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Caste Census : भारत में पहले भी जुटाये गये हैं जाति के आंकड़े

अगली राष्ट्रीय जनगणना में अब जाति की भी गणना की जायेगी. हालांकि, यह पहली बार नहीं होगा, जब भारत में रहनेवाली जातियों की गिनती की जायेगी. पहले भी कई बार जाति से संबंधित आंकड़े जुटाये गये हैं....

Caste Census : भारत में रहने वाली कुल जातियों या समुदायों का एकमात्र विश्वसनीय रिकॉर्ड एंथ्रोपोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पीपुल ऑफ इंडिया वॉल्यूम में समाहित है, जिसे सात साल की लंबी परियोजना (2 अक्तूबर, 1985 – 31 मार्च, 1992) के बाद प्रकाशित किया गया था. इसमें 4,635 ‘समुदायों’ और उनकी सैकड़ों उपजातियों और उप-समूहों को सूचीबद्ध किया गया था. इस सूची में एससी, एसटी और ओबीसी के रूप में वर्गीकृत समुदाय शामिल थे. इसके अलावा इसमें 2,203 जातियां और समुदाय (ज्यादातर सामान्य श्रेणी) की गणना की गयी थी.

कब-कब जुटे जाति के आंकड़े

1931

भारत की 1931 की जनगणना, जो देश में जातियों की गणना करने वाली अंतिम जनगणना थी, ने देश भर में 4,147 से अधिक विभिन्न जातियों और उपजातियों की गणना की थी, जिसमें 300 से अधिक ऐसे जाति समूह भी शामिल थे, जिनका धर्म ईसाई था, जबकि 500 इस्लाम का पालन करते थे.

1953

काका कालेलकर समिति ने देशभर की 2399 पिछड़ी जातियों या समुदायों की सूची बनायी थी, जिनमें 837 जातियों को अत्यंत पिछड़ा वर्ग के तौर पर वर्गीकृत किया गया था.

1979

मण्डल आयोग बना और आबादी में जातियों का प्रतिशत किया निर्धारित गया. इस आंकड़े को 1931 की जनगणना के आंकड़ों से अनुमान के आधार पर निकाला गया. इसमें अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी 52 फीसदी तय की गयी, जिसमें 43.7 फीसदी हिंदू ओबीसी, जबकि 8.40 फीसदी गैर हिंदू ओबीसी थे.

2011

सामाजिक-आर्थिक एवं जाति जनगणना -2011 1931 की जनगणना के बाद पहली जाति-आधारित जनगणना थी. इसे 29 जून 2011 को पश्चिम त्रिपुरा जिले के हाजेमारा ब्लॉक के संखोला गांव से शुरू किया गया था. यह भारत की पहली पेपरलेस कागज रहित जनगणना थी, जिसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से किया गया. ग्रामीण विकास मंत्रालय ने अपने सभी कार्यक्रमों जैसे कि मनरेगा, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना में इसके डेटा का उपयोग करने का फैसला लिया है. भारत के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा आयोजित सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना 2011 में 46,73,034 जातियों को चिह्नित किया गया, जिसमें जातियां उपजातियां, सरनेम तक को जाति के तौर पर गिना गया. लेकिन इस जातीय जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक नहीं किये गये.

विभिन्न सूचियों में वर्गीकृत समुदायों की संख्या

3,651 से अधिक समुदाय ओबीसी के रूप में वर्गीकृत हैं
1,170 समुदाय एससी के रूप में वर्गीकृत हैं.
850 समुदाय एसटी के रूप में वर्गीकृत हैं.
नोट : इनमें नामों के दोहराव भी शामिल हैं, क्योंकि कई समूह कई राज्यों और क्षेत्रों में पाये जाते हैं.

राज्य, जो करा चुके हैं जाति सर्वेक्षण

बिहार : बिहार विधानमंडल ने 18 फरवरी 2019 को राज्य में जाति आधारित जनगणना (सर्वे) कराने का प्रस्ताव पारित किया था. महागठबंधन सरकार के समय राज्यव्यापी जाति सर्वेक्षण करवाया गया और 2 अक्टूबर, 2023 को इसके निष्कर्ष जारी किये गये.
तेलंगाना : वर्ष 2024 में तेलंगाना की राज्य सरकार ने सामाजिक, शैक्षणिक, रोजगार, आर्थिक जाति सर्वेक्षण कराया, जो फरवरी 2025 में संपन्न हुआ.
कर्नाटक : वर्ष 2015 में कर्नाटक में जाति सर्वेक्षण शुरू किया गया था, लेकिन इसकी रिपोर्ट इस साल 29 फरवरी को सौंपी गयी और बीते 11 अप्रैल को राज्य की कैबिनेट के सामने पेश की गयी.

बिहार में 1971 में भी हुई थी जाति की गणना

बिहार एक ऐसा राज्य है, जहां जाति चुनावी नतीजों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. बिहार राज्य सरकार ने अलग-अलग जातियों की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति का पता लगाने के लिए 1971 में मुंगेरीलाल कमीशन का गठन किया था. इस कमीशन ने फरवरी, 1976 में अपनी रिपोर्ट बिहार को सरकार को सौंपी. इस रिपोर्ट में सामाजिक, शैक्षणिक और सरकारी नौकरी, व्यापार में पिछड़ेपन के आधार पर 128 जातियों की सूची थी. इनमें 34 जातियों को बीसी (पिछड़ा वर्ग) एवं 94 को एमबीसी (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) में रखा गया. बीसी और एमबीसी सामाजिक और शैक्षणिक आधार पर पिछड़ी जातियों के बीच का विभाजन है.

यह भी पढ़ें : Caste Census : जनगणना में क्यों जुड़ा जाति का सवाल और क्या होगी चुनौतियां

Preeti Singh Parihar
Preeti Singh Parihar
Senior Copywriter, 15 years experience in journalism. Have a good experience in Hindi Literature, Education, Travel & Lifestyle...

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