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CAG: नियुक्ति प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाने की है जरूरत

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की पहले भी काफी चर्चा होती रही है. लेकिन आजकल दिल्ली विधानसभा में पूर्ववर्ती सरकार द्वारा सीएजी की रिपोर्ट को पेश न किये जाने और नयी सरकार के आते ही उस रिपोर्ट को पेश किये जाने के बाद कैग रिपोर्ट की चर्चा जोरों पर है. रिपोर्ट के आधार पर पूर्ववर्ती 'आप' सरकार पर कई तरह के आरोप भी लग रहे हैं.

CAG: सीएजी की उपयोगिता, कार्यप्रणाली, विश्वसनीयता, उसकी सीमा और शक्ति सहित ऑडिट के तरीके सहित विभिन्न मुद्दों पर कैग के पूर्व महानिदेशक पी शेष कुमार से प्रभात खबर के राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख अंजनी कुमार सिंह की बातचीत के मुख्य अंश: 

सवाल : सीएजी की भूमिका को लेकर अक्सर विवाद होता रहता है. क्या आपको लगता है कि जनता या मीडिया सीएजी के अधिकार क्षेत्र को सही ढंग से नहीं समझ पाते हैं या फिर इसे गलत तरीके से पेश किया जाता है?


नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक जिसे सीएजी कहते हैं इसके विषय में आम जनता में कम जानकारी  है. मीडिया और जनता दोनों ही सीएजी  के अधिकार क्षेत्र को सही ढंग से नहीं समझ पाते हैं. इसका एक प्रमुख कारण यह है कि सीएजी अपने प्रचार तंत्र से बहुत दूर है. कैग का मानना है कि उसकी रिपोर्ट के आधार पर ही उसे लोग जाने. एक तो सीएजी आम तौर पर प्रचार से कतराता है और दूसरा उसके पास समर्पित पेशेवर मीडिया विंग नहीं है.
मीडिया द्वारा सनसनीखेज निष्कर्षों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना या चुनिंदा तरीके से हाईलाइट करना भी संभव है. इसे आम तौर पर जनता द्वारा उठाया जाता है. क्योंकि सीएजी की रिपोर्ट जब तक संसद या विधानसभा के पटल पर न रख दिया जाये, तब तक वह गोपनीय रहता है.

रिपोर्ट टेबल होने के बाद जब मीडिया, आम जनता या पॉलिटिकल पार्टी इस पर सवाल-जवाब करते हैं, तब वह लोगों के बीच आता है.12 साल पुरानी 2 जी स्पेक्ट्रम हो या कोल स्पेक्ट्रम या चारा घोटाला उन रिपोर्टां की आज भी चर्चा होती रहती है. अभी की रिपोर्ट की तुलना भी पिछले रिपोर्ट के आधार पर की जाती है. इसलिये काफी प्रश्न आम आदमी, मीडिया, बुद्धिजीवियों के बीच सुनने-समझने को मिलती है. आम जनता भी सीएजी की रिपोर्ट को पढ़े और उस पर विचार करें, तो यह देश हित में होगा. इस पर मैंने हाल ही में एक पुस्तक लिखी है, जिसका नाम है, “सीएजी एन्स्योरिंग अकाउंटेबिलिटी एमिड्स कॉन्ट्रोवर्सी: इन इनसाइड व्यू”. यह किताब सभी को पढ़ना चाहिये. आखिर सीएजी है क्या? इसकी सीमा और शक्ति क्या है? इसके काम करने के तरीके सहित इस पर कितना दबाव रहता है जैसे मुद्दों पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है.


सवाल : सीएजी की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठते रहे हैं. सीएजी की विश्वसनीयता को और अधिक कैसे बढ़ाया जा सकता है?


