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Mithun Chakraborty: ‘बांग्ला पर केवल ममता बनर्जी का अधिकार नहीं,’ भाषा विवाद पर मिथुन चक्रवर्ती का तगड़ा हमला

Mithun Chakraborty: पश्चिम बंगाल में भाषा विवाद पर मशहूर अभिनेता और बीजेपी नेता मिथुन चक्रवर्ती ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर जोरदार हमला बोला है. मिथुन दादा ने कहा है कि ममता बनर्जी हर बात पर विवाद करना चाहती हैं जिसका कोई फायदा नहीं होगा.

Mithun Chakraborty: ममता बनर्जी ने भाजपा सरकार के खिलाफ अपनी राजनीतिक लड़ाई शुरू कर दी है, जिसमें बांग्ला भाषा को मुख्य मुद्दा बनाया जा रहा है. ममता बनर्जी ने भाजपा के ऊपर आरोप लगाते हुए कहा है कि भाजपा सरकार बांग्ला बोलने वाले नागरिकों और प्रवासियों के साथ भेदभाव और उनका उत्पीड़न कर रही है. इस मुद्दे पर मशहूर भाजपा नेता और अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती का एक बयान सामने आया है. अपने बयान में मिथुन ने ममता बनर्जी के ऊपर पलटवार कर कहा है कि ‘ममता बनर्जी को हर मुद्दे पर विवाद करना है, पर इससे कुछ होने वाला नहीं है.’ उन्होंने बांग्ला भाषा के ऊपर बोलते हुए कहा कि ‘बांग्ला भाषा पर केवल ममता बनर्जी का अधिकार नहीं है. यह भाषा सबकी है.’ पश्चिम बंगाल के 2026 विधानसभा चुनाव की ओर इशारा करते हुए मिथुन ने यह भी कह दिया कि लड़ाई जोरदार होगी.

ममता ने की ‘भाषा आंदोलन’ शुरू करने की घोषणा

ममता बनर्जी ने भाजपा पर विभाजनकारी एजेंडा चलाने का आरोप लगाते हुए विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है. बंगाल सीएम अपनी योजना को मजबूत बनाने के लिए लगातार प्रयास कर रही हैं. उन्होंने 21 जुलाई को वार्षिक शहीद दिवस रैली में भाषा आंदोलन शुरू करने की धमकी दी थी. ममता ने पार्टी समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा कि यदि आवश्यक हो तो 27 जुलाई को भाजपा के ‘भाषाई आतंकवाद’ के खिलाफ भाषा आंदोलन शुरू किया जा सकता है.

महाराष्ट्र में भी भाषा विवाद चरम पर

ममता बनर्जी के सुलगाए गए इस बांग्ला भाषा विवाद की आग अभी भी जल रही है. वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र में मराठी भाषा को लेकर अलग खलबली मची हुई है. महाराष्ट्र में दूसरे राज्यों के लोगों को जबरन मराठी बोलने के लिए मजबूर किया जा रहा है. एमएनएस (MNS) के कार्यकर्ता दुकानों से लेकर घरों तक घुसकर मराठी न बोलने वाले लोगों के साथ बदसलूकी और मारपीट कर रहे हैं. इस खुलेआम गुंडागर्दी पर महाराष्ट्र सरकार ने अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है. इन घटनाओं से यह साफ जाहिर होता है कि यह भाषा के प्रति कोई प्रेम नहीं, बल्कि राजनीतिक दलों की ओर से की जाने वाली भाषा की राजनीति है, जो लोगों को भाषा के आधार पर बांटने की कोशिश में लगी हुई है.

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