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नटवर के किताब ने छू दी सोनिया गांधी की कमजोर नस

नयी दिल्ली:भूतपूर्व कांग्रेसी नेता नटवर सिंह ने शुक्रवार को कहा कि उनकी आत्मकथा पर सोनिया गांधी की कड़ी प्रतिक्रिया साबित करती है कि उसने एक ‘कमजोर नस’ को छू दिया. किसी चीज ने उन्हें इतना ‘परेशान’ किया कि उन्होंने प्रतिक्रिया दे दी. सिंह ने एडीटीवी पर साक्षात्कार में यह भी दावा किया कि ‘50 कांग्रेसियों’ […]

नयी दिल्ली:भूतपूर्व कांग्रेसी नेता नटवर सिंह ने शुक्रवार को कहा कि उनकी आत्मकथा पर सोनिया गांधी की कड़ी प्रतिक्रिया साबित करती है कि उसने एक ‘कमजोर नस’ को छू दिया. किसी चीज ने उन्हें इतना ‘परेशान’ किया कि उन्होंने प्रतिक्रिया दे दी. सिंह ने एडीटीवी पर साक्षात्कार में यह भी दावा किया कि ‘50 कांग्रेसियों’ ने उन्हें फोन करके ‘सच्चाई कहने’ के लिए बधाई दी.

सिंह ने अपनी किताब में सोनिया का जिक्र ‘जहरीली’, ‘अत्यधिक शंकालु’ और ‘किसी प्रधान गायिका’ के रूप में किया, ‘जिसके साथ भारत में कदम रखने के दिन से किसी राजसी व्यक्ति के जैसा बर्ताव किया गया.’ नटवर ने कहा कि यह तथ्य ‘महत्वपूर्ण’ है कि सोनिया ने उनकी पुस्तक के तथ्यों पर प्रतिक्रिया दी, क्योंकि उन्होंने संजय बारू की पुस्तक पर प्रतिक्रिया नहीं दी थी. यह पूछा गया कि ऐसा क्यों, क्या इसलिए कि उसने एक कमजोर नस छू दी, सिंह ने कहा, ‘निश्चित तौर पर, यह कुछ ऐसा है, जिसने उन्हें इतना परेशान किया कि उन्होंने प्रतिक्रिया दी. यदि मैं उन्हें सलाह दे रहा होता, तो मैं कहता कि प्रतिक्रिया नहीं दीजिए.’

सोनिया के प्रधानमंत्री बनने से इनकार और अन्य मुद्दों पर नटवर सिंह के दावों को मनमोहन सिंह द्वारा ‘प्रचार का हथकंडा’ बताये जाने के बारे में पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने कहा, ‘तथ्य वह है, जो संजय बारू ने कहा और जो मैंने कहा और जो अन्य ने कहा है.’ नटवर अपने दावे पर कायम रहे कि पूर्व प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पुलक चटर्जी ने आधिकारिक फाइलें सोनिया के पास लेकर गये. उन्होंने सवाल किया, ‘क्या वह सोनिया से इसलिए मिलने गये थे, ताकि उनके साथ चाय पी सकें.’

राजीव के राजनीतिक और प्रशासनिक कौशल पर सवाल
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के प्रति अपने निजी लगाव के बावजूद नटवर सिंह ने अपनी किताब में राजीव के राजनीतिक और प्रशासनिक कौशल पर सवाल खड़े किये हैं. कहा कि उन्होंने शाह बानो, बाबरी मसजिद-राम जन्मभूमि मुद्दे और दार्जीलिंग पर्वतीय क्षेत्र के आंदोलन को ‘गलग ढंग से निबटाया’. उन्होंने अपनी आत्मजीवनी ‘वन लाइफ इज नॉट एनफ’ में कहा, ‘मैंने तब महसूस किया और अब भी करता हूं कि प्रधानमंत्री इसको ज्यादा अच्छे ढंग से निबटा सकते थे. वह ज्यादा संयम बरत सकते थे. उन्होंने यह नहीं किया.

इसके उलट, वह बोफोर्स कीचड़ में कूद पड़े. कुछ उन्हें लगी.’ कहा कि राजीव अपने मंत्रिमंडल में बार-बार फेरबदल करते थे. ऐसे फेरबदल दो दर्जन से ज्यादा बार हुए. बहरहाल, सिंह ने ‘बड़ी संख्या में लोगों की मानसिकता बदलने’ और देश को 21वीं सदी के लिए तैयार करने के लिए राजीव की तारीफ की. उन्होंने राजीव की चीन यात्र को एक अहम घटना के रूप में पेश किया. लिखा, ‘उन्होंने अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान जो उपलब्धि हासिल की, वह उल्लेखनीय है.’

राव-सोनिया के सर्द रिश्तों की भी चर्चा

सोनिया गांधी और तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के सर्द रिश्तों की भी पुस्तक में चर्चा है. सिंह के अनुसार, सोनिया ने कभी राव को पसंद नहीं किया, जबकि राव को इसकी वजह कभी समझ नहीं आयी. राव ने सोनिया से रिश्ते सुधारने के लिए दिसंबर, 1994 में नटवर सिंह की मदद ली. राव ने सिंह से कहा था कि वह सोनिया से निबट सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहते. सिंह ने लिखा है, ‘केंद्रीय कार्यसमिति के एक या दो वरिष्ठ सदस्यों ने यह छवि बनायी कि वह (सोनिया) सुधार प्रक्रिया से खुश नहीं हैं और राव उनको नजरअंदाज कर रहे हैं. एक महीने बाद 7, आरसीआर (प्रधानमंत्री निवास) और 10, जनपथ के बीच संवाद लगभग समाप्त हो गया.’

राव ने सिंह को बताया कि उन्होंने सोनिया के प्रति शिष्ट रहने के लिए बहुत कुछ किया, लेकिन सोनिया ने उन्हें कभी फोन नहीं किया. राव ने बताया कि उन्होंने सोनिया के निवास पर आरएएक्स फोन लगाने की पेशकश की, ताकि वह उनसे सीधे बात कर सकें. शुरू में सोनिया राजी थीं, बाद में इसे ठुकरा दिया. यह मेरे चेहरे पर किसी थप्पड़ की तरह था. सिंह ने लिखा कि चीजें इस कदर बिगड़ गयीं कि 1995 के सितंबर में केरल में सोनिया पर खालिस्तानी आतंकवादी समूह के हमले की आशंका की खुफिया रिपोर्ट आयी, तो राव ने उनसे सीधे बात नहीं की. सिंह को कहा कि वह सोनिया को केरल दौरा रद्द करने के लिए कहें. पर सोनिया ने ऐसा नहीं किया और राव को कमांडो भेजने पड़े.

राहुल मजबूत इच्छाशक्ति के व्यक्ति

नटवर सिंह ने राहुल गांधी को ‘मजबूत इच्छा-शक्तिवाला व्यक्ति’ बताया. कहा कि उन्हें बढ़ाया नहीं गया है. लेकिन उनमें पूर्णकालिक राजनीतिज्ञ बनने का ‘जोश-खरोश’ नहीं है. हो सकता है कि वह शानदार राजनीतिज्ञ नहीं हों, लेकिन एक इनसान के रूप में वह बहुत मजबूत हैं. और मैं नहीं समझता कि वह अपनी जिंदगी को लेकर डरेंगे.

Prabhat Khabar Digital Desk
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