Congress: बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) काे लेकर विपक्षी दल और कई सामाजिक संगठन लगातार सवाल उठा रहे हैं. चुनाव आयोग के इस फैसले के खिलाफ विपक्षी दलों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग के फैसले काे चुनौती दी गयी.
साथ ही विपक्षी दल इस मामले में सड़क पर भी प्रदर्शन कर रहे हैं. विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों की याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने एसआईआर पर रोक लगाने से इंकार कर दिया. साथ ही चुनाव आयोग को सुझाव दिया कि इसके लिए आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को भी स्वीकार करने पर विचार करें.
इस मामले में विभिन्न याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में 28 जुलाई को अगली सुनवाई होनी है. हालांकि अंतरिम रोक लगाने की मांग को अस्वीकार किए जाने के बावजूद विपक्ष सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई को जीत के तौर पर पेश कर रहा है.
शनिवार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि एसआईआर के लिए चुनाव आयोग मांगे दस्तावेज के कारण करोड़ों लोग मतदान के अधिकार से वंचित हो सकते है. निष्पक्ष चुनाव के लिए ऐसा करना सही नहीं होगा. विपक्ष लगातार मांग उठा रहा था कि आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र को भी स्वीकार किया जाए. इस मामले में शीर्ष अदालत ने विपक्ष की मांग को स्वीकार किया है. यह इंडिया गठबंधन की जीत है. अगर ऐसा नहीं होता तो लाखों मतदाता चुनावी प्रक्रिया से बाहर हो जाते और यह निष्पक्ष चुनाव की भावना के खिलाफ होता.
विपक्ष की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने जतायी सहमति
सिंघवी ने कहा कि चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए आधार को अस्वीकार कर दिया. चुनाव आयोग का यह फैसला समझ से परे था. सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि आधार, मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड को दरकिनार करना सही नहीं है. अदालत ने आयोग को इस बारे में विचार करने को कहा है.
विपक्षी दल 28 जुलाई को होने वाली सुनवाई में इस मामले पर विस्तार से अपनी बात करेंगे. उन्होंने कहा कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की संयुक्त याचिका में एसआईआर काे लेकर गंभीर सवाल उठाए गए है. विपक्षी दलों का साफ कहना है कि नागरिकता तय करने का अधिकार चुनाव आयोग का नहीं है. आयोग के निर्देश 2003 के बाद के मतदाताओं को संदिग्ध कैटेगरी में डालने का काम कर रहा है.
वर्ष 2003 के बाद वालों को तीन कैटेगरी में बांटा जाना, माता पिता और अपना जन्म प्रमाण देना कानून का उल्लंघन है. उन्होंने कहा कि इसके लिए कोई कानूनी बदलाव नहीं किया गया. सिंघवी ने कहा कि वर्ष 2003 के बाद कई चुनाव हुए लेकिन विशेष गहन पुनरीक्षण नहीं किया गया. लेकिन जब बिहार विधानसभा के लिए काफी कम समय बचा है तो इसे लागू करने का फैसला लिया गया. यह चुनाव आयोग की साख पर सवाल खड़े करता है.