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क्या तय होगी राष्ट्रपति और राज्यपाल के फैसलों की समयसीमा? सुप्रीम कोर्ट में इन 14 सवालों पर आज होगी सुनवाई

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बैठक में इस मामले में सुनवाई होगी. इसमे चीफ जस्टिस के अलावा, पीठ में जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिंह, जस्टिस अतुल एस चंदुरकर और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं.

Supreme Court: विधानसभा में पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा निर्णय लेने की समयसीमा तय करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट आज अहम सुनवाई करेगा. इस मामले पर सुनवाई राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गए रेफरेंस के तहत पांच सदस्यीय संविधान पीठ करेगा. राष्ट्रपति ने जो रेफरेंस भेजा है, उसमें संविधान के अनुच्छेद 131, 142, 143, 145(3), 200, 201 और 361 से जुड़े 14 सवालों पर जवाब की मांग की गई है.  

चीफ जस्टिस गवई समेत ये जज पीठ में होंगे शामिल

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बैठक में इस मामले में सुनवाई होगी. इसमे चीफ जस्टिस के अलावा, पीठ में जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिंह, जस्टिस अतुल एस चंदुरकर और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं.

अनिश्चितकालीन तक लंबित रखते हैं विधेयक

दरअसल, राज्य विधानसभाओं की तरफ से पारित विधेयकों की मंजूरी के लिए राज्यपाल या राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है, जिसे अनिश्चितकालीन समय तक लंबित रखा जाता है. इसकी वजह से जनहित में लिए गए फैसले में देरी होने की संभावना बढ़ जाती है. ऐसे में राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट को रेफरेंस भेजकर जवाब मांगा है कि क्या कोर्ट राज्यपाल और राष्ट्रपति के फैसले लेने की समय सीमा को निर्धारित कर सकती है.

राष्ट्रपति ने इन 14 सवालों पर मांगा जवाब

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143 का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट को रेफरेंस भेजा है. इस रेफरेंस में राष्ट्रपति ने कुल 14 संवैधानिक सवाल उठाए हैं, जिन पर सुप्रीम राय मांगी गई है.

  • क्या राज्यपाल विधेयक पर फैसला लेते समय मंत्रिपरिषद की सलाह से बाध्य हैं?
  • राज्यपाल के पास विधेयक आने पर उनके कौन-कौन से संवैधानिक विकल्प होते हैं?
  • जब संविधान में समयसीमा का प्रावधान नहीं है, तो क्या सुप्रीम कोर्ट समयसीमा तय कर सकता है?
  • क्या राष्ट्रपति के निर्णय को अदालत में चुनौती दी जा सकती है?
  • क्या राष्ट्रपति के लिए सुप्रीम कोर्ट से राय लेना अनिवार्य है?
  • क्या राज्यपाल के निर्णय को न्यायिक समीक्षा में लाया जा सकता है?
  • क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत राष्ट्रपति या राज्यपाल के निर्णय को बदल सकता है?
  • क्या कानून लागू होने से पहले ही अदालत राष्ट्रपति या राज्यपाल पर आदेश दे सकती है?
  • क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसा आदेश जारी कर सकता है जो मौजूदा कानूनों में स्पष्ट रूप से मौजूद नहीं है?
  • क्या केंद्र और राज्य सरकार के बीच का संवैधानिक विवाद केवल सुप्रीम कोर्ट ही सुलझा सकता है?
  • अगर संविधान राज्यपाल के लिए कोई समय सीमा नहीं तय करता, तो क्या सुप्रीम कोर्ट समय सीमा निर्धारित कर सकता है?
  • क्या अनुच्छेद 361 राज्यपाल के फैसलों को पूरी तरह से न्यायिक समीक्षा से बाहर कर देता है?
  • क्या संविधान से जुड़े मामलों को संविधान पीठ के पास भेजना अनिवार्य है?
  • क्या विधानसभा द्वारा पारित कानून राज्यपाल की मंजूरी के बिना लागू हो सकता है?

बिल की मंजूरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया था फैसला

दरअसल, 8 अप्रैल को अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था, जिसमें विधेयक की मंजूरी को लेकर राष्ट्रपति की समय सीमा निर्धारित की गई थी. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 3 महीने के भीतर विधेयक पर मंजूरी देने का आदेश दिया था. यह मामला जस्टिस जेबी पादरीवाला की अध्यक्षता में दो जजों की पीठ में सुनवाई हुई थी. इस फैसले के बाद तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि द्वारा रोके गए 10 विधेयकों के फैसले को रद्द कर दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अनुच्छेद 143 का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट से सवाल पूछा है.

Shashank Baranwal
Shashank Baranwal
जीवन का ज्ञान इलाहाबाद विश्वविद्यालय से, पेशे का ज्ञान MCU, भोपाल से. वर्तमान में प्रभात खबर डिजिटल के नेशनल डेस्क पर कार्य कर रहा हूँ. राजनीति पढ़ने, देखने और समझने का सिलसिला जारी है. खेल और लाइफस्टाइल की खबरें लिखने में भी दिलचस्पी है.

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