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चंद्रयान 3 के रॉकेट LVM 3 m4 क्रायोनिक का हिस्सा 5 महीने बाद लौटा वापस, जानें कहां गिरा

इसरो ने इंटर-एजेसी स्पेस डेबरी कॉर्डिनेशन कमेटी (आईएडीसी) को बताया कि यह बात पहले से तय थी कि पृथ्वी की निचली कक्षा से किसी भी चीज को वापस लौटने में करीब 124 दिन लगते हैं. धरती पर लौटते समय रॉकेट के ऊपरी हिस्से से किसी प्रकार के नुकसान से बचाने के लिए अंतरिक्ष में ही इसका पैसिवेशन कर दिया गया था.

नई दिल्ली : चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान को इस साल के जुलाई महीने में पृथ्वी से करीब 36,000 किलोमीटर की दूरी पर भेजने वाला रॉकेट एलवीएम 3 एम4 क्रायोनिक करीब पांच महीने बाद वापस लौट आया है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, बुधवार की रात करीब 2.30 बजे के आसपास इस रॉकेट का एक हिस्सा अनियंत्रित होकर अमेरिका के पास प्रशांत महासागर में गिर गया. इसरो ने कहा कि इस पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता था. प्रशांत महासागर में गिरने वाला रॉकेट एलवीएम-3 एम4 क्रायोजेनिक का ऊपरी हिस्सा था.

पांच महीने से पृथ्वी का लगा रहा था चक्कर

इसरो ने इस बात की पुष्टि की है कि चंद्रयान-3 को पृथ्वी के ऊपर करीब 133 किलोमीटर X 35,823 किलोमीटर की कक्षा में स्थापित करने वाला क्रायोजेनिक रॉकेट का ऊपरी हिस्सा करीब पांच महीने बाद वापस लौट आया है और अमेरिका के पास प्रशांत महासागर में जाकर गिरा. इसरो ने बताया कि रॉकेट के इसी हिस्से ने चंद्रयान-3 को उसकी कक्षा में स्थापित किया था. इसके बाद यह पृथ्वी के चारों को चक्कर लगाते हुए इसके नजदीक आ रहा था.

नॉर्थ अमेरिकन एयरोस्पेस डिफेंस कमांड कर रहा था ट्रैक

इसरो ने जानकारी दी कि 15 नवंबर 2023 की देर रात पौने तीन बजे के आसपास चंद्रयान-3 के रॉकेट का ऊपरी हिस्सा अमेरिका के तट से दूर उत्तरी प्रशांत महासागर में गिरा. नॉर्थ अमेरिकन एयरोस्पेस डिफेंस कमांड इसे ट्रैक कर रहा था. उसने ट्रैकिंग के बाद इसरो से बातचीत करके अंतरिक्ष से धरती पर आने वाली वस्तु की पहचान की. इसरो ने इस बात की पुष्टि भी कर दी है.

124 दिन में लौटा वापस

इसरो ने इंटर-एजेसी स्पेस डेबरी कॉर्डिनेशन कमेटी (आईएडीसी) को बताया कि यह बात पहले से तय थी कि पृथ्वी की निचली कक्षा से किसी भी चीज को वापस लौटने में करीब 124 दिन लगते हैं. एलवीएम-3 एम4 रॉकेट का ऊपरी हिस्सा भी अनुमानित 124 दिन में ही वापस लौटा है. इसरो ने बताया कि धरती पर लौटते समय रॉकेट के ऊपरी हिस्से से किसी प्रकार के नुकसान से बचाने के लिए अंतरिक्ष में ही इसका पैसिवेशन कर दिया गया था. बता दें कि पैसिवेशन रॉकेट से फ्यूल निकालने की एक प्रक्रिया है.

क्या है आईएडीसी का नियम

मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, यह संयुक्त राष्ट्र और आईएडीसी का नियम है कि अगर अंतरिक्ष में रॉकेट का कोई हिस्सा घूम रहा है, तो लॉन्च के थोड़ी देर बाद ही उसमें से सारा बचा हुआ ईंधन निकाल दिया जाता है, ताकि अगर यह धरती पर लौटे तो इसकी टक्कर से किसी तरह का हादसा न हो. इसी के ऊपर चंद्रयान-3 को लगाया गया था. इसी ने उसे निर्धारित कक्षा में छोड़ा था.

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रॉकेट में 28 मीट्रिक टन भरा था ईंधन

रिपोर्ट में बताया गया है कि चंद्रयान के रॉकेट एलवीएम-3 एम4 क्रायोजेनिक के ऊपरी हिस्से का व्यास 13 फीट और लंबाई 44 फीट थी. इसके अंदर 28 मीट्रिक टन ईंधन भरा हुआ था. आमतौर पर वैज्ञानिक इसे सी25 के नाम से भी जानते हैं. चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग के समय इस हिस्से को ज्यादा ईको-फ्रेंडली बनाया गया था, ताकि इससे प्रदूषण कम हो. इसे हल्का बनाने के लिए इसके मैटेरियल में भी बदलाव किया गया था. इसके अलावा, चंद्रयान के लॉन्चिंग पैड को एचईसी ने बनाया है.

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KumarVishwat Sen
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कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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