सबसे पहले सीएजी में होने वाली नियुक्ति प्रक्रिया को समझना होगा. इसके लिए कोई पॉलिसी या कोई कमिटी सिस्टम नहीं है. एक मुद्दा जिस पर अभी भी ध्यान देने की जरूरत है, वह है “चुनाव आयुक्त और सीबीआई निदेशक की तर्ज पर सीएजी की नियुक्ति के लिए समिति” की मांग. शायद, जिस बात पर बहस या आंदोलन किया जाना चाहिए, वह है सीवीसी और मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) के समान बहु-सदस्यीय सीएजी की ओर बदलाव, साथ ही नियुक्ति के लिए एक संवैधानिक प्रावधान”. बदलावों के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी. इससे तीन उद्देश्य पूरे होंगे: चयन में पारदर्शिता, इंडियन ऑडिट एंड एकाउंट्स सर्विस (आइएएएस) को तीन सदस्य पदों में से कम से कम एक के लिए विचार किए जाने का अवसर और सीएजी में लगभग शून्य जवाबदेही के साथ एक व्यक्ति के वर्चस्व की प्रणाली को समाप्त करना. वर्तमान में कैबिनेट सेक्रेटरी अधिकारियों का एक पैनल बनाती है और उस पैनल में से प्रधानमंत्री किसी एक को नियुक्त करते हैं.

इसके साथ ही एक बात और ध्यान देने की है कि नियुक्ति के बाद सीएजी महोदय को इतनी पॉवर और छूट दी गयी है, कि उस पर फिर किसी का दबाव काम नहीं कर सकता है. इन्हें सुप्रीम कोर्ट के जज का हैसियत हासिल है. इन्हें नौकरी से कोई हटा नहीं सकता है. इनको हटाने के लिए भी पार्लियामेंट में महाभियोग लाना पड़ता है. इनके आफिस के खर्च को लेकर पार्लियामेंट में वोटिंग भी नहीं हो सकती है. कार्यालय के खर्च का कोई ऑडिट नहीं होगा. इन्हें कौन सा सब्जेक्ट का चुनाव करना है, उसमें कितनी गहराई तक जाना है, कितने दिनों में रिपोर्ट देनी है, कब बनानी है, इसके लिए भी सीएजी को पूरा पावर दिया गया है. एक बार नियुक्त होने के बाद उनके ऊपर किसी तरह का दबाव आने की आशंका कम रहती है. लेकिन आप पूछेंगे की प्रैक्टिकली क्या हो रहा है? तो प्रैक्टिकली इनके पास पूरे पॉवर है, लेकिन अब उस व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह उस पावर को कैसे यूज कर रहे हैं.

सवाल : आप सीएजी और न्यायपालिका के बीच के जटिल संबंधों पर चर्चा करते हैं. आपके मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निर्णयों ने सीएजी के अधिकार क्षेत्र और प्रभावशीलता को कम किया है. कैसे?


 वर्ष 2012 के माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने सीएजी के ऑडिट के दायरे का विस्तार करते हुए इसे ‘मुनीम’ या सिर्फ एक अकाउंटेंट की तरह मानने के बजाय प्रदर्शन ऑडिटिंग को शामिल किया. उसी फोरम ने अगस्त 2024 में यह भी निर्णय लिया कि सीएजी की रिपोर्ट केवल उनका दृष्टिकोण या विचार हैं और जब तक पीएसी संसद को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत नहीं करती, तब तक वे अंतिम नहीं होती हैं. इसका असर सीएजी रिपोर्ट की प्रभावशीलता पर पड़ा है.

अब सीएजी की रिपोर्ट की वैल्यू तभी है, जब पीएसी संसद को अपनी सिफारिशें दें. इसमें यह भी नहीं है कि इतने समय के अंदर इसे टेबल करना जरूरी है. सरकार चाहे तो वर्षों तक रिपोर्ट को टेबल नहीं कर सकती है. अभी हाल ही में सीएजी महोदय ने  2024 में ही दिल्ली की रिपोर्ट पर हस्ताक्षर की थी, लेकिन उसकी रिपोर्ट फरवरी 2025 में विधानसभा में आयी है. इससे कई सारी समस्याएं पैदा होती है. सीएजी किसी समस्या को सुधार करने के लिए अपनी रिपोर्ट में दो साल पहले सिफारिश की है और दो साल तक उस रिपोर्ट को टेबल ही नहीं किया गया, तो इन दो सालों में वह समस्याएं विकराल हो जायेगी या फिर दूसरी समस्या में तब्दील हो गयी होगी.

