Impeachment Explainer: जस्टिस यशवंत वर्मा स्वतंत्र भारत के पहले जज नहीं हैं, जिनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जा रहा है. बल्कि इससे पहले भी 7 मामलों में जजों के खिलाफ प्रस्ताव लाए गए. हालांकि अब तक इस प्रक्रिया के तहत किसी भी जज को हटाया नहीं गया है. यहां हम आपको महाभियोग की प्रक्रिया भी बताएंगे, लेकिन उससे पहले ये जानते हैं कि कब-कब और किन-किन जजों के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाए गए.
जस्टिस वी रामास्वामी
सुप्रीम कोर्ट के जज वी रामास्वामी स्वतंत्र भारत के पहले जज हुए, जिनके खिलाफ महाभियोग लाया गया था. उनपर आरोप थे कि उन्होंने अपने आधिकारिक आवास की साज-सज्जा करवाने में लाखों रुपये अवैध रूप से खर्च कर दिए. उनके खिलाफ 1991 में लोकसभा के 108 सांसदों ने महाभियोग का प्रस्ताव लाया, जिसे अध्यक्ष ने स्वीकार कर लिया. जांच के लिए तीन सदस्यों वाली समिति बनाई गई. जांच में रामास्वामी कई मामलों में दोषी पाए गए और उनके खिलाफ महाभियोग लाया गया. हालांकि बीच में लोकसभा भंग होने की वजह से प्रक्रिया लंबी चली. 1993 में दोबारा जब सदन में महाभियोग पर कार्यवाही शुरू हुई, तो मतदान में हटाने के पक्ष में 196 सांसदों ने वोट किए, जबकि 205 सांसदों ने मतदान में हिस्सा ही नहीं लिया. बाद में महाभियोग का प्रस्ताव खारिज हो गया और जस्टिस रामास्वामी 1994 में रिटायर हो गए.
पीडी दिनाकरन
कर्नाटक के पूर्व चीफ जस्टिस पीडी दिनाकरन के खिलाफ भी महाभियोग लाया गया था. उनके खिलाफ भ्रष्टाचार और जमीन पर अवैध कब्जा करने का आरोप लगा था. हालांकि जांच से पहले ही उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
जस्टिस सौमित्र सेन
कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व जज सौमित्र सेन के खिलाफ भी महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया था. उनपर 50 लाख रुपये से अधिक की हेराफेरी का आरोप था. 2009 में राज्यसभा में 58 सांसदों ने महाभियोग का प्रस्ताव लाया. जांच के लिए तीन सदस्यी समिति बनी, जिसमें वो दोषी पाए गए. बाद 2011 में 189 सांसदों ने महाभियोग के पक्ष में वोट किया और 17 ने खिलाफ में. लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाने से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया था.
महाभियोग के अन्य मामले
देश में और भी मामले हुए जिसमें जजों के खिलाफ महाभियोग के प्रस्ताव लाए गए. 2015 में जस्टिस एसके गंगेले के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया था. उनपर महिला जज ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ भी महाभियोग लाया गया था, लेकिन उस वक्त के राज्य सभा के सभापति पूर्व राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने प्रस्ताव को अस्वीकार कर लिया था. उसी तरह 2015 में जस्टिस जेबी पारदीवाला के खिलाफ राज्यसभा के 58 सांसदों ने महाभियोग का प्रस्ताव लाया था.
क्या होता है महाभियोग प्रस्ताव और उसकी प्रक्रिया?
- महाभियोग वह प्रक्रिया है, जिसका इस्तेमाल देश के राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जजों को हटाने के लिए संसद में लाया जाता है. महाभियोग का जिक्र संविधान के अनुच्छेद 61, 124 (4), (5), 217 और 218 में की गई है.
- किसी जज को हटाने के नोटिस पर लोकसभा में कम से कम 100 और राज्यसभा में 50 सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए.
- प्रस्ताव को अध्यक्ष या सभापति द्वारा स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकता है.
- जज के विरुद्ध लगाए गए आरोपों की जांच के लिए लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति द्वारा एक समिति गठित की जाएगी.
- जब तक प्रस्ताव दोनों सदनों में स्वीकार नहीं कर लिया जाता, तब तक कोई समिति गठित नहीं की जाती है.
- समिति में सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ जस्टिस, एक हाईकोर्ट के वर्तमान चीफ जस्टिस और एक प्रतिष्ठित न्यायविद.
- समिति को तीन महीने में रिपोर्ट प्रस्तुत करना होता है.
- महाभियोग को पारित कराने के लिए सदन में वोटिंग होती है, जिसमें कम से कम दो तिहाई सांसदों को समर्थन मिलना चाहिए.
- प्रस्ताव पारित होने पर उसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है.
- किसी जज को हटाने का अधिकार केवल राष्ट्रपति के हाथों में होता है.