Operation Sindoor: जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई करते हुए कहा, ऑपरेशन सिंदूर में भाग लेने का मतबल ये नहीं कि घर पर अत्याचार करने की छूट मिल गई. हाई कोर्ट ने व्यक्ति की अपील को खारिज करते हुए उसकी सजा को बरकरार रखा था. सुप्रीम कोर्ट ने शुरू में व्यक्ति को छूट देने में अनिच्छा व्यक्त की.
इससे आपको घर पर अत्याचार करने की छूट नहीं मिल जाती : सुप्रीम कोर्ट
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विक्रम चौधरी ने कहा कि व्यक्ति ने ऑपरेशन सिंदूर में भाग लिया था. उन्होंने कहा, ‘‘पिछले 20 वर्ष से मैं राष्ट्रीय राइफल्स में ब्लैक कैट कमांडो के रूप में तैनात हूं.’’ तब पीठ ने कहा, ‘‘इससे आपको घर पर अत्याचार करने की छूट नहीं मिल जाती है. यह दर्शाता है कि आप शारीरिक रूप से कितने फिट हैं, और आप अकेले किस तरह से अपनी पत्नी को मार सकते थे, अपनी पत्नी का गला घोंट सकते थे.’’ पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को गंभीर अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था, इसलिए उसे छूट देने के लिए यह उपयुक्त मामला नहीं है.
कोर्ट ने प्रतिवादियों से 6 सप्ताह में मांगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में नोटिस जारी किया और प्रतिवादियों से छह सप्ताह में जवाब मांगा. जुलाई 2004 में अमृतसर की एक निचली अदालत ने याचिकाकर्ता बलजिंदर सिंह को उसकी शादी के दो साल के भीतर अपनी पत्नी की मौत के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304-बी (दहेज हत्या) के तहत दोषी ठहराया था. पुलिस ने आरोप लगाया कि महिला को दहेज के लिए उसके ससुराल में उत्पीड़न और क्रूरता का सामना करना पड़ा.