खुले में शौच से मुक्त हो गये हैं. अगर राज्यवार आंकड़ा दिया जाये, तो झारखंड खुले में शौच से सौ प्रतिशत मुक्त हो चुका है. बंगाल में यह आंकड़ा 99.55 का है, जबकि बिहार में यह डाटा 82.95 का है. सबसे खराब स्थिति गोवा की है, जहां मात्र 5.84 प्रतिशत क्षेत्र ही खुले में शौच से मुक्त हो पाया है, उसके बाद ओडिशा है, जहां खुले में शौच से मुक्ति 45.36 प्रतिशत और तेलंगाना में 73.99 प्रतिशत है.


मलेरिया और डायरिया की गिरफ्त में आने वाले 0-5 वर्ष तक के बच्चों की संख्या में कमी

शौचालयों के निर्माण का प्रत्यक्ष असर जो 0-5 तक के बच्चों में दिखा, वह यह है कि मलेरिया और डायरिया के शिकार बच्चों की संख्या घटी. 2011 तक डायरिया से मरने वाले बच्चों की संख्या 11 प्रतिशत थी जो अब काफी घटी है. साथ ही शौचालयों का निर्माण होने से जन्म लेने वाले बच्चों का औसत वजन भी 2.5 किलोग्राम के ऊपर आया है और मृत बच्चा पैदा होने की संख्या भी घटी है. 2015 में सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में मरे हुए पैदा हुए, जिनकी संख्या 48 हजार के आसपास थी, वर्ष 2019 (मार्च) में यह घटकर 44 हजार के आसपास पहुंच गया. बिहार में मृत जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या 35 हजार थी जो शौचालयों के निर्माण के बाद यह 25 हजार के आसपास पहुंच गया है. वहीं पश्चिम बंगाल में यह 25 हजार के आसपास था जो शौचालय निर्माण के बाद 18 हजार के आसपास पहुंचा है. वहीं बिहार, उत्तर प्रदेश और बंगाल जैसे राज्य में स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत के बाद 2.5 किलोग्राम से ज्यादा के बच्चे पैदा होने का औसत काफी बढ़ा है, जो दूसरे राज्यों के लिए भी प्रेरणा का काम करेगा.

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Prabhat Khabar Digital Desk
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