DRDO: देश में दिव्यांगों को सुविधा मुहैया कराने के लिए सरकार और स्वयंसेवी संगठन की ओर से कई तरह के प्रयास किए जाते हैं. देश में पैर से वंचित दिव्यांगों के लिए अच्छी खबर सामने आयी है. हर दिव्यांग की चाहत होती है कि वह अपने पैर पर चल सके. लेकिन नकली पैर की कीमत हर किसी के वश की बात नहीं होती है. लेकिन अब इस काम को डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गेनाईजेशन(डीआरडीओ) और तेलंगाना स्थित एम्स बीबीनगर ने साकार करने में सफलता हासिल की है. अब देश में नकली पैर का निर्माण होगा, जिससे बहुत सारे दिव्यांगों को लाभ मिलने की उम्मीद है.
डीआरडीओ की रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला (डीआरडीएल) और एम्स बीबीनगर ने मिलकर स्वदेशी रूप से पहला मेक-इन-इंडिया कार्बन फाइबर फुट प्रोस्थेसिस (नकली पैर) बनाया है. यह नकली पैर पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से बना है और यह सस्ता और हर तरह से सक्षम है. एम्स बीबीनगर और डीआरडीएल ने मिलकर स्वदेशी रूप से इसको तैयार किया और यह आत्मनिर्भर भारत के लिए बड़ी सफलता है. डीआरडीएल के वैज्ञानिक और निदेशक डॉक्टर जीए श्रीनिवास मूर्ति और कार्यकारी निदेशक एम्स बीबीनगर डॉक्टर अहंतेम सांता सिंह ने इसे लांच किया.
भार के हिसाब से बनाया गया है तीन वेरिएंट
विभिन्न भार के लिए इसके तीन वेरिएंट तैयार किए गए हैं. कार्बन फुट प्रोस्थेसिस(एडीआईडीओसी) एक कार्बन फाइबर आधारित नकली पैर है जो 125 किलो वजन उठाने में सक्षम है. भार सहन के लिए इसका बायोमैकेनिकल टेस्ट किया गया है. अलग-अलग वजन के लोगों की मदद के लिए इसके तीन तरह के वेरिएंट बनाया गया ताकि अधिकांश दिव्यांगों को इसका फायदा मिल सके. इस नकली पैर को अच्छी गुणवत्ता और सस्ता मुहैया कराने के लिए बनाया गया है ताकि अधिक से अधिक जरूरतमंद लोगों को फायदा मिल सके.
व्यापक पैमाने पर उत्पादन होने पर इसकी कीमत 20 हजार रुपये से कम होगी. मौजूदा समय में विदेशी नकली पैर की कीमत दो लाख रुपये से अधिक है. इससे आयातित तकनीक पर देश की निर्भरता कम होगी. साथ ही सामाजिक और आर्थिक समावेशन बढ़ाने में मदद मिलेगी.