23.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

तेलंगाना : क्लास लीडरशिप का चुनाव हारने से परेशान 13 साल के बच्चे ने मौत को लगा लिया गले

नयी दिल्ली: तेलंगाना में एक तेरह वर्षीय बच्चे ने आत्महत्या कर ली. घटना तेलांगना के भोनागीर इलाके की है. आत्महत्या की वजह चौंकाने वाली है. जानकारी के मुताबिक क्लास रेप्रेंजटेटिव के लिये होने वाले चुनाव में हार जाने के कारण उसने आत्महत्या कर ली. डीएसी एन रेड्डी ने बताया कि बच्चा बीते 18 जुलाई से […]

नयी दिल्ली: तेलंगाना में एक तेरह वर्षीय बच्चे ने आत्महत्या कर ली. घटना तेलांगना के भोनागीर इलाके की है. आत्महत्या की वजह चौंकाने वाली है. जानकारी के मुताबिक क्लास रेप्रेंजटेटिव के लिये होने वाले चुनाव में हार जाने के कारण उसने आत्महत्या कर ली. डीएसी एन रेड्डी ने बताया कि बच्चा बीते 18 जुलाई से ही लापता था. बाद में उसका शव रमन्नापेट स्थित रेलवे ट्रैक से बरामद हुआ. पुलिस ने भी इस बात की पुष्टि की है कि क्लास लीडरशिप चुनाव में हारने के बाद वो तनाव में था. फिलहाल पुलिस छानबीन कर रही है.

इधर, एक अन्य मामले में नोएडा के रहने वाले 10 साल के सुमेर दास ने आत्महत्या कर ली. इसकी आत्महत्या की वजह भी हैरान कर देने वाली है. जानकारी के मुताबिक सुमेर के पिता ई-रिक्शा चलाते हैं. घटना वाले दिन बच्चे ने पिता के साथ ई-रिक्शा में घूमने जाने की जिद्द की थी लेकिन भारी बारिश को देखते हुए पिता ने मना कर दिया और काम पर चले गये. इसी बात से नाराज सुमेर ने कमरे में चुन्नी का फंदा बनाकर फांसी लगा ली.

उपरोक्त दोनों घटनाओं को देखें तो दोनोंं ही मामलों में आत्महत्या करने वाले काफी कम उम्र के हैं. दोनों किसी ना किसी कारण से परेशान थे, नाराज थे या फिर तनाव में थे. दोनों ही मामलों में वजह बहुत मामूली था. हालांकि ये बच्चों द्वारा आत्महत्या कर लिये जाने का पहला मामला नहीं है. कई और घटनाएं सामने आई हैं.

तेलंगानामें दो दर्जन छात्रों ने की थी आत्महत्या

आपकोतेलंगाना की ही एक घटना शायद याद हो. यहां दसवीं और बारहवीं बोर्ड परीक्षा का परिणाम जारी होने के बाद तकरीबन 25 छात्रों ने आत्महत्या कर ली थी. इन सबकी औसत उम्र 17 से 19 साल के बीच थी. बोर्ड की ओर से तकनीकी खामियों के कारण इन सबको उन विषयों में फेल दिखा गया था जिनमें इन्होंने अच्छे अंक हासिल किये थे. दिल्ली में एक 15 साल की बच्ची ने दसवीं के परिणाम जारी होने से पहले ही आत्महत्या कर ली. सुसाइड नोट में उसने लिखा कि उसे अंग्रेजी में फेल हो जाने का डर है. हालांकि जब परिणाम घोषित हुए तो उसने इस विषय में 82 फीसदी अंक हासिल किये थे.

करीब एक महीने पहले 23 जून को कोलकाता के एक प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ने वाली दसवीं की छात्रा ने बड़े ही दर्दनाक तरीके से कलाई की नस काटकर आत्महत्या कर ली थी. उसने मरने से पहले तीन पेज का सुसाइड नोट लिखा था. उसने बताया था कि मैं शायद बोर्ड परीक्षा में उम्मीदों के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाउंगी. हालांकि उसके शैक्षणिक रिकॉर्ड बताते हैं कि उसने तमाम कक्षाओं में अव्वल प्रदर्शन किया था.