मेरा मानना है कि सीएजी के काम में और अधिक सुधार के लिए उसे और शक्ति देना जरूरी है. सीएजी की रिपोर्ट को पेश करने के लिए सरकार को एक अनिवार्य समय दे दिया जाये, चाहे वह समय दो महीना हो या छह महीना. लेकिन सरकार की यह रिस्पांसबिलिटी होगी कि वह नियत समय के भीतर वह रिपोर्ट को टेबल करे. यदि सरकार नियत समय में रिपोर्ट को टेबल नहीं करती है, तो सीएजी साहब को यह छूट मिलनी चाहिए की उस रिपोर्ट को सार्वजनिक कर दें. जब तक सीएजी को इस तरह की शक्ति नहीं मिलेगी, तब तक सीएजी पर भी लोग सवाल उठाते रहेंगे और उसे कटघरे में खड़ा करते रहेंगे.

सवाल : सीएजी तो सभी का ऑडिट करती है, लेकिन सीएजी के ऑडिट का क्या प्रावधान है?


इसका ऑडिट दो तरह से होंगे. पहला सीएजी का ऑफिस खर्च कितना होता है. खर्च कहां, कैसे और किन जगहों पर किये गये हैं. खर्च का कोई इंडिपेंडेंट असेसमेंट ऑडिट रिपोर्ट  है या नहीं. दूसरी बात, सीएजी अपनी ऑडिट को कितनी गंभीरता से करते  हैं. कितने स्टैंडर्ड और  गाइडलाइन्स को फॉलो करते हुए करते हैं. उनकी जो फाइंडिंग है, वह प्रॉपर गाइडलाइंस और एविडेंस के मुताबिक है या नहीं.
पहला में इनका अंदरूनी सिस्टम है जिसमें डिप्टी सीएजी एक्सपेंडीचर प्रपोजल को देखते हैं. इसके बाद एक सालाना रिपोर्ट बनाकर उसे प्रकाशित कर दिया जाता है.सीएजी साहेब के पूरे डिपार्टमेंट पर सालाना पांच हजार करोड़ रुपये खर्च होता है. 150 से ज्यादा फील्ड ऑफिसर, 42 हजार कर्मचारी, 500 आइएएएस अधिकारी है. इसकी पूरी ऑडिट रिपोर्ट बनती नहीं है, लेकिन इसका ब्यौरा सालाना रिपोर्ट में रहता है जो सेल्फ डिक्लेरेशन रहता है.


दूसरा, ऑडिटिंग प्रोसिजर की ऑडिटिंग करना. इसकी जांच दो तरह से हो सकती है. एक इंटरनेशनल पीयर रिव्यू के तहत. सीएजी का काउंटर पार्ट ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड या दूसरे देशों में बैठा है उसका एक टीम आयेगा हर दो साल तीन साल पर रिपोर्ट का चयन करेगा और वह दो साल की रिपोर्ट का चयन करके देखें कि जिस सब्जेक्ट का चुनाव किया गया है, वह कितना महत्वपूर्ण है. उसमें गाइडलाइन्स को फॉलो किया है या नहीं. सिस्टम फॉलो किया है? एविडेंस से रिपोर्ट मेल खाता है या नहीं. इस पर अपनी टिप्पणी देंगे और सुधार का रिकमंडेशन भी देते हैं. ये होता है इंटरनेशनल पीयर रिव्यू.


इसके साथ ही एक इंटरनल पीयर रिव्यू भी होता है. जिसमें यदि कोई तमिलनाडु का है, तो उसे बिहार भेज दिया जाये और जो बिहार का है उसे तमिलनाडु भेज दिया जाये और दोनों टीम अलग-अलग टीम की ऑडिट देखेंगे. इस तरह की व्यवस्था रिव्यू की है. लेकिन इंटरनेशनल पीयर रिव्यू  2012 के बाद अब तक हुई नहीं है. और जहां तक इंटरनल पीयर रिव्यू की बात है, तो आपके ऑडिट के विषय में मैंने जो रिव्यू दी है या रिकमंडेशन की है और मेरे ऑडिट के विषय में आपने जो रिकमंडेशन किया है, उसकी चर्चा नहीं होती नहीं है. ना ही सीएजी की वेबसाइट या इंटरनल रिपोर्ट में ही इसकी चर्चा होती है. अलग-अलग ऑडिट के प्रोसीजरर लैप्स क्या रहे हैं, किस टीम की ऑडिट में सारे नियमों का पालन किया गया है, यह सब आनी चाहिए. इससे आगे ऑडिट में सुधार और कोई कमी है, तो उसे दूर किया जा सकता है. मेरे समझ से सीएजी साहब को इस पर विचार करना चाहिए.

