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BJP Parliamentary Board: बीजेपी में बदलाव के क्या हैं मायने, 2024 के लोकसभा चुनाव पर क्या पड़ेगा असर?

भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने गुरुवार को बयान जारी कर सवाल उठाया. लेकिन संघ और भाजपा में कोई इस मसले पर खुल कर बोलने को तैयार नहीं है. हालांकि एक नेता ने दबी जुबान बताया कि पीएम नरेंद्र मोदी को गुजरात की तरह केंद्र में भी किसी का हस्तक्षेप पसंद नहीं करते.

बीजेपी ने 15 सदस्यीय चुनाव समिति का ऐलान कर दिया है. जिसमें पार्टी के कई बड़े चेहरे नजर नहीं आ रहे हैं. जिसमें केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम सूची से गायब है, जो इस समय चर्चा का विषय बना हुआ है. ऐलान के बाद से भाजपा से लेकर विपक्ष तक में सवाल उठने लगे हैं.

सुब्रह्मण्यम स्वामी ने उठाये सवाल

भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने गुरुवार को बयान जारी कर सवाल उठाया. लेकिन संघ और भाजपा में कोई इस मसले पर खुल कर बोलने को तैयार नहीं है. हालांकि एक नेता ने दबी जुबान बताया कि पीएम नरेंद्र मोदी को गुजरात की तरह केंद्र में भी किसी का हस्तक्षेप पसंद नहीं करते. वह सरकार और पार्टी हित में खुद ही फैसले लेते हैं. संसदीय समिति के ऐलान से भी लोग इसका अंदाजा लगा रहे हैं.

Also Read: Explainer: देवेंद्र फडणवीस का कद बढ़ाकर नितिन गडकरी से किनारा! क्या है भाजपा का गेम प्लान?

संघ से अलग पीएम मोदी का सोच ?

यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय मंत्री को संघ प्रमुख का नजदीकी माना जाता है. संघ इनको ही पीएम नरेंद्र मोदी के बाद पीएम दावेदार के रूप में तैयार कर रहा था. लेकिन, दोनों ही चुनाव समिति से बाहर हैं. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी पहले थे. उनको बाहर किया गया है. जबकि यूपी में दूसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार के साथ सीएम बनने वाले योगी आदित्यनाथ की सीमित में इंट्री की उम्मीद थी. लेकिन, उनकी उम्मीद को बड़ा झटका लगा. एक नेता का कहना है कि इससे मैसेज दिया गया है कि सीएम तक ठीक है. पीएम पद की तरफ अभी मत देखो. इसके साथ ही एक जानकार कहते हैं कि इस फैसले के बाद संघ के सरकार में घटते कद को लेकर सवाल उठने लगे हैं. क्योंकि, संघ के नजदीक कहे जाने एमपी के सीएम शिवराज सिंह भी बाहर हो गए हैं. हालांकि, महाराष्ट्र डिप्टी सीएम की जिम्मेदारी संभालने वाले देवेंद्र फडणवीस का कद पार्टी में बढ़ा है.

यूपी में सियासी तूफान किया शांत, लेकिन दिया ईनाम

यूपी में संगठन महामंत्री सुनील बंसल और सीएम योगी आदित्यनाथ के टकराव की चर्चाएं काफी समय से थीं. वर्ष 2014 से 2022 तक यूपी में सुनील बंसल मुख्य भूमिका में थे. उनको गृह मंत्री अमित शाह का करीबी कहा जाता है. उनको बीजेपी का एक धड़ा शिल्पकार के तौर पर मानता था, तो वहीं पार्टी का दूसरा धड़ा इस बात को खारिज करता है. सियासी दबदबे का क्रेडिट लेने की इस खामोश जंग को अलग-अलग गुटों में टकराव के बीज पर पार्टी हाईकमान ने बड़ी होशियारी से पर्दा डाल दिया. उनको यूपी के प्रदेश महामंत्री (संगठन) से हटाया जरूर, लेकिन कद बढ़ाकर सुनील बंसल को 10 जुलाई को पार्टी का राष्‍ट्रीय महासचिव नियुक्‍त किया गया. अब सुनील बंसल के पास पश्चिम बंगाल, ओडिशा और तेलंगाना के प्रदेश प्रभारी के रूप में भी जिम्‍मेदारी रहेगी. यूपी में सुनील बंसल की जगह यूपी के महामंत्री (संगठन) की जिम्मेदारी धर्मपाल सिंह को दी गई है.

तो अब कोई नहीं चुनौती

यूपी के मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ के सामने पहले भी कोई चुनौती नहीं थी, लेकिन पार्टी की ओर से सुनील बंसल के तौर पर एक ऐसे शख्स से तमाम मोड़ पर अंदरूनी टकराव होने की चर्चाएं थीं. इसकी खबर यूपी से दिल्ली तक अक्सर पहुंचती थी. प्रदेश से लेकर मंडल तक संगठन की मजबूती और वॉर्ड स्तर तक चुनावी रणनीतियों में माहिर कहलाने वाले सुनील बंसल की कार्यशैली गृहमंत्री को बेहद पसंद है. इसीलिए वो यूपी में योगी आदित्यनाथ से तनातनी के बीच भी इतने सालों तक टिके रहे. लेकिन, सीएम योगी को शांत करने को हटाया जरूर, लेकिन कद बढ़ाकर. यह टकराव फिलहाल 2024 तक टाल दिया गया है.

2014 लोकसभा में बनाया था रिकार्ड

सुनील बंसल को 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी का को-इंचार्ज बनाया गया था. इस चुनाव में यूपी में बीजेपी गठबंधन ने 80 में से 73 सीटें जीतकर ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी. 2019 लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन के बाद भी रिकार्ड 64 सीट पर जीत दर्ज की थी.

बीजेपी में सबसे महत्वपूर्ण है संगठन महामंत्री

भाजपा में संगठन महामंत्री का पद काफी महत्वपूर्ण है. संघ के एक नेता ने बताया कि इस पद पर नियुक्ति आरएसएस की राय से की जाती है. पूर्णकालिक प्रचारकों को संगठन महामंत्री की जिम्मेदारी देने का प्रचलन बताया जाता है. भाजपा के लोग यह भी मानते हैं कि संगठन महामंत्री ही केंद्रीय नेतृत्व की आंख-नाक-कान होता है, इसलिए उनका हर जगह प्रभाव रहता है. इस पद पर बरेली के पूर्व प्रचारक रामलाल भी रहे हैं.

सियासी नब्ज के जानकर सुनील बंसल

बीजेपी से जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि सीएम योगी से भरोसा मिलने के बाद भी काम पूरा होने में संशय था, लेकिन सुनील बंसल की ओर से आश्वासन का मतलब पत्थर की लकीर. इन्हीं बातों को लेकर कई बार टकराब होता था. वर्ष 2014 से 2017 यूपी विधानसभा और 2019 लोकसभा के तीन चुनावों तक हर मुलाकात का वक्त और शर्तों के हालात सुनील बंसल तय करते थे, लेकिन वर्ष 2022 के चुनावी नतीजों के बाद सब कुछ इतनी तेजी से बदल गया. सीएम योगी आदित्यनाथ अपनी दूसरी पारी में अचानक इतने मजबूत हो गए कि सुनील बंसल जैसे संगठन के माहिर खिलाड़ी को यूपी के सियासी खेल से सुरक्षित बाहर हटा लिया गया. हालांकि, 2017 से 2022 तक सरकारी मशीनरी में सुनील बंसल के घर से सरकार चलने की बात कही जाती थी.

बरेली से मुहम्मद साजिद

Prabhat Khabar Digital Desk
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