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90% भारत नहीं जानता, फ्रीज के बिना मुगलों ने बर्फ का इस्तेमाल कैसे किया?

Refrigerator: मुगलों और राजा-महाराजाओं के समय, जब फ्रिज जैसी तकनीक नहीं थी, तब बर्फ की आपूर्ति कैसे होती थी. आइए जानते हैं.

Refrigerator: गर्मी का मौसम आते ही लोग ठंडक की तलाश में लग जाते हैं. चाहे वह ठंडा पानी हो, शरबत हो या ठंडी जगहों की यात्रा – हर किसी की यही कोशिश रहती है कि गर्मी से किसी तरह राहत मिले. आज के समय में तो हमारे पास फ्रिज, एयर कंडीशनर और डीप फ्रीज़र जैसे उपकरण हैं जो आसानी से ठंडक उपलब्ध करा देते हैं. लेकिन सोचिए, जब इन आधुनिक साधनों का कोई अस्तित्व नहीं था, तब मुगलों और राजा-महाराजाओं के दौर में गर्मियों में बर्फ का इंतजाम कैसे किया जाता होगा?

असल में, उस जमाने में भी शाही परिवारों के लिए बर्फ एक महत्वपूर्ण चीज़ थी. न सिर्फ खाने-पीने की चीज़ों को ठंडा रखने के लिए, बल्कि गर्मी में मेहमानों को शरबत और ठंडा पानी परोसने के लिए भी बर्फ का उपयोग रुतबे की निशानी माना जाता था. आइए जानते हैं कि उस दौर में बर्फ की व्यवस्था किस तरह की जाती थी और कौन-कौन सी रोचक तकनीकों का इस्तेमाल होता था.

हिमालय से बर्फ की आपूर्ति

मुगलकाल में बर्फ की सबसे प्रमुख आपूर्ति उत्तर भारत के बर्फीले क्षेत्रों – जैसे कश्मीर, हिमाचल और गढ़वाल – से की जाती थी. सर्दियों में इन क्षेत्रों में बर्फ इकट्ठा कर ली जाती थी और उसे विशेष तरीके से संरक्षित कर गर्मियों में शाही दरबारों तक पहुंचाया जाता था. यह काम आसान नहीं था, क्योंकि लंबे सफर में बर्फ को पिघलने से बचाना एक बड़ी चुनौती होती थी.

Mughals Use Ice Without Refrigerator
सांकेतिक फोटो

खास रास्ते और इंतजाम

इतिहास में उल्लेख मिलता है कि मुगल बादशाह हुमायूं और अकबर के समय कश्मीर से दिल्ली तक बर्फ लाने के लिए विशेष रास्ते बनाए गए थे. दिल्ली में यमुना नदी के किनारे ऐसे मार्ग थे जिनसे होकर बर्फ लाई जाती थी. इन रास्तों पर बर्फ को जल्दी पहुंचाने के लिए घोड़ों, ऊंटों और खच्चरों का सहारा लिया जाता था.

बर्फघर – बर्फ के भंडारण की तकनीक

शाही बर्फ को पिघलने से बचाने के लिए खास ‘बर्फघर’ या ‘आइस हाउस’ बनाए जाते थे. ये भूमिगत तहखाने होते थे जिनकी दीवारें मोटी और इंसुलेटेड होती थीं. बर्फ को भूसे, राख या कपड़े में लपेटकर इनमें रखा जाता था ताकि वह लंबे समय तक ठंडी और सुरक्षित बनी रहे. मुगल बादशाह जहांगीर ने अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-जहाँगीरी’ में इन बर्फघरों का ज़िक्र किया है.

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आबदार – बर्फ के संरक्षक

इन बर्फघरों की देखरेख और शाही रसोई तक बर्फ पहुंचाने का जिम्मा जिन लोगों पर होता था, उन्हें ‘आबदार’ कहा जाता था. ये कर्मचारी बर्फ की मात्रा, उसकी गुणवत्ता और उसकी समय पर आपूर्ति सुनिश्चित करते थे. यह एक सम्मानजनक पद माना जाता था.