सवाल : दूसरे देशों में सीएजी के ऑडिट करने की क्या प्रक्रिया है?


कई देशों के शीर्ष लेखा परीक्षकों के ऑडिट के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तंत्र मौजूद है. “विश्व स्तर पर, सर्वोच्च लेखा परीक्षा संस्थानों के लिए निगरानी तंत्र अलग-अलग हैं. यूनाइटेड किंगडम में, राष्ट्रीय लेखा परीक्षा कार्यालय (एनएओ) का ऑडिट एक स्वतंत्र वैधानिक निकाय द्वारा किया जाता है, जिसकी देखरेख लोक लेखा समिति (पीएसी) करती है, जिसमें संसद सदस्य भी शामिल होते हैं.”  संयुक्त राज्य अमेरिका में सरकारी जवाबदेही कार्यालय (जीएओ) नियंत्रक महालेखा परीक्षक की निगरानी में एक निजी लेखा फर्म द्वारा किए गए बाहरी ऑडिट से गुजरता है. जबकि पीएसी जैसी संसदीय समितियां सीएजी द्वारा तैयार ऑडिट रिपोर्ट की जांच करती हैं, वे सीएजी कार्यालय के वित्तीय संचालन की जांच नहीं करती हैं, क्योंकि सीएजी ब्रिटेन के विपरीत संसद की अधिकारी नहीं है.” इसलिए कामकाज को पारदर्शी बनाने के लिए संवैधानिक परिवर्तनों के साथ सीएजी में सुधार की भी जरूरत है.

सवाल : 2G स्पेक्ट्रम और कोयला ब्लॉक आवंटन जैसे हाई-प्रोफाइल ऑडिट ने सीएजी को राजनीतिक सुर्खियों में ला दिया. राजनीतिक रूप से संवेदनशील ऑडिट को संभालते हुए संस्था अपनी स्वतंत्रता कैसे बनाए रखती है?


सीएजी हमेशा से ही ऑडिट के लिए संवेदनशील विषयों को संभालता रहा है. मैंने अपनी पुस्तक में 8 से 9 उदाहरणों का उल्लेख किया है. समस्या यह है कि ‘क्या उन्हें छिटपुट रूप से या गलती से या जानबूझकर चुना जाता है’? क्या सीएजी जल्द ही ऑडिट के लिए कार्यक्रम या आयोजन या प्रमुख नीतियों के कार्यान्वयन को लेने से कतराता है या बिल्कुल भी नहीं लेता है? सीएजी को संविधान के तहत ऑडिट के दायरे, सीमा और तरीके को तय करने की पूरी स्वतंत्रता है, जिसे सीएजी के DPC अधिनियम के साथ पढ़ा जाता है. यह पूरी तरह से सीएजी और उसके वरिष्ठ प्रबंधन पर निर्भर करता है.    

सवाल : आपकी पुस्तक कार्यपालिका, संसद और सीएजी के बीच तनाव की आलोचना करती है. संस्थागत जांच और संतुलन बनाए रखते हुए सीएजी के अधिकार को मजबूत करने के लिए आप क्या सुधार सुझाते हैं?


