Caste Census : भारत में जल्द शुरू होने जा रही दशकीय जनगणना में अब एक सवाल कास्ट यानी जाति से भी जुड़ा होगा. अंग्रेजी शब्द ‘कास्ट’ की उत्पत्ति स्पेनिश और पुर्तगाली शब्द ‘कास्टा’ से हुई है, जिसका अर्थ है – जाति, वंश या नस्ल. इस शब्द का उपयोग पुर्तगालियों ने भारत में जिन वंशानुगत सामाजिक समूहों का सामना किया, उन्हें वर्णित करने के लिए किया था, जिन्हें वे ‘जाति’ कहते थे. ऐसा माना जाता है कि ‘कास्टा’ शब्द लैटिन शब्द ‘कैस्टस’ बना है, जिसका अर्थ होता है -पवित्र या शुद्ध. भारतीय समाज में जाति को व्यक्ति की पहचान से जोड़कर देखे जाने की सदियों पुरानी परंपरा चली आ रही है. हिंदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु ने अपने उपन्यास मैला आंचल में लिखा है- ‘यहां लोग नाम से पहले जाति पूछते हैं.’ अब देशभर में होने वाली जनगणना की प्रश्नावली में भी जाति जुड़ा सवाल शामिल होगा.
जातियों को सूचीबद्ध करना होगा चुनौती
वर्ष 2021 में भारत में भारत की 16वीं एवं आजाद भारत की 8वीं जनगणना होनी थी. लेकिन, कोविड-19 महामारी के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था. इसमें जाति आधारित जानकारी को शामिल किया जाये या नहीं, इस अड़चन के कारण महामारी समाप्त होने के बाद भी यह शुरू नहीं हो सकी. जनगणना कब होगी, अभी औपचारिक तौर पर इसकी समयसीमा नहीं निर्धारित की गयी है, लेकिन माना जा रहा है कि 2026 के अंत तक इसे पूरा कर लिया जायेगा. जातीय जनगणना में पहला कदम उन जातियों और समुदायों को सूचीबद्ध करना है, जिनकी गणना की जानी है. यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा. जातियों और समुदायों की ठोस सूची के अभाव में, 2011 की सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना में 46 लाख से अधिक विभिन्न ‘जातियां’ दिखायी गयीं. फिलहाल संवैधानिक सूचियों में शामिल जातियों के अलावा कोई व्यापक संग्रह नहीं है.
क्यों हो रही थी जाति जनगणना की मांग
जनगणना में पहले से ही धर्म, भाषा और सामाजिक-आर्थिक स्थिति से लेकर दलितों और आदिवासियों तक के आंकड़ों को शामिल किया जाता है. लेकिन, अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल जातियों की गणना नहीं की जाती. इसलिए लंबे समय से यह मांग की जाती रही है, ताकि ओबीसी की गणना से सरकारी कार्यक्रमों और प्रयासों में सभी की भागीदारी बेहतर तरीके से सुनिश्चित की जा सके. जाति जनगणना से यह पता लगाया जा सकेगा कि कौन सी जातियां शिक्षा, रोजगार, और स्वास्थ्य सेवाओं में सबसे ज्यादा वंचित हैं और इससे कल्याणकारी योजनाओं को और प्रभावी बनाया जा सकेगा.
तैयार हो रही है जातियों की सूची
इस बार सरकार1931 में गिनी गयी करीब 4 हजार जातियों/उपजातियों को आधार बनाकर पहले से एक सूची तैयार कर रही है. अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति/ अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग के सहयोग से यह जाति सूची तैयार की जायेगी, जिसे जनगणना कर्मी लेकर घर-घर जायेंगे और सूची में दर्ज जातियों में से ही जाति भरेंगे.
जातियों की गणना के संभावित नुकसान
विशेषज्ञों का मानना है कि यह सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर कई चुनौतियां पैदा कर सकती है. समाज में पहले से मौजूद जातिगत विभाजन को बढ़ा सकती है और राजनीतिक दल और क्षेत्रीय पार्टियां इसका इस्तेमाल अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए कर सकते हैं. जातिगत तनाव व हिंसा को बढ़ावा मिल सकता है.
जानें क्या कहते हैं विशेषज्ञ
अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान के पूर्व प्रोफेसर डॉ राम बाबू भगत कहते हैं- जाति जनगणना में एक बड़ी चुनौती होगी, जातियों की सूची कैसे तैयार की जाये. हालांकि, यह बहुत कठिन नहीं है, क्योंकि सेंसस ऑफ इंडिया यह पहले भी करता रहा है, ब्रिटिश राज में भी किया है. थोड़ा चुनौतीपूर्ण इसलिए है क्योंकि कभी कभी सरनेम एक जैसे होते हैं, लेकिन जातियां अलग-अलग होती हैं. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की सूची तो बनी हुई है. अनुसूचित जाति में तकरीबन 1200 जातियां शामिल हैं. अनुसूचित जनजाति में लगभग 600 जातियां है. यह डेटा पहले से तैयार है. अब नॉन एससी एसटी कास्ट की सूची तैयार करनी होगी. अब इसमें भी दो विकल्प हैं कि या तो सूची बनाकर जनगणना की जायेगी या फिर जनगणना में जाति का प्रश्न शामिल कर बाद में वर्गीकरण किया जायेगा. डॉ राम बाबू आगे बताते हैं कि जनगणना की अपनी एक परंपरा है और उसके पास एक विशेषज्ञता है इस काम की, वो एक उपयुक्त तैयारी के साथ जनगणना शुरू करेंगे. पहले से मौजूद डेटा के आधार पर ही काम किया जायेगा. बिहार जैसे राज्य में जहां पहले से जाति सर्वेक्षण हो चुका है, उसके उदाहरण को देख सकते हैं. जनगणना की जब लिस्ट जारी कर दी जायेगी, तो याचिका आयेंगी कि ये हमारी जाति नहीं है आप इसे इसमें लिखें. ऐसा ब्रिटिश काल में भी हुआ था. यह सब सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन सरकार की ओर से एक अच्छा फैसला लिया गया है और इसका स्वागत किया जाना चाहिए. इससे सामाजिक न्याय की नींव मजबूत होगी.
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