इसके अलावा यदा-कदा हम माता-पिता द्वारा थोड़ी सी फटकार पर आत्महत्या के मामले सुनते रहते हैं. हाल के दिनों में मोबाइल पर खेले जाने वाले गेम पबजी की वजह से भी आत्महत्या के तकरीबन दर्जन भर मामले सामने आये हैं. कभी गेम में हार के कारण तो कभी लगातार उस पर समय बिताने पर पड़ी डांट के कारण. ये वाकई चिंताजनक है.

अकेलेपन और गलाकाट प्रतिस्पर्धा से परेशान बच्चे

सवाल है कि आखिर क्यों इतनी कम उम्र में बच्चे इतना तनावग्रस्त हैं. क्या कारण है कि बच्चे चीजों को लेकर इतने गंभीर हो चले हैं. आखिर क्यों छोटी-छोटी बातों पर वे सहनशील नहीं रह पाते और बातों को नकारात्मक ढंग से स्वाभिमान या इज्जत से जोड़ लेते हैं. नोएडा और तेलांगना का मामला इस दृष्टिकोण में बड़ा उदाहरण है. जानकार बताते हैं कि वर्तमान में बच्चों की दुनिया भी गलाकाट प्रतिस्पर्धा वाली बना दी गयी है. होश संभालते ही अच्छी शिक्षा, जिसमें बेहतर इंसान की बजाय बेहतर कंपीटीटर बनाने की होड़ में शामिल कराने की चाहत, स्कूल, समाज और कोचिंग संस्थानों में प्रतिस्पर्धा के नकारात्मक तरीकों की वजह से ये हालात बने हैं.

तकनीक का युग है और हर हाथ में स्मार्टफोन. सारे लोग पूरी दुनिया हथेलियों में समेटे घुमते हैं लेकिन आसपास के लिये वक्त नहीं है, न तो समाज न परिवार और बच्चों के लिये और ना ही खुद के लिये. मेट्रो, बस, घर, दुकान, रेस्तरां सब जगह स्मार्टफोन में चेहरा झुकाए लोगों की तस्वीरें आम हो गईं हैं. बच्चों के हाथों में भी स्मार्टफोन सामान्य सी बात है. अभिभावक बिजी होने का हवाला देकर बच्चों के हाथों में फोन थमाते हैं लेकिन मुआयना करने की जहमत नहीं उठाते कि बच्चों के मासूम और कच्चे मन में किस तरीके का कंटेंट भरा जा रहा है.

प़ढ़ाई से लेकर खेल तक सबमें घोर प्रतिस्पर्धा

वर्तमान में हमने खेल को भी खेल नहीं रहने दिया है. अभिभावक बच्चों को हमेशा जीतना सीखा रहे हैं, आगे रहना सीखा रहे हैं थ्री इडियट्स वाले डायरेक्टर की तर्ज पर कि तेज नहीं भागोगे तो कोई कुचल कर आगे निकल जायेगा. बच्चों के रिजल्ट से लेकर खेल के मैदान में जीत तक को समाज ने इज्जत या फिर बेइज्जती का माध्यम बना लिया है. जाहिर है कि यही सब बच्चों के मन में है. कामयाबी किसी भी कीमत पर और अगर नहीं तो फिर सबकुछ खत्म. आज एकल परिवार प्रणाली में बच्चे अकेलेपन का शिकार हैं.

बढ़ता जनसंख्या घनत्व खेल के मैदान छीन चुका है और असुरक्षा की भावना के कारण अभिभावक उन्हें अन्य बच्चों के साथ घुलने मिलने भी नहीं देते. बच्चों के साथ उनकी सोच, समस्या, तनाव, जरूरतों पर बात करने वाला कोई नहीं रहा. इसलिये उनका कच्चा मन जो देखता वही बिठा लेता है. जब तक नकारात्मक पर आधारित गलाकाट प्रतिस्पर्धा बच्चों पर थोपी जातीं रहेंगी, बच्चों की आत्महत्या से जुड़ी खबरें सुर्खियां बनी रहेंगी, इसपर वाकई सोचे जाने की जरूरत है.

Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel