Defense: सामरिक तौर पर महत्वपूर्ण करवार नेवल बेस पर कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट का काम पूरा हो गया. इसके पूरा होने से इस बेस की क्षमता और अधिक बढ़ गयी है. शनिवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 2 हजार करोड़ की लागत से बने ऑपरेशनल, रिपेयर और लॉजिस्टिक सुविधाओं का उदघाटन किया. यह बेस रणनीतिक तौर पर काफी महत्वपूर्ण है. इस दौरान चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ अनिल चौहान, नौसेना प्रमुख दिनेश त्रिपाठी और रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह मौजूद थे. इस बेस पर युद्धपोत, पनडुब्बी और हार्बर क्राफ्ट को रखने की सुविधा का विकास किया गया है. इसके अलावा मरीन कांप्लेक्स, दो पायर, आवासीय परिसर, ड्रेनेज सिस्टम, तालाब, कचरा प्रबंधन और अन्य सुविधाओं का विकास किया गया है.
पूर्वी समुद्री सीमा की सुरक्षा होगी मजबूत
इसके निर्माण से देश की पूर्वी समुद्री सीमा की सुरक्षा मजबूत होगी और नौसेना भावी युद्ध लड़ने के लिए तैयार हो सकेगी. इस बेस में इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास आत्मनिर्भर भारत की सोच के साथ किया गया है और इसके निर्माण में लगे 90 फीसदी सामान और उपकरण स्वदेशी है. इस बेस के निर्माण से क्षेत्र में आर्थिक विकास की गति तेज होगी.यह नौसैनिक बेस अरब सागर के तट पर स्थित है, जो देश के लिए अहम समुद्री क्षेत्र है. यहां से भारतीय नौसेना चीन और पाकिस्तान पर नजर रखने में सक्षम होगी. हिंद महासागर में चीन की बढ़ती हरकत को देखते हुए यह बेस काफी अहम हो गया है.
क्या है इस नौसेना बेस की खासियत
करवार नौसेना बेस गोवा के दक्षिण में 80 किलोमीटर और मंगलौर से 320 किलोमीटर उत्तर की दिशा में स्थित है. इसकी लोकेशन इसे किसी तरह के चक्रवाती तूफान से बचाने में सक्षम है. करवार प्रोजेक्ट को वर्ष 1999 में तत्कालीन एनडीए सरकार ने मंजूरी दी थी. लेकिन विभिन्न कारणों से काम शुरू होने में देरी हुई और पहले चरण का ही काम पूरा हो सका. वर्ष 2012 में दूसरे चरण की मंजूरी दी गयी. इसके अपग्रेडेशन का काम चल रहा है. इसके पूरा होने पर इस बेस पर तीन एयरक्राफ्ट कैरियर, 32 पनडुब्बी और जंगी जहाज को रखने की सुविधा हो जायेगी.
इसके तीसरे चरण का भी खाका तैयार है और इसके पूरा होने के बाद यह एशिया का सबसे बड़ा नौसेना बेस हो जायेगा. इस बेस पर ड्रोन भी तैनात होगा. इस बेस में 3 हजार फीट लंबा रनवे बनाया गया है और जरूरत पड़ने पर 6 हजार फीट तक बढ़ाया जा सकता है. पाकिस्तान के साथ चीन की बढ़ती दोस्ती को देखते हुए यह बेस पश्चिमी तट पर भारत की समुद्री निगरानी और जवाबी कार्रवाई की क्षमता में इजाफा करेगा.
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