रात में पानी जमाकर बर्फ बनाना

शहरी इलाकों में, जहां हिमालय से बर्फ लाना संभव न था, वहां एक रोचक तकनीक अपनाई जाती थी. सर्दियों की रातों में खुले मैदानों या छतों पर मिट्टी के बर्तनों में पानी रखा जाता था. उत्तर भारत की सर्द रातों में तापमान इतना गिर जाता था कि सुबह तक पानी की सतह पर बर्फ जम जाती थी. इस बर्फ को सुबह-सवेरे इकट्ठा कर लिया जाता था और बर्फघरों में संग्रहित कर लिया जाता था.

How Did Mughals Use Ice Without Refrigerator
सांकेतिक फोटो

विदेशों से बर्फ का आयात

19वीं सदी में, जब समुद्री व्यापार ने रफ्तार पकड़ी, तब कुछ अमीर राजघराने और अंग्रेज अधिकारी विदेशों से बर्फ मंगवाने लगे. अमेरिका के व्यापारी फ्रेडरिक ट्यूडर ने 1833 में भारत को बर्फ का निर्यात शुरू किया. बोस्टन के पास तालाबों से निकाली गई बर्फ को भूसे में पैक कर जहाजों द्वारा कोलकाता, मद्रास और बंबई भेजा जाता था.

90 Percent India Dont Know How Did Mughals Use Ice Without Refrigerator
सांकेतिक फोटो

शाही ठाठ-बाठ में बर्फ की भूमिका

मुगल दरबारों में बर्फ का प्रयोग केवल पेय ठंडा करने तक सीमित नहीं था. फल, दूध, मिठाई, और यहां तक कि चिकित्सा में भी इसका उपयोग किया जाता था. चोट लगने या बुखार आने पर ठंडी पट्टी रखने के लिए भी बर्फ इस्तेमाल होती थी. बाबर ने अपनी आत्मकथा में बर्फ से ठंडा किए गए पानी की प्रशंसा की है.

क्षेत्रीय व्यवस्थाएं

दक्षिण भारत में, जहां प्राकृतिक रूप से बर्फ उपलब्ध नहीं थी, वहां के शाही परिवार जैसे मैसूर और त्रावणकोर, पहाड़ी इलाकों जैसे नीलगिरि से बर्फ मंगवाते थे. वहीं, राजस्थान के राजपूत राजा मध्य भारत के पहाड़ी क्षेत्रों पर निर्भर रहते थे या रात में पानी जमाने की तकनीक अपनाते थे. कुछ राजघरानों ने बर्फ लाने के लिए खास कर्मचारी भी नियुक्त किए होते थे जिन्हें ‘बरफवाले’ कहा जाता था.

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इस तरह, उस दौर में भी इंसानी बुद्धिमत्ता और व्यवस्था ने ठंडक की चाह को पूरा करने के लिए अनेक उपाय खोज लिए थे. बर्फ सिर्फ एक चीज नहीं, बल्कि शाही जीवनशैली का हिस्सा थी – जो न सिर्फ गर्मी से राहत देती थी, बल्कि रुतबे और सौंदर्य का प्रतीक भी थी.

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Aman Kumar Pandey
Aman Kumar Pandey
अमन कुमार पाण्डेय डिजिटल पत्रकार हैं। राजनीति, समाज, धर्म पर सुनना, पढ़ना, लिखना पसंद है। क्रिकेट से बहुत लगाव है। इससे पहले राजस्थान पत्रिका के यूपी डेस्क पर बतौर ट्रेनी कंटेंट राइटर के पद अपनी सेवा दे चुके हैं। वर्तमान में प्रभात खबर के नेशनल डेस्क पर कंटेंट राइटर पद पर कार्यरत।

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