MIG-21 Retirement: छह दशक तक भारत के आसमान पर राज करने वाला इंडियन एयरफोर्स का मिग 21 विमान अब अपने अंतिम उड़ान की ओर बढ़ रहा है. मिग 21 को चंडीगढ़ वायुसेना अड्डे से 19 सितंबर को विदाई दी जाएगी. इसी के साथ एयरफोर्स के एक युग का अंत हो जाएगा. बीते 60 से ज्यादा सालों से मिग 21 एयरफोर्स का न केवल युद्धक विमान बना रहा, बल्कि यह भारतीय वायुसेना की शक्ति, साहस और तकनीकी प्रगति का प्रतीक भी रहा है. 1965 और 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध, कारगिल युद्ध में मिग 21 के पराक्रम ने पाकिस्तान को पस्त कर दिया था. कारगिल में पाकिस्तानी मंसूबों पर पानी फेरने में मिग 21 ने बड़ी भूमिका निभाई थी.
60 के दशक में वायु सेना में शामिल हुआ था मिग 21
मिग 21 को सोवियत यूनियन के मिकोयान-गुरेविच डिजाइन ब्यूरो (Mikoyan-Gurevich MiG-21) ने तैयार किया था. पहली बार 1960 के दशक में भारतीय वायुसेना में इसे शामिल किया गया था. यह सुपरसोनिक फाइटर जेट जल्द ही भारतीय वायुसेना की रीढ़ बन गया. इसकी गति, फुर्ती के आगे ठहरना काफी मुश्किल था. चार महाद्वीपों के करीब 60 देशों ने मिग-21 को उड़ाया है. यह अपनी पहली उड़ान के छह दशक बाद भी कई देशों में अब भी सेवा कर रहा है. विमानन इतिहास में मिग 21 सबसे अधिक उत्पादित सुपरसोनिक जेट विमान बन गया है.
मिग-21 लड़ाकू विमान की खासियत
मिग-21 लड़ाकू विमान अपनी सुपरसोनिक गति और हल्के डिजाइन और फुर्ती के लिए जाना जाता रहा है. यह 2,230 किमी प्रति घंटे की अधिकतम गति तक उड़ान भर सकता है, जो उस समय की तकनीक के हिसाब से अत्यंत प्रभावशाली थी. भारत में मिग-21 के कई वेरिएंट शामिल किए गए, जिनमें मिग-21 FL, मिग-21 M, मिग-21 बाइसन शामिल हैं. 1963 में भारतीय वायुसेना में शामिल होने के बाद मिग 21 ने कई युद्धों और मिशनों में अहम भूमिका निभाई है. छोटे आकार और तेज उड़ान ने मिग-21 को हवाई युद्ध में प्रभावी बना दिया. साल 1019 में बालाकोट एयर स्ट्राइक के दौरान इसी मिग-21 विमान से विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान ने पाकिस्तान के अमेरिका निर्मित F-16 जैसे अत्याधुनिक विमान को मार गिराया था.

कई युद्धों में मिग 21 ने निभाई निर्णायक भूमिका
मिग-21 ने भारतीय वायुसेना की ओर से कई युद्धों में अहम भूमिका निभाई है. 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में मिग-21 ने अपनी ताकत का लोहा मनवाया था. 1971 के युद्ध में मिग-21 ने पाकिस्तानी वायुसेना के विमानों को मार गिराया था. मिग-21 ने पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में भारत को हवाई वर्चस्व स्थापित करने में बड़ी भूमिका निभाई थी. 1999 के कारगिल युद्ध में भी मिग-21 ने बड़ी भूमिका निभाई थी. इस फाइटर जेट ने ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी प्रभावी ढंग से उड़ान भरी और मिशन को सफल बनाया था.

सुपरसोनिक विमान से ‘फ्लाइंग कॉफिन’ कैसे बनता गया मिग 21
कभी भारतीय वायुसेना की नाक होने वाला मिग 21 को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. बीते कुछ सालों से इसे ‘फ्लाइंग कॉफिन’ भी कहा जाने लगा है, क्योंकि यह विमान अब हादसे का शिकार होने लगा है. पुरानी तकनीक, रखरखाव की चुनौतियां और जटिल परिस्थितियों ने इसकी उड़ान को जोखिम भरा बना दिया है. इस कारण मिग 21 को भारतीय वायुसेना की तरफ से रिटायर किया जा रहा है.
आधुनिकीकरण की दिशा में भारतीय वायुसेना
मिग 21 की विदाई का एक बड़ा कारण भारतीय वायुसेना का आधुनिकीकरण भी है. भारतीय वायुसेना अब राफेल, सुखोई-30 MKI, तेजस, जगुआर समेत अन्य आधुनिक विमानों पर ध्यान केंद्रित कर रही है. वहीं स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान तेजस ने मिग-21 की जगह लेना शुरू कर दिया है. इसके अलावा आधुनिक युद्ध की जरूरतों, स्टील्थ तकनीक, ड्रोन और लंबी दूरी की मिसाइलों ने युद्ध की दशा और दिशा को बदल दिया है. ऐसे में मिग-21 आधुनिकता की दौड़ में अप्रासंगिक हो गया है.
मिग 21 का भारतीय वायुसेना में अमिट योगदान
मिग-21 महज एक फाइटर सुपरसोनिक विमान नहीं है यह भारतीय वायुसेना के पायलटों की नई पीढ़ी के लिए एक प्रशिक्षण मंच भी रहा है. इसने सैकड़ों पायलटों को सुपरसोनिक उड़ान और युद्ध की कला सिखाई. मिग-21 का छोटा आकार, गजब की रफ्तार और मजबूती ने इसे भारतीय परिस्थितियों के लिए काफी अहम बनाया. इसे हमेशा भारत और रूस की दोस्ती के लिए भी याद किया जाएगा.