Education: शिक्षा को राजनीतिक विचारधाराओं से ऊपर उठकर एक राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में देखा जाना चाहिए, क्योंकि यह सीधे तौर पर देश की विकासात्मक आकांक्षाओं को आकार देती है. यह स्वीकार करते हुए कि वे शिक्षा नीति के विशेषज्ञ नहीं हैं, उन्होंने अपनी इस धारणा को दोहराया कि भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश को प्राप्त करने के लिए मजबूत शैक्षिक सुधार और समावेशी शिक्षा आवश्यक हैं. पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने ‘काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट ‘द्वारा “भारत में स्कूली शिक्षा: सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुंच की दिशा में” विषय पर आयोजित संगोष्ठी में बाेल रहे थे. इस संगोष्ठी में प्रो. मुचकुंद दुबे के दृष्टिकोण और विरासत को श्रद्धांजलि दी गई, जिनके सम्मान में सामाजिक विकास परिषद में मुचकुंद दुबे शिक्षा का अधिकार केंद्र स्थापित किया गया है.
पुरी ने कहा, जैसे-जैसे हमारा देश विकसित हो रहा है, मुख्य ध्यान शिक्षा पर होना चाहिए. राष्ट्र के विकास के लिए शिक्षा मूलभूत तत्व है. उन्होंने प्रो. मुचकुंद दुबे की चिरस्थायी विरासत को सम्मानित करते हुए, मुचकुंद दुबे शिक्षा का अधिकार केंद्र के पहले कार्यक्रम का उद्घाटन करने के अवसर के लिए आभार व्यक्त करते हुए उन्हें एक मार्गदर्शक और एक असाधारण राजनयिक, विद्वान और बुद्धिजीवी के रूप में याद किया, जिन्होंने भारत में प्रत्येक बच्चे के लिए सामान और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने को आजीवन प्रतिबद्ध रहे.
पिछले ढाई दशकों में काफी हुआ बदलाव
पिछले ढाई दशकों में नीतिगत बदलावों पर प्रकाश डालते हुए पुरी ने कहा कि 2002 में वाजपेयी सरकार के दौरान, 86 वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से शिक्षा के अधिकार (आरटीई) की संवैधानिक नींव मजबूती से रखी गई थी, जिसने अनुच्छेद 21 ए के तहत इसे मौलिक अधिकार बनाकर 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की गारंटी दी थी. इस निर्णायक कदम ने प्रारंभिक शिक्षा को एक निर्देशक सिद्धांत से लागू करने योग्य अधिकार में बदल दिया, जिसके परिणामस्वरूप अंततः 2009 में आरटीई अधिनियम लागू हुआ. इस ऐतिहासिक सुधार की गति 2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में केंद्रित कार्यान्वयन और प्रमुख कार्यक्रमों के माध्यम से मजबूत हुई है.
आरटीई के बाद शिक्षा में व्यापक सुधार हुआ
शिक्षा का अधिकार(आरटीई) से पहले और बाद के यूडीआईएसई और एएसईआर रिपोर्टों का हवाला देते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि आज युवा साक्षरता दर लगभग 97 प्रतिशत तक पहुंच गई है. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और स्वच्छ भारत अभियान जैसी पहलों के बल पर लैंगिक साक्षरता का अंतर काफी कम हुआ है और नामांकन दरों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है. प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन 84 प्रतिशत से बढ़कर 96 प्रतिशत और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन 62 प्रतिशत से बढ़कर 90 प्रतिशत हो गया है. शैक्षिक बुनियादी ढांचे और शिक्षक संसाधनों में भी समान रूप से उल्लेखनीय सुधार हुए हैं. शिक्षक-छात्र अनुपात 42:1 से बढ़कर 24:1 हो गया है.
लड़कियों के लिए अलग शौचालय वाले स्कूलों का अनुपात 30 प्रतिशत से बढ़कर 91 प्रतिशत हो गया है और बिजली वाले स्कूलों का अनुपात 20 प्रतिशत से बढ़कर 86 प्रतिशत हो गया है. इस बीच, स्कूल छोड़ने की दर 9.1 प्रतिशत से घटकर 1.5 प्रतिशत हो गई है. भारत की व्यापक शैक्षिक यात्रा के विषय में बताते हुए उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के समय साक्षरता दर 17 प्रतिशत थी, जो अब एनएसएसओ के आंकड़ों के अनुसार लगभग 80 प्रतिशत हो गई है. यह एक ऐसी उपलब्धि है जो अगले चरण के रूप में सार्वभौमिक शिक्षा का मार्ग प्रशस्त करती है. इस संगोष्ठी में प्रो. मुचकुंद दुबे के दृष्टिकोण और विरासत को श्रद्धांजलि दी गई, जिनके सम्मान में सामाजिक विकास परिषद में मुचकुंद दुबे शिक्षा का अधिकार केंद्र स्थापित किया गया है.