Kaveri Engine Project: ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान भारतीय सेना ने जब पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया, तो दुनिया ने न केवल भारत की सैन्य ताकत देखी बल्कि स्वदेशी रक्षा उपकरणों की शक्ति का भी एहसास किया. अब जब भारत लगातार रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है, तो देशभर में एक और स्वदेशी प्रोजेक्ट कावेरी इंजन की चर्चा फिर से तेज हो गई है. सोशल मीडिया पर #FundKaveriEngine ट्रेंड कर रहा है और देशवासियों की मांग है कि सरकार इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को जल्द पूरा करे.
क्या है कावेरी इंजन प्रोजेक्ट?
कावेरी इंजन भारत के स्वदेशी लड़ाकू विमान इंजन निर्माण का सपना है, जिसकी शुरुआत 1980 के दशक में हुई थी. इस इंजन को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की GTRE लैब विकसित कर रही है. इसका लक्ष्य 81-83 kN थ्रस्ट वाला टर्बोफैन इंजन तैयार करना है, जिसे पहले LCA तेजस में उपयोग करना था, लेकिन तकनीकी और वित्तीय देरी के चलते यह प्रोग्राम से बाहर हो गया.
क्यों ज़रूरी है कावेरी इंजन?
कावेरी इंजन के सफल विकास से भारत विदेशी इंजनों पर निर्भरता से मुक्त हो सकता है. यह इंजन UAVs (मानवरहित विमान), UCAVs (घातक ड्रोन) और भविष्य के 5वीं पीढ़ी के फाइटर जेट्स में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. हाल ही में इसके ड्राई वेरिएंट की टेस्टिंग में सफलता मिली है, जिससे उम्मीदें फिर से जगी हैं.
प्रोजेक्ट में देरी क्यों हुई?
इस प्रोजेक्ट को उन्नत तकनीकों की कमी, फंडिंग में बाधा, प्रतिबंधित सामग्री जैसे सिंगल-क्रिस्टल ब्लेड न मिलने, और परीक्षण की उचित सुविधाओं के अभाव के कारण कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण भारत को विदेशी संस्थानों, जैसे रूस के CIAM पर निर्भर रहना पड़ा.
क्या खास है कावेरी इंजन में?
कावेरी इंजन में हाई टेम्परेचर टॉलरेंस, फ्लैट-रेटेड डिजाइन और ट्विन-लेन FADEC जैसी तकनीकें शामिल हैं, जो इसे विश्वसनीय और ऑप्टिमल प्रदर्शन देने में सक्षम बनाती हैं. इसका थ्रस्ट रेंज 55-58 kN है, जिसे भविष्य में 90 kN तक ले जाने की योजना है जो राफेल जैसे जेट्स के विकल्प के रूप में भी उभर सकता है.