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Ministry Of Culture: सारनाथ में धम्मचक्क पवत्तन दिवस मनाएगी आईबीसी

भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में ऐतिहासिक धामेक स्तूप पर संध्या काल में सम्मानित संघ समुदाय के नेतृत्व में पवित्र परिक्रमा और मंत्रोच्चारण से कार्यक्रम की शुरुआत होगी. धम्मचक्क पवत्तन, जिसे धर्म चक्र प्रवर्तन भी कहा जाता है, बौद्ध धर्म में एक महत्वपूर्ण घटना है. यह बुद्ध द्वारा ज्ञान प्राप्ति के बाद दिया गया पहला उपदेश है, जो उन्होंने अपने पहले पांच शिष्यों को सारनाथ में दिया था.

Ministry Of Culture: संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी) की ओर से महाबोधि सोसायटी ऑफ इंडिया के साथ मिलकर गुरुवार, 10 जुलाई 2025 को आषाढ़ पूर्णिमा के अवसर पर सारनाथ के मूलगंध कुटी विहार में भव्य आध्यात्मिक कार्यक्रम के साथ धम्मचक्क पवत्तन दिवस मनाया जाएगा. आषाढ़ पूर्णिमा को धम्म चक्र प्रवर्तन की प्रक्रिया का प्रथम महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है. इसी दिन भगवान बुद्ध ने अब सारनाथ के नाम से विख्यात ऋषिपटन मृगादय के मृग उद्यान में पंचवर्गीय (पांच तपस्वी साथियों) को पहली बार उपदेश दिया था. यह पवित्र अवसर वर्षा वास अर्थात वर्षा ऋतु में विश्राम की शुरुआत का भी संकेत है. संपूर्ण बौद्ध भिक्षु और भिक्षुणियां इस पावन अवसर पर अपने धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करते हैं.

धम्मचक्क पवत्तन, जिसे धर्म चक्र प्रवर्तन भी कहा जाता है, बौद्ध धर्म में एक महत्वपूर्ण घटना है. यह बुद्ध द्वारा ज्ञान प्राप्ति के बाद दिया गया पहला उपदेश है, जो उन्होंने अपने पहले पांच शिष्यों को सारनाथ में दिया था. इस उपदेश में, बुद्ध ने चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग की शिक्षा दी, जो बौद्ध धर्म के मूलभूत सिद्धांत है. इस उपदेश में, बुद्ध ने चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग की शिक्षा दी और यही उपदेश बौद्ध धर्म के मूलभूत सिद्धांत और धर्म चक्र प्रवर्तन के रूप में जाना जाता है.

चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग का साझा किया ज्ञान

केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में  ऐतिहासिक धामेक स्तूप पर संध्या काल में सम्मानित संघ समुदाय के नेतृत्व में पवित्र परिक्रमा और मंत्रोच्चारण से कार्यक्रम की शुरुआत होगी. पारंपरिक रीतियों के अनुसार इस अनुष्ठान में भ्रमण और मंत्रोच्चारण से समारोह स्थल पर गहन आध्यात्मिक ऊर्जा जागृत होगी. उसके बाद प्रख्यात भिक्षुओं, विद्वानों और गणमान्य व्यक्तियों की ओर से मंगलाचरण पाठ होगा और चिंतन-मनन किया जायेगा. सारनाथ में ही भगवान बुद्ध ने बुद्ध धम्म की नींव रखते हुए चार आर्य सत्य और आर्य अष्टांगिक मार्ग का ज्ञान साझा किया था. श्रीलंका में यह दिन एसाला पोया और थाईलैंड में असन्हा बुचा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन का बौद्ध धर्म को मानने वाले देशों में आध्यात्मिक महत्व है. इसके अतिरिक्त, बौद्ध और हिंदू समुदाय आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में भी मनाते हैं.यह ज्ञान के माध्यम से जीवन के अंधकार का नाश करने वाले अपने आध्यात्मिक गुरुओं के प्रति सम्मान और श्रद्धा प्रकट करने का दिन है.

संरक्षण और प्रचार में सामूहिक जिम्मेदारी निभाती है आईबीसी  


वर्ष 2012 में वैश्विक बौद्ध सम्मेलन जो नयी दिल्ली में आयोजित हुआ था, उसके बाद स्थापित अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ 39 देशों और 320 से अधिक सदस्य निकायों में बौद्ध संगठनों, मठवासी आदेशों और आम संस्थाओं को एक साथ लाने वाला विश्व का पहला संगठन है. अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ का मुख्यालय नयी दिल्ली में है. यह विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त ऐसा मंच है जो सभी परंपराओं, क्षेत्रों और लिंगों के समावेशी प्रतिनिधित्व के लिए प्रतिबद्ध है. अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ बौद्ध मूल्यों को वैश्विक चर्चा में शामिल करने और सद्भाव को बढ़ावा देने के अपने मिशन के साथ एकता, करुणा और आध्यात्मिक संवाद की दृष्टि को कायम रखता है. इसकी शासी संरचना में मठवासी भिक्षुओं और आम जनों- दोनों की भागीदारी शामिल है जो वास्तव में बुद्ध धम्म के संरक्षण और प्रचार में सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को दर्शाती है.

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