 कुछ हद तक तनाव का स्वागत है. पहला सुधार अगस्त 2024 के अपने निर्णय की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट से संपर्क करना होगा, जिसने ऑडिट की प्रभावशीलता को कम कर दिया था. दूसरा, सीएजी के लिए अपनी आंतरिक जोखिम मूल्यांकन प्रक्रियाओं को मजबूत करना होगा और सरकार की बड़ी केंद्र प्रायोजित योजनाओं का ऑडिट करना होगा, जिनमें से हर स्तर पर जैसे सालाना 10,000 करोड़ रुपये का परिव्यय खर्च किया जा रहा है.सीएजी की केवल 42 फीसदी रिपोर्ट पर पीएसी  द्वारा चर्चा की जाती है या रिपोर्ट की जाती है, जिसे बढ़ाने की आवश्यकता है. रिपोर्ट की संख्या को देखते हुए सीएजी या तो अपनी रिपोर्ट कम करें या पीएसी अपनी रिपोर्ट को तेज करने के लिए अभिनव तरीके विकसित करे. ऑडिट की गई संस्थाओं या विभागों की पूरी रिपोर्ट और वहां से मिले जवाब को जल्द से जल्द प्रस्तुत करना चाहिए. इससे उस ऑडिट की प्रभावशीलता बनी रहेगी और सीएजी द्वारा उठाये गये आपत्ति या सुझाये गये सुधारात्मक काम को करने में मदद मिलेगी.

सवाल : आप इस बात पर जोर देते हैं कि जवाबदेही ऑडिट रिपोर्ट के साथ समाप्त नहीं होती है बल्कि वहीं से शुरू होती है. यह सुनिश्चित करने के लिए क्या तंत्र होने चाहिए कि ऑडिट निष्कर्षों से सार्थक नीतिगत सुधार हों?


सीएजी के रिपोर्टों के कारण नीतिगत सुधार हुए हैं. कोयला ब्लॉकों की ई-नीलामी, 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी और रक्षा खरीद में सुधार इसके कुछ उदाहरण हैं. जवाबदेही सुनिश्चित करने का मौजूदा तंत्र पीएसी के माध्यम से है, जिसके पास एक ही वर्ष में सीएजी की लगभग 50-70 रिपोर्ट पर विचार करने का समय नहीं है. कार्यकारी विभागों या लेखापरीक्षित संस्थाओं को अच्छे और त्वरित उपचारात्मक कार्रवाई या विलंबित प्रतिक्रियाओं के लिए प्रोत्साहन या हतोत्साहन की व्यवस्था होनी चाहिए.

सवाल : आपकी पुस्तक में चारा घोटाला के बाद सीएजी में सुधार की बात कही गयी है. किस तरह के सुधार हुए?

वाउचर लेवल कम्प्यूटरीकरण (वीएलसी) प्रणाली, जिसे 1998 और 2002 के बीच विकसित किया गया का मकसद भारत के सीएजी  द्वारा वाउचर स्तर पर राज्य सरकारों के लेखांकन के संकलन को कंप्यूटरीकृत करने की एक महत्वपूर्ण पहल थी. इसका उद्देश्य 1980 और 1990 के दशक के दौरान बिहार के कोषागारों में होने वाले दुरुपयोग या धोखाधड़ी से निकासी के खिलाफ एक निवारक के रूप में कार्य करना था. इस प्रणाली को मासिक सिविल खातों, मासिक विनियोग खातों और वार्षिक वित्त और विनियोग खातों जैसी प्रमुख रिपोर्ट की तैयारी की सुविधा के लिए डिज़ाइन किया गया था, जबकि राज्य सरकारों को एक मूल्यवान एमआईएस उपकरण प्रदान किया गया था और एजी को विस्तृत जांच के लिए वाउचर लेने में सक्षम बनाया गया था. हालांकि उस समय इसे एक दूरदर्शी पहल के रूप में सराहा गया था (जब देश बिहार के चारा घोटाले से जूझ रहा था). लेकिन  इस प्रणाली ने प्रासंगिक बने रहने के लिए संघर्ष किया है, खासकर सरकार द्वारा एकीकृत वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (आईएफएमएस)78 और इसके वेरिएंट जैसे पीएफएमएस की शुरुआत के बाद. वीएलसी प्रणाली, सीएजी द्वारा 1999 के आसपास शुरू की गई थी, जिसका पहला मासिक सिविल लेखा अप्रैल 2001 में तैयार किया गया था, जिसे कोषागारों और अन्य स्रोतों से प्राप्त वाउचरों से खातों को संकलित करने के लिए डिजाइन किया गया था, जिसका उद्देश्य वाउचर प्रसंस्करण की दक्षता और प्रभावशीलता को बढ़ाना